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ज़िंदा मछली निगलने के लिए हैदराबाद में उमड़ रही भीड़: जानिए क्यों है 'मछली प्रसादम' का क्रेज जिसके 'सीक्रेट पेस्ट' से ठीक होते हैं अस्थमा रोगी

हैदराबाद- दक्षिण प्रान्तों में मानसून की शुरुआत के साथ ही हैदराबाद का नामपल्ली प्रदर्शनी ग्राउंड हजारों अस्थमा और सांस के मरीजों के लिए आशा का केंद्र बन गया है। 8 जून को बथिनी गौड़ परिवार द्वारा वितरित किए जाने वाले 'फिश प्रसादम' का वार्षिक आयोजन शुरू हो गया, जिसमें तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों से सैकड़ों लोग भाग लेने पहुंच रहे हैं । यह अनूठी परंपरा लगभग 180 साल पुरानी है, जिसमें मृगशिरा कार्थी के अवसर पर मरीजों को एक जीवित मुर्रेल मछली के साथ एक पीले रंग के कड़वे हर्बल पेस्ट को निगलना होता है। मान्यता है कि इसे लगातार तीन साल तक लेने से सांस की बीमारियों में आराम मिलता है। शाकाहारियों के लिए यह पेस्ट गुड़ के साथ दिया जाता है। इस पेस्ट की रेसिपी इसे बनाने वाले परिवार के अलावा किसी को ज्ञात नहीं है.

दावा किया जाता है कि अगर तीन साल तक मृगशिरा कार्थी के अवसर पर कोई व्यक्ति इस मछली को लेता है, तो उसे अस्थमा से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाता है। इस प्रथा का सोशल मीडिया पर भी जमकर प्रचार-प्रसार किया जाता रहा है। यहां तक कि इनका कम्युनिटी पेज भी है, जिस पर इसी दावे के बारे में प्रमुखता से लिखा गया है।

मृगशिरा कार्थी (मृगशीर्ष) मृगशिरा नक्षत्र में सूर्य के प्रवेश और पारगमन को दर्शाता है। यह आमतौर पर हर साल जून के पहले सप्ताह में पड़ता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मृगशिरा कार्थी मानसून के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस साल मृगशिरा कार्थी 8 जून, रविवार को पड़ रही है।

रविवार को तेलंगाना के परिवहन मंत्री पोन्नम प्रभाकर और सांसद अनिल कुमार यादव ने इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया। आयोजन को सुचारु रूप से चलाने के लिए 13 काउंटर और 42 कतारें बनाई गईं। बथिनी परिवार का दावा है कि 1845 में एक संत ने उन्हें यह फॉर्मूला दिया था, और वे इसे नि:शुल्क वितरित करते हैं। आयोजन के लिए तेलंगाना फिशरीज डिपार्टमेंट द्वारा 1.5 लाख मुर्रेल फिंगरलिंग्स की आपूर्ति की गयी है, जबकि सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस ने 70 सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं। जीएचएमसी, रेवेन्यू और फायर सर्विसेज जैसे विभागों के साथ मिलकर व्यवस्था सुनिश्चित की गई। एनजीओ ने भोजन की व्यवस्था की और विशेष बसें सेकेंद्राबाद व काचीगुड़ा जैसे स्टेशनों से मरीजों को लेकर आईं।

लेखिका मनीषा साई तुलाबंडुला के मुताबिक बथिनी परिवार इसे मुफ्त में वितरित करता है, जिससे यह सभी आर्थिक वर्गों के लिए सुलभ है, यह परंपरा सदियों पुरानी है और लोगों के लिए आस्था व आशा का प्रतीक बनी हुई है। कुछ रोगियों का कहना है कि एक बार उपचार लेने के बाद उन्हें महीनों या वर्षों तक आराम मिलता है। इसे एक प्राकृतिक औषधि बताया जाता है, जिसके कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं।

विज्ञान और संदेह की दृष्टि

हैदराबाद फिश मेडिसिन (फिश प्रसादम) को लेकर चिकित्सा समुदाय संशय की स्थिति में है, क्योंकि इसकी प्रभावकारिता के समर्थन में कोई वैज्ञानिक प्रमाण या नैदानिक परीक्षण उपलब्ध नहीं हैं। पिछले 15 वर्षों में 'फिश प्रसादम' को लेकर कई सवाल उठाए गए हैं। आलोचकों का कहना है कि यह एक धोखा है और हर्बल पेस्ट में भारी धातु हो सकती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। कोर्ट के आदेश पर लैब टेस्ट भी हुए, जिनके बारे में बथिनी परिवार का दावा है कि इनसे पेस्ट की सुरक्षा की पुष्टि हुई। आलोचनाओं के बाद उन्होंने इसे 'फिश मेडिसिन' के बजाय 'फिश प्रसादम' कहना शुरू कर दिया, ताकि इसके आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित किया जा सके।

इस उपचार की प्रभावकारिता साबित करने के लिए कोई नियंत्रित वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किए गए हैं। वैज्ञानिक मान्यता के लिए व्यापक शोध आवश्यक है, जो अभी तक नहीं हुआ है।

आलोचक इसके स्वास्थ्य जोखिमों को भी रेखांकित करते हैं जिसमे जीवित मछली निगलने से गले में अटकने या सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं हो सकती हैं, खासकर उन रोगियों में जो पहले से ही स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। हर्बल पेस्ट में भारी धातुओं की मौजूदगी का भी खतरा बताया जाता है। इसके अलावा जिन्हें sea-food से एलर्जी हैं, उनके लिए भी मछली को निगलना नुकसानदेह हो सकता है।

कई मरीजों का मानना है कि इससे उन्हें फायदा हुआ है। बथिनी परिवार प्रसादम लेने के बाद 45 दिनों तक विशेष आहार और अनुवर्ती खुराक (अरुंधति, पुनर्वसु और पुष्यमी नक्षत्रों में) लेने की सलाह देता है। हालांकि कई चिकित्सकों का मानना है कि यह केवल प्लेसीबो प्रभाव हो सकता है।

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