गुजरात में दलित महिलाओं ने तोड़े जाति के बंधन: जनरल सीटों से जीतकर बनीं सरपंच!

11:02 AM Jun 29, 2025 | Geetha Sunil Pillai

पाटण/साबरकांठा- राजनीति को अक्सर महिलाओं का क्षेत्र नहीं माना जाता, खासकर ग्रामीण इलाकों में। और जब बात जनरल सीट से चुनाव लड़ने की आती है, तो एक दलित महिला के लिए यह संघर्ष और भी कठिन हो जाता है। लेकिन गुजरात के हाल ही में हुए पंचायत चुनावों में दो दलित महिलाओं ने न सिर्फ चुनाव लड़ा, बल्कि जनरल सीट पर जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया। 

22 जून को गुजरात की 8,326 ग्राम पंचायतों के लिए मतदान हुआ, और परिणाम 25 जून 2025 को घोषित किए गए। 751 ग्राम पंचायतों में निर्विरोध चुनाव हुए। चुनाव में कुल 3656 सरपंच, 16224 पंचायत सदस्य चुनने के लिए 81 लाख मतदाता मताधिकार का प्रयोग किया।

पाटण जिले के रूणी गांव की प्रमिलाबेन मकवाणा और साबरकांठा जिले के आंजणा गांव की रंजनबेन परमार अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखती हैं, लेकिन उन्होंने आरक्षण के बिना सामान्य वर्ग की सीट पर चुनाव लड़कर जीत दर्ज की। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, क्योंकि सामान्य सीटों पर दलित उम्मीदवारों, विशेषकर महिलाओं, का जीतना सामाजिक प्रगति का प्रतीक है। यह घटना इसलिए ऐतिहासिक है, क्योंकि ये डेमोक्रसी का नया मॉडल स्थापित करता है जहाँ वंचित समुदाय की महिलाएं आरक्षण के बिना भी जीत हासिल कर समाज को लीड करने का दमख़म साबित कर पाई हैं।

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आंजणा गांव की रंजनबेन ने 3 वोटों से जीतकर रचा इतिहास

साबरकांठा जिले के तलोद तालुका के आंजणा गांव में रंजनबेन परमार ने मात्र 3 वोटों के अंतर से ऐतिहासिक जीत हासिल की। यहां कुल 1016 मतदाताओं में से SC समुदाय की रंजनबेन को 300 वोट मिले, जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी सूरजबेन पटेल को 297 वोट मिले।

यहां सामान्य सीट पर 2 पटेल, 1 दरबार, 2 बहुजन समाज के उम्मीदवार मैदान में थे जिसमें एससी समुदाय की रंजनबेन बलवंतभाई परमार ने काफी प्रतिस्पर्धा के बाद 3 वोटों से सरपंच पद पर जीत हासिल की। रंजनबेन को 300 वोट मिले। दूसरे स्थान पर रहीं सूरजबेन पटेल को 297 वोट मिले। तीसरे स्थान पर रहीं भावना ठाकोर को 199 वोट मिले, चौथे स्थान पर रहीं चंचीबेन पटेल को 140 वोट मिले, जबकि आशाबेन सोलंकी को 34 वोट मिले।

कुल वोटों में से 6 वोट नोटा में गए। नतीजों के अंत में रंजनबेन बलवंतभाई परमार 3 वोटों से विजयी हुई। इसके साथ ही रंजनबेन ने इतिहास रच दिया है। वह गांव की सामान्य सीट पर सरपंच पद के लिए चुनाव लड़ने और जीतने वाली अनुसूचित जाति समुदाय की पहली महिला बन गई हैं।

आंजणा गांव में पटेल, ठाकोर और अन्य OBC समुदायों की प्रभुत्व वाली आबादी है। ऐसे में, एक दलित महिला का जनरल सीट पर जीतना सामाजिक बदलाव का संकेत है। रंजनबेन की जीत ने गांव के राजनीतिक समीकरणों को हिलाकर रख दिया।

