नई दिल्ली। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने असम पुलिस द्वारा दो वरिष्ठ पत्रकारों — द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और परामर्श संपादक करण थापर — को गुवाहाटी तलब किए जाने पर गहरी चिंता जताई है। इन दोनों के खिलाफ दर्ज एफआईआर में उन पर भारत की संप्रभुता को खतरे में डालने का आरोप लगाया गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वरदराजन और थापर को 22 अगस्त 2025 को गुवाहाटी के पानबाजार स्थित क्राइम ब्रांच कार्यालय में पेश होने के लिए कहा गया है। यह समन ऐसे समय में आया है जब कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने वरदराजन और अन्य को एक अलग एफआईआर मामले में असम पुलिस की “दमनकारी कार्रवाई” से सुरक्षा प्रदान की थी।
यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि ताज़ा एफआईआर भी उसी लेख से जुड़ी है या नहीं, जिसमें ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर सरकार की आलोचना की गई थी।
कई धाराओं के तहत मामला दर्ज
नवीनतम मामले में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 लगाई गई है, जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों से संबंधित है। इसके अलावा एफआईआर में कई अन्य प्रावधान भी शामिल किए गए हैं—धारा 196 (साम्प्रदायिक वैमनस्य), धारा 197(1)(d)/3(6) (झूठा प्रचार), धारा 353 (सार्वजनिक उपद्रव), धारा 45 (उकसावा) और धारा 61 (आपराधिक साजिश)।
पत्रकारिता पर प्रभाव को लेकर चिंता
एडिटर्स गिल्ड ने कहा है कि देशभर में पत्रकारों के खिलाफ अलग-अलग धाराओं में एफआईआर दर्ज करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यह प्रवृत्ति स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाने का काम करती है, क्योंकि नोटिस, समन और लम्बी न्यायिक कार्यवाही का सामना करना ही अपने आप में एक सज़ा जैसा हो जाता है।
EGI Statement on FIRs and Summons Issued to Siddharth Varadarajan and Karan Thapar pic.twitter.com/tWNDhzM0R5
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) August 19, 2025
गिल्ड ने विशेष रूप से धारा 152 पर चिंता जताई है। गिल्ड का कहना है कि यह दरअसल औपनिवेशिक दौर की राजद्रोह की धारा 124ए (IPC) का ही नया रूप है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में चुनौतीपूर्ण याचिकाओं पर विचार करते हुए स्थगित कर दिया था। नए कानून में यह धारा पहले से व्यापक रूप में लागू की गई है, जिसमें केवल भाषण या लेखन ही नहीं, बल्कि आर्थिक साधनों के उपयोग को भी शामिल कर लिया गया है।
पहले भी जताई थी आपत्ति
एडिटर्स गिल्ड ने जुलाई 2024 में गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इन प्रावधानों पर चिंता जताई थी। पत्र में खासकर धारा 152 और अन्य धाराओं को लेकर चेतावनी दी गई थी, जिन्हें स्वतंत्र अभिव्यक्ति और पत्रकारिता के खिलाफ दुरुपयोग किए जाने की आशंका है। गिल्ड ने सरकार से आग्रह किया था कि ऐसे कानूनों के मनमाने इस्तेमाल को रोकने के लिए स्पष्ट प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय तय किए जाएं।
“ईमानदार पत्रकारिता अपराध नहीं हो सकती”
गिल्ड ने कहा कि कानूनों का पालन ज़रूरी है, लेकिन उनका इस्तेमाल पत्रकारिता को दबाने के लिए नहीं होना चाहिए। बयान में कहा गया कि असम पुलिस को ऐसे किसी भी कदम से बचना चाहिए, जिससे उनकी नीयत पर संदेह पैदा हो। गिल्ड ने साथ ही पत्रकारों को याद दिलाया कि वे बिना डर और पक्षपात के अपना काम जारी रखें, क्योंकि — “ईमानदार पत्रकारिता कभी अपराध नहीं हो सकती।”