प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत अपनी मर्जी से विवाह करने के अधिकार को दोहराते हुए एक 27 वर्षीय महिला को सुरक्षा प्रदान की है, जिसे अपनी मर्जी से विवाह करने पर अपहरण की आशंका थी।
यह आदेश 13 जून को न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरी की खंडपीठ ने सुनाया। कोर्ट ने महिला की मर्जी से विवाह करने के फैसले का विरोध करने वाले परिजनों की निंदा करते हुए उनके रवैये को "घृणित" (despicable) बताया।
कोर्ट ने कहा, “यह अत्यंत घृणित है कि याचिकाकर्ता एक वयस्क महिला — जो 27 वर्ष की है — के अपनी पसंद से विवाह करने के निर्णय का विरोध कर रहे हैं। यह उसका संवैधानिक अधिकार है जो उसे अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्राप्त है।”
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि उसे यह नहीं पता कि महिला के पिता और भाई (याचिकाकर्ता) वाकई में उसका अपहरण करना चाहते थे या नहीं, लेकिन यह मामला एक गंभीर सामाजिक समस्या को दर्शाता है — यानी कि संवैधानिक और सामाजिक मूल्यों के बीच की खाई।
कोर्ट ने कहा, “ऐसे अधिकारों के प्रयोग में सामाजिक और पारिवारिक विरोध यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि समाज और संविधान के मूल्यों के बीच एक गहरी खाई मौजूद है। जब तक यह खाई बनी रहेगी, इस प्रकार की घटनाएं होती रहेंगी।”
यह मामला उस FIR से जुड़ा है जो महिला ने अपने पिता और भाई के खिलाफ मिर्जापुर जिले के चिल्ह थाना में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 140(3), 62 और 352 के तहत दर्ज कराई थी। FIR में महिला ने आरोप लगाया था कि अपनी मर्जी से विवाह करने पर उसे अपहरण की धमकी दी जा रही है।
हालांकि कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी, लेकिन साथ ही उन्हें महिला के जीवन में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से सख्ती से रोका।
कोर्ट ने निर्देश दिया, “याचिकाकर्ता चौथी प्रतिवादी (महिला) से न तो फोन पर, न किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस या इंटरनेट के माध्यम से, और न ही दोस्तों या परिचितों के जरिए संपर्क करें। पुलिस भी चौथी प्रतिवादी की स्वतंत्रता और आजादी में किसी भी तरह की दखलंदाजी नहीं करेगी।”
कोर्ट ने राज्य सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। अब यह मामला 18 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।