पालक्कड़- यमन की एक जेल में फांसी की सजा पाने वाली केरल की 34 वर्षीय नर्स निमिशा प्रिया की जिंदगी और मौत के बीच अब सिर्फ 7 दिन बाकी हैं। 16 जुलाई को उन्हें फांसी दिए जाने का दिन मुकर्रर हो चुका है। भारत और केरल सरकार आखरी समय तक निमिशा को बचाने की कोशिश कर रही है, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिल पाई है। निमिशा की कहानी किसी हिंदी फिल्म की इमोशनल स्टोरी से कम नहीं है। किस तरह एक गरीब परिवार की बेटी ने अपने सपने पूरे करने के लिए यमन जैसे कट्टर देश में जाकर नौकरी की, खुद का अस्पताल स्थापित करने के लिए संघर्ष किया, लेकिन आज वहां की जेल में फांसी का इंतजार कर रही है।
निमिशा को वर्ष 2018 में एक यमनी नागरिक और बिजनस पार्टनर तालाल अब्दो महदी (Talal Abdo Mahdi) के मर्डर का दोषी ठहराया गया और उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी। महदी ने निमिशा का पासपोर्ट जब्त कर रखा था जिसको वापस पाने के लिए निमिशा ने उसे नींद का इंजेक्शन दिया था जो ओवरडोज़ हो जाने के कारण महदी की मौत का कारण बनी।
निमिशा की मां, जो कोच्चि में घरों में काम करती हैं (domestic help) ने अपना घर तक बेच दिया ताकि वह अपनी बेटी को बचा सके। उन्होंने आखिरी अपील करते हुए कहा- "मैं भारत और केरल सरकार के अब तक के प्रयासों के लिए शुक्रगुजार हूँ लेकिन अब समय बहुत कम है। कृपया मेरी बेटी को बचाने में हमारी मदद करें।"
निमिशा का पति थॉमस पालक्कड़ में मजदूरी और ड्राइविंग करके गुजारा करता है। परिवार पर 60 लाख रुपये का कर्ज है जो उन्होंने 2015 में यमन में क्लिनिक खोलने के लिए लिया था।
बचपन से लेकर यौवन तक संघर्ष
निमिशा प्रिया का जन्म 1 जनवरी 1989 को केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोड में हुआ था। गरीबी के बावजूद उसने एक स्थानीय चर्च की मदद पाकर नर्सिंग का कोर्स किया। लेकिन उसे केरल में नौकरी नहीं मिल सकी क्योंकि उक्त कोर्स करने से पहले निमिशा ने स्कूली शिक्षा पूर्ण नहीं की थी और इसलिए महज 19 साल की उम्र में वह 2008 में नौकरी की तलाश में यमन चली गई। वहां उसने सना शहर के एक सरकारी अस्पताल में नर्स की नौकरी की।
2011 में निमिशा केरल लौटी और अपने परिवार द्वारा पसंद किये वर के साथ उसका विवाह हुआ। अपने पति के साथ निमिशा यमन लौटी, 2012 दिसंबर में उसने अपनी बेटी को जन्म दिया जिसके बाद खर्चे बढ़ने से परिवार को आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा। 2014 में निमिशा के पति उनकी बेटी को लेकर केरल लौट गये। अपनी बेटी के सुरक्षित भविष्य और परिवार की भलाई के लिए निमिशा ने अपना क्लिनिक खोलने का सपना देखा, लेकिन यमन के कानून के मुताबिक, विदेशियों को व्यवसाय शुरू करने के लिए किसी स्थानीय व्यक्ति को पार्टनर बनाना जरूरी था। इसलिए उसने तालाल अब्दो महदी नाम के एक यमनी व्यापारी के साथ साझेदारी की।
2015 में यमन में गृहयुद्ध शुरू हो गया, लेकिन निमिशा ने अपने क्लिनिक में निवेश किए पैसों के कारण वहीं रहने का फैसला किया। धीरे-धीरे उसका पार्टनर तालाल उसका दुश्मन बन गया। उसने निमिशा का पासपोर्ट और दस्तावेज़ छीन लिए, उसे धमकाया, पीटा और यहां तक कि झूठे कागजात बनाकर खुद को उसका पति बताने लगा। निमिशा ने पुलिस में शिकायत की, लेकिन कोई मदद नहीं मिली।
