नई दिल्ली। प्रख्यात लेखिका बानू मुश्ताक़ के कहानी-संग्रह को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया जाना भारतीय भाषाओं के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। यह सम्मान भारतीय भाषाओं की गहन रचनात्मकता, उनकी वैश्विक संभावनाओं और अनुवाद के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचने की अद्भुत क्षमता की स्वीकृति है।
"यह हमारे साहित्य की वैश्विक पहचान का क्षण है" — अशोक महेश्वरी
राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने इस अवसर पर कहा, "यह पुरस्कार उस साहित्यिक विरासत की स्वीकृति है जो दशकों से स्थानीय पाठकों के बीच जीवित रही है और अब अनुवाद के माध्यम से वैश्विक मंच पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है।" उन्होंने इस उपलब्धि को भारतीय भाषाओं की रचनात्मक शक्ति की वैश्विक स्वीकृति बताते हुए बानू मुश्ताक़ और अनुवादक दीपा भस्थी को हार्दिक बधाई दी।
गीताजंलि श्री: 'हमारी भाषाओं में उत्तम लेखन तो था ही और रहेगा'
2022 में अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास ‘रेत समाधि’ की लेखिका गीताजंलि श्री ने भी इस उपलब्धि को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा, "बानू मुश्ताक़ और दीपा भस्थी को यह पुरस्कार मिलना बहुत बड़ी बात है। हमारे देश की अनेक भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्य कोई नई बात नहीं है, लेकिन बाकी दुनिया को इसकी जानकारी अब तक सीमित रही है। बुकर जैसी पहचान इसे वैश्विक पटल पर लाने में मदद करती है।"
भारतीय भाषाओं की वैश्विक पहचान में अनुवाद की भूमिका
महेश्वरी ने आगे कहा कि यह भारतीय भाषाओं से दूसरी पुस्तक है जिसे यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है। पहली बार ‘रेत समाधि’ को सम्मान मिला था, जो किसी दक्षिण एशियाई भाषा में लिखी गई पहली कृति थी जिसे अंतरराष्ट्रीय बुकर से नवाज़ा गया। अब ‘हार्ट लैम्प’ (बानू मुश्ताक़ की कृति) को यह सम्मान मिलना दर्शाता है कि भारतीय भाषाओं की रचनात्मकता विश्व साहित्य की मुख्यधारा में प्रवेश कर रही है।
भारतीय भाषाओं के आपसी संवाद पर ज़ोर
महेश्वरी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि न केवल भारतीय भाषाओं से अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में, बल्कि भारतीय भाषाओं के आपसी संवाद के लिए भी अनुवाद बेहद ज़रूरी है। उन्होंने कहा, “भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषाएँ एक-दूसरे से कटती जा रही हैं। हिन्दी भाषी पाठकों को बांग्ला, मलयालम, कन्नड़ या असमिया के साहित्य तक सहज पहुँच नहीं है, और यही स्थिति अन्य भाषाओं के पाठकों के साथ भी है।”
अनुवादकों को मिलना चाहिए लेखक जैसा सम्मान
उन्होंने यह भी कहा कि अनुवाद सिर्फ भाषा परिवर्तन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अंतरण का माध्यम होता है। उन्होंने कहा, “हमें अनुवादकों को लेखक के समान ही महत्व और सम्मान देना होगा। दीपा भस्थी द्वारा बानू मुश्ताक़ की कृति का अनुवाद इसका बेहतरीन उदाहरण है।” इसके लिए संस्थागत प्रयासों, प्रशिक्षण, अनुदान और बहुभाषिक प्रकाशन कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता भी उन्होंने जताई।
भारतीय भाषाओं को मंच देना ज़रूरी
महेश्वरी ने कहा कि साहित्यिक उत्सवों, पुस्तक मेलों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर भारतीय भाषाओं को प्रमुखता देना बेहद ज़रूरी है। उन्होंने कहा, “हम राजकमल प्रकाशन समूह में लगातार प्रयासरत हैं कि हिन्दी में जो कुछ अच्छा, मौलिक और रचनात्मक लिखा जा रहा है, उसका अनुवाद अन्य भारतीय भाषाओं में हो, और साथ ही अन्य भाषाओं की श्रेष्ठ रचनाएँ हिन्दी में लाई जाएँ।”
राजकमल प्रकाशन की ओर से बधाई
उन्होंने अंत में कहा, “हम समय-समय पर दोहराते रहे हैं कि राजकमल प्रकाशन समूह उत्कृष्ट साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है। किसी भी भारतीय भाषा को वैश्विक मंच पर सम्मान मिलना एक प्रकाशक के रूप में हमारे लिए गर्व की बात है। राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से मैं बानू मुश्ताक़ और दीपा भस्थी को इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर हार्दिक बधाई देता हूँ।”