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इस ब्राह्मण छात्रा के सरनेम छोड़ने पर सोशल मीडिया में छिड़ गई तीखी बहस, जानिये क्या है ये ताज़ा विवाद?

कोलकाता — आईएससी यानी 12वीं बोर्ड परीक्षा रिजल्ट 2025 में 400/400 अंक हासिल करने वाली कोलकाता की छात्रा सृजनी सोशल मीडिया पर चर्चा का केंद्र बन गई है। कारण उसके ऊँचे मार्क्स ही नहीं बल्कि उसका अपना ब्राह्मण उपनाम—मुखर्जी और गोस्वामी—को छोड़ने का फैसला है जिसके कारण वो सुर्ख़ियों में है।

एक यूजर ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर इस कदम को “प्रदर्शनकारी” करार देते हुए तीखी टिप्पणी की, जिसने जातिगत विशेषाधिकार और सामाजिक पूंजी पर बहस को हवा दे दी है।

एक्स पर एक यूजर ने लिखा: “तो एक लड़की ने अपना उपनाम छोड़ दिया, और ये राष्ट्रीय खबर बन गई। क्यों? सिर्फ इसलिए कि उसके माता-पिता गोस्वामी और मुखर्जी हैं—ब्राह्मण पहचान, जिसे उन्होंने गर्व से अपनाया था। मजेदार बात ये है कि दक्षिण भारत के अधिकांश ब्राह्मण पीढ़ियों से ऐसा कर रहे हैं। क्या इससे वे कम ब्राह्मण हो गए? क्या उनकी सांस्कृतिक या सामाजिक पूंजी छिन गई? बल्कि, कई ने इस पहचान को चुपके से और कुशलता से इस्तेमाल किया है।
उसके माता-पिता कहते हैं कि वे चाहते हैं कि वह ‘सामाजिक लेबल के बोझ’ से मुक्त होकर बड़ी हो। लेकिन ब्राह्मण को कौन सा बोझ है? ब्राह्मणों को कब व्यवस्थागत अन्याय, सामाजिक बहिष्कार, जातिगत हिंसा या धार्मिक उग्रवाद का सामना करना पड़ा—वे ही शब्द जो वह इतने नाटकीय ढंग से इस्तेमाल करती है?
वह जहां भी जाएगी, अपना विशेषाधिकार साथ ले जाएगी। फर्क सिर्फ इतना है कि अब उसके पास एक चतुर अस्वीकरण है—‘मैंने इसे त्याग दिया!’”

इस पोस्ट ने सृजनी के फैसले पर पहले से चल रही बहस को और गर्म कर दिया। कुछ यूजर्स ने इस टिप्पणी का यह तर्क देते हुए समर्थन किया कि ब्राह्मण उपनाम छोड़ना एक प्रतीकात्मक कदम है, जो उन लोगों की वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है जो जातिगत उत्पीड़न का सामना करते हैं।

एक अन्य यूजर ने लिखा, “ब्राह्मणों के लिए उपनाम छोड़ना आसान है, क्योंकि उनकी पहचान ही दरवाजे खोलती है। बहुजनों के लिए ऐसा करना जोखिम भरा है, क्योंकि हमारी जाति हमें रोज दंडित करती है।”

वहीं, सृजनी के समर्थकों का कहना है कि उनका कदम जाति व्यवस्था को चुनौती देने की दिशा में एक साहसिक प्रयास है। एक समर्थक ने एक्स पर लिखा, “सृजनी का फैसला दिखाता है कि नई पीढ़ी जाति के बंधनों को तोड़ना चाहती है। यह छोटा कदम हो सकता है, लेकिन यह बदलाव की शुरुआत है।”

यूजर की टिप्पणी ने ब्राह्मण विशेषाधिकार पर सवाल उठाए हैं। भारत में उच्च जातियों, विशेष रूप से ब्राह्मणों, का शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक नेटवर्क में ऐतिहासिक वर्चस्व रहा है। 2024 की वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अरबपति संपत्ति का लगभग 90% उच्च जातियों के पास है, और नौकरशाही व न्यायपालिका जैसे क्षेत्रों में भी उनका दबदबा है। इस संदर्भ में, आलोचकों का कहना है कि ब्राह्मणों के लिए उपनाम छोड़ना एक “विलासिता” है, जो निचली जातियों के लिए उपलब्ध नहीं है, जिनकी जातिगत पहचान अक्सर भेदभाव का कारण बनती है।

इसलिए छोड़ा उपनाम

सृजनी, जो इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर देबाशीष गोस्वामी और गुरुदास कॉलेज की सहायक प्रोफेसर गोपा मुखर्जी की बेटी हैं, ने अपनी आईएससी परीक्षा के फॉर्म में उपनाम का उपयोग नहीं किया। उन्होंने पीटीआई से कहा, “उपनाम का बोझ क्यों ढोना? मैं एक ऐसे समाज में विश्वास करती हूं जो जाति, लिंग, धर्म और आर्थिक स्थिति से ऊपर उठे।”

उनके माता-पिता, स्वयं पारंपरिक उपनामों से बचते हैं, ने इस निर्णय का समर्थन किया। गोपा मुखर्जी ने बताया, “मेरी दोनों बेटियां उन मूल्यों को जीती हैं जो हमने उन्हें बचपन से सिखाए। मैं खुद अपने पति का उपनाम नहीं इस्तेमाल करती। जब हमने अपनी बेटियों के जन्म प्रमाणपत्र बनवाए, तब हमने कोई उपनाम शामिल नहीं किया।”

सृजनी की सक्रियता यहीं तक सीमित नहीं है। अपनी व्यस्त शैक्षणिक दिनचर्या के बावजूद, उन्होंने 14 अगस्त 2024 को आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक मेडिकल छात्रा के बलात्कार-हत्या के बाद ‘विमेन रिक्लेम द नाइट’ आंदोलन में हिस्सा लिया। उनके शैक्षणिक प्रदर्शन और सैद्धांतिक रुख की कई लोगों ने सराहना की है, और कुछ ने उन्हें जातिगत विशेषाधिकार को नकारने की मिसाल बताया है।

सृजनी और उनके परिवार ने उपनाम त्यागने के इस कदम को समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बताया है। उनके माता-पिता, जो स्वयं उपनामों से परहेज करते हैं, का कहना है कि वे अपनी बेटियों को जाति, लिंग, और धर्म के भेद से मुक्त समाज में बड़ा करना चाहते हैं। सृजनी के मुताबिक “मैं एक ऐसे समाज में विश्वास करती हूं जो इन विभाजनों से ऊपर उठे। उपनाम छोड़ना मेरा छोटा सा योगदान है।”

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