2017 में, एक दिन जब वह अपना पासपोर्ट वापस लेने के लिए तालाल को केटामाइन (एनेस्थीसिया) की खुराक देकर बेहोश करने की कोशिश की, तो उसकी मौत हो गई। निमिशा ने एक अन्य नर्स की मदद से उसके शव को काटकर पानी की टंकी में फेंक दिया। अगस्त 2017 में यमन- सऊदी अरब के बॉर्डर के पास पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। निमिशा की मदद करने वाली साथी भी गिरफ्तार हुई।
2018 में, निमिशा को मर्डर का दोषी ठहराया गया और उसे फांसी की सजा सुनाई गई। हैरानी की बात यह है कि उसकी पूरी सुनवाई अरबी भाषा में हुई, जिसे निमिशा नहीं समझती थी। उसे न तो अनुवादक दिया गया और न ही वकील। भारत के सुप्रीम कोर्ट के वकील के.आर. सुभाष चंद्रन ने कहा कि यह ट्रायल पूरी तरह से गलत था और इसे दोबारा होना चाहिए। सुभाष सहित मानवाधिकार कार्यकताओं ने निमिशा मामले में दुबारा ट्रायल की मांग की और 2020 में हुए दूसरे ट्रायल में भी उसे हत्या का दोषी करार दिया।
इसके बाद निमिशा के परिवार और शुभचिंतकों ने मिलकर Save Nimisha Priya International Action Council की स्थापना की जो उसे रिलीज करवाने के लिए प्रयासरत है।
Blood Money चुकाने से रिहाई की आस
नवंबर 2023 में यमन की सर्वोच्च न्यायिक परिषद ने प्रिया की अपील खारिज कर दी। अप्रैल 2024 में प्रिया की माँ, पति और बेटी यमन गए और महदी के परिवार से बात करके उसकी रिहाई के लिए प्रयास किया।
यमन के कानून के मुताबिक अगर पीड़ित के परिवार को मुआवजा (Blood Money) दिया जाए, तो फांसी की सजा माफ की जा सकती है। निमिशा के परिवार और उसके समर्थकों ने इसके लिए $40,000 (करीब 33 लाख रुपये) जुटाए, लेकिन पीड़ित के परिवार ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है। भारतीय दूतावास ने एक वकील को नियुक्त किया, लेकिन उसने $20,000 की फीस मांगी, जिससे बातचीत रुक गई।
निमिशा की रिहाई के पक्षधर महदी के परिवार को उसकी रिहाई के बदले में देने के लिए धन जुटाने में लगे हैं। जून 2024 तक निमिशा की रिहाई के लिए 40,000 अमेरिकी डॉलर जुटाए जा चुके थे, जिनमें से आधी राशि सना स्थित भारतीय दूतावास को हस्तांतरित कर दी गई थी। सितंबर 2024 तक बातचीत रुक गई है। निमिशा की माँ जनवरी 2025 की शुरुआत तक सना में ही रहीं और महदी के परिवार के साथ बातचीत पर काम करती रहीं। दिसंबर 2024 में यमन के राष्ट्रपति रशद अल-अलीमी ने प्रिया निमिशा की मौत की सज़ा को मंज़ूरी दे दी।
निमिशा के मामले में अटॉर्नी समूएल जीरोम के मुताबिक मिनिस्ट्री ऑफ़ एक्सटर्नल अफेयर्स को निमिशा की फांसी की डेट के बारे में अवगत किया जा चुका है और परिजनों को मित्रों को अभी भी उम्मीद है कि कुछ ऐसा चमत्कारिक हो जाए और प्रिया निमिशा रिहा होकर अपने घर वापस आ सके।
भारत सरकार और केरल सरकार दोनों ही निमिशा को बचाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने कहा है कि वह यमन सरकार और पीड़ित के परिवार से बातचीत जारी रखे हुए है।