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MP: ग्वालियर हाईकोर्ट में डॉ. अंबेडकर की मूर्ति पर विवाद गहराया, यूट्यूबर अंजुल बम्हरोलिया को मिल रही धमकियां, जानिए पूरा मामला?

भोपाल। ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर की मूर्ति को लेकर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब यह मामला केवल न्यायिक परिसर की सीमाओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से भी इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है।

इस विवाद में यूट्यूबर पत्रकार अंजुल बम्हरोलिया को लगातार धमकियां मिल रही हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक ऑडियो क्लिप शेयर करते हुए दावा किया है कि ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में अंबेडकर मूर्ति के मुद्दे पर वीडियो बनाने के बाद से उन्हें अज्ञात लोगों द्वारा फोन कर डराया-धमकाया जा रहा है।

“एक मूर्ति से इतनी तकलीफ क्यों?” – अंजुल

अंजुल बम्हरोलिया ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा – "ग्वालियर हाईकोर्ट के मामले पर जब से मैंने वीडियो बनाया है, लोगों को बहुत तकलीफ हो रही है। मैंने किसी के लिए भी एक भी गलत शब्द नहीं कहा, न ही किसी वकील का नाम लिया। इसके बावजूद आए दिन लोग फोन करके धमकाने की कोशिश करते हैं। एक मूर्ति से इतनी तकलीफ क्यों हो रही है?"

अंजुल द्वारा साझा की गई ऑडियो रिकॉर्डिंग में एक व्यक्ति की आवाज़ सुनी जा सकती है जो आक्रामक लहजे में बात करता है और अप्रत्यक्ष रूप से अंजुल को चुप रहने की हिदायत देता है।

द मूकनायक से बातचीत में अंजुल बम्हरोलिया ने बताया कि अब तक उन्हें धमकी भरे करीब 15 फोन कॉल्स आ चुके हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया के जरिए भी लगातार डराने-धमकाने की कोशिशें की जा रही हैं। उन्होंने बताया कि धमकी देने वालों में कुछ अधिवक्ता और उत्तर प्रदेश से जुड़े कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोग शामिल हैं, जो उनसे वीडियो न बनाने, पहले से पोस्ट किए गए वीडियो को डिलीट करने और 'देख लेने' जैसी धमकियां दे रहे हैं।

अंजुल ने साफ कहा, "हम डरने वालों में नहीं हैं। हम संविधान और लोकतंत्र में आस्था रखने वाले लोग हैं।" उन्होंने बताया कि वह जल्द ही इस मामले में पुलिस में विधिवत शिकायत दर्ज कराएंगे।

भीम आर्मी ने कहा, "मनुवादी सोच के व्यक्ति डॉ. अंबेडकर से डरते है"

द मूकनायक से बातचीत करते हुए भीम आर्मी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील बैरसिया, ने कहा, "जब अंजुल बम्हरोलिया ने ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की मूर्ति से जुड़ा वीडियो बनाया और सच को सामने लाने की कोशिश की, तो उन्हें मनुवादी मानसिकता के लोग फोन पर धमकाने लगे। यह बेहद निंदनीय है। हम प्रशासन से पूछना चाहते हैं कि जब खुलेआम किसी व्यक्ति को धमकियां दी जा रही हैं, तब भी कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? क्या प्रशासन भी मनुवादी सोच के दबाव में काम कर रहा है?"

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हर मंच पर लॉ एंड ऑर्डर की बात करते हैं, लेकिन ग्वालियर में चल रहे इस गंभीर विवाद पर उनकी चुप्पी क्या यह साबित नहीं करती कि सरकार दलितों के सवालों से मुंह मोड़ रही है? प्रशासन पूरी तरह मौन है और सरकार गहरी नींद में सो रही है। देश के संविधान निर्माता की मूर्ति को लेकर विवाद हो और प्रशासन निष्क्रिय बना रहे, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। दलितों पर लगातार अत्याचार हो रहे हैं और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। भीम आर्मी इसे बर्दाश्त नहीं करेगी।"

कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट को लिखा था पत्र

कांग्रेस ने भी ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कुछ दिनों पहले इस मुद्दे पर एक पत्र लिखते हुए कहा था कि कांग्रेस पार्टी डॉ. आंबेडकर और उनके द्वारा रचित संविधान के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण रखती है। उन्होंने यह भी कहा कि न्याय के मंदिर यानी उच्च न्यायालय में संविधान निर्माता की प्रतिमा की स्थापना न केवल न्यायसंगत है, बल्कि यह संविधानिक प्रगति, न्याय और समानता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक भी होगी।

पटवारी ने अपने पत्र में सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करे और ग्वालियर खंडपीठ परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा की स्थापना के लिए सर्वोत्तम निर्णय सुनिश्चित करे।

दो पक्ष आमने-सामने

ग्वालियर हाईकोर्ट में अंबेडकर की मूर्ति स्थापना को लेकर अधिवक्ताओं के दो पक्ष आमने-सामने है। एक पक्ष बाबा साहब की प्रतिमा स्थापित किए जाने के पक्ष में है, तो दूसरा विरोध कर रहा है।

अधिवक्ता धर्मेंद्र कुशवाहा ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, “बाबा साहेब केवल दलितों के नहीं, पूरे देश के प्रेरणा स्रोत हैं। उनका योगदान भारतीय संविधान, लोकतंत्र और न्याय प्रणाली में अमूल्य है। उनकी प्रतिमा लगना न्यायपालिका की गरिमा को बढ़ाएगा।”

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब सुप्रीम कोर्ट और जबलपुर हाईकोर्ट में अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित की जा सकती है, तो ग्वालियर बेंच में क्यों नहीं? उन्होंने बार एसोसिएशन के विरोध को संविधान और सामाजिक न्याय की भावना के खिलाफ बताया।

क्या है पूरा मामला?

गौरतलब है कि ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की मूर्ति को स्थापित करने या हटाने को लेकर पिछले कुछ समय से विवाद चला आ रहा है। इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब कुछ वकीलों और संगठनों ने प्रतिमा को लेकर आपत्ति जताई, जबकि दलित संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे बाबा साहेब का अपमान बताया।

इस पूरे घटनाक्रम पर यूट्यूबर अंजुल बम्हरोलिया ने एक वीडियो बनाया था, जिसमें उन्होंने संवैधानिक मूल्यों की चर्चा करते हुए डॉ. अंबेडकर के योगदान को रेखांकित किया था।

जानिए कैसे शुरू हुआ विवाद?

  • 19 फरवरी 2025 – ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. अंबेडकर की मूर्ति लगाने की मांग को लेकर अधिवक्ताओं ने मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन सौंपा।

  • 26 मार्च 2025 – जबलपुर स्थित प्रधान रजिस्ट्रार ने अधिवक्ताओं के समर्थन के आधार पर मूर्ति स्थापना के आदेश दिए।

  • 21 अप्रैल 2025 – रजिस्ट्रार ने PWD को स्थल पर मंच निर्माण कