श्रीनगर: दूसरी महिला से शादी की इच्छा रखने वाले एक शौहर की ट्रिपल तलाक की चाल पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने करारा झटका दिया है। श्रीनगर की अदालत ने कहा है कि तलाक का कोई भी ऐसा रूप, चाहे उसे कितना भी 'शरीयत-सम्मत' नाम दे दिया जाए, जो तत्काल और अपरिवर्तनीय (इररिवोकेबल) हो, वह भारतीय कानून के तहत गैर-कानूनी है और उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी।
यह फैसला श्रीनगर हाईकोर्ट के जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने शबीर अहमद मलिक की याचिका पर सुनाया, जिसने अपनी पत्नी को तलाक-ए-अहसान देने का दावा करते हुए उसके खिलाफ दर्ज ट्रिपल तलाक की एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि उसने एक तलाकनामा तैयार किया था, जो शरीयत के मुताबिक था, इसलिए उस पर मुस्लिम महिला (संरक्षण अधिकार) अधिनियम, 2019 के तहत केस नहीं बनना चाहिए।
हालांकि, अदालत ने इस दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया। कोर्ट ने पुलिस की जांच रिपोर्ट (स्टेटस रिपोर्ट) पर गौर किया, जिसमें खुलासा हुआ था कि याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी के भाई के मोबाइल पर टेक्स्ट मैसेज के जरिए ट्रिपल तलाक भेजा था। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि याचिकाकर्ता ने इस सबूत का खंडन भी नहीं किया, जिससे उसका 'तलाकनामा' पूरी तरह बेअसर हो गया।
कोर्ट ने कानून की व्याख्या करते हुए साफ कहा, "तलाक का कोई भी उच्चारण हो, तलाक-ए-बिद्दत हो या ऐसा ही कोई और रूप हो, जिसका तात्कालिक और अपरिवर्तनीय तलाक का प्रभाव हो... तलाक का बोलकर, लिखना, इलेक्ट्रॉनिक रूप में या किसी अन्य तरीके से दिया गया हो, शून्य और अवैध होगा।"
अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि भले ही कोई पति इसे 'तलाक-ए-अहसान' कहे, लेकिन अगर उसका मकसद तत्काल तलाक देना है, तो वह 2019 के कानून के तहत दंडनीय अपराध बना रहेगा। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह जांच के शुरुआती चरण में ही prosecution को रोकने के पक्ष में नहीं है। इस फैसले को महिला अधिकारों की दिशा में एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है।