रूणी गांव की प्रमिलाबेन: अशिक्षित होकर भी राजनीति की धुरंधर

पाटण जिले के शंखेश्वर तालुका के रूणी गांव में प्रमिलाबेन मकवाणा ने 129 मतों के अंतर से जीत हासिल की। गांव के कुल 901 मतदाताओं में से 682 ने वोट डाले, जिनमें प्रेमिलाबेन को 392 वोट मिले। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 263 वोट मिले।

प्रमिलाबेन खुद अशिक्षित हैं, लेकिन राजनीति की समझ उन्हें विरासत में मिली है। उनके पति दिनेशभाई पूर्व सरपंच रह चुके हैं। दिनेशभाई की पहली पत्नी से उन्हें दो बच्चे हैं लेकिन पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने प्रमिलाबेन से शादी की जिनसे उन्हें एक बच्चा हुआ। तीसरे बच्चे के जन्म के कारण दिनेशभाई को पद छोड़ना पड़ा, जिसके बाद प्रमिलाबेन ने चुनावी मैदान में उतरकर अपनी काबिलियत साबित की।

रूणी गांव में ठाकोर (OBC), भरवाड़, देवीपूजक और SC समुदाय की आबादी है। गांव में सबसे ज्यादा घर ओबीसी ठाकोर समुदाय के हैं लेकिन यहां शिक्षा और जागरूकता की कमी है। प्रमिलाबेन ने अपनी जीत से साबित कर दिया कि सामाजिक जागरूकता और जनसमर्थन के बल पर कोई भी बाधा पार की जा सकती है। वे अब गांव में शिक्षा और OBC समुदाय के उत्थान पर काम करना चाहती हैं।

अम्बेडकरवादियों ने बताया जीत को 'लोकतंत्र का नया मॉडल'

गुजरात के ग्रामीण इलाकों में दलित महिलाओं की जनरल सीटों पर ऐतिहासिक जीत ने अम्बेडकरवादी कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ा दी है। प्रमिलाबेन मकवाणा और रंजनबेन परमार की जीत को समाजिक न्याय के लिए एक मील का पत्थर बताया जा रहा है।

अहमदाबाद के दलित अधिकार कार्यकर्ता संजय बौद्ध ने बताया, "जिस समय पूरे गुजरात से दलित उत्पीड़न की खबरें आ रही हैं, ये चुनावी जीतें एक नई उम्मीद जगाती हैं। यह साबित करती हैं कि दलित समुदाय, खासकर महिलाएं, अब अपने अधिकारों के प्रति सजग हो रही हैं। यह बदलाव दूरगामी साबित होगा।"

बौद्ध ने जोर देकर कहा, "यह सिर्फ दो चुनावी जीत नहीं है, बल्कि उस मानसिक बाधा को तोड़ना है जो दलितों को सिर्फ आरक्षित सीटों तक सीमित समझती थी। जब दलित महिलाएं प्रभुत्वशाली जातियों के खिलाफ जनरल सीटों पर जीत हासिल करती हैं, तो यह सामाजिक लोकतंत्र के लिए एक नया मॉडल बन जाता है।"

कार्यकर्ताओं का विशेष जोर इस बात पर है कि दोनों विजेताओं ने लिंग, जाति और (प्रेमिलाबेन के मामले में) निरक्षरता जैसी तिहरी चुनौतियों को पार करते हुए पारंपरिक रूप से सवर्णों के कब्जे वाले पदों पर कब्जा जमाया है। बौद्ध ने कहा, "इन सरपंचों ने साबित कर दिया है कि राजनीतिक सशक्तिकरण आरक्षण के दायरे से बाहर भी संभव है। यह सफलता गुजरात की दलित महिलाओं को राजनीतिक अखाड़े में अपनी जगह बनाने के लिए प्रेरित करेगी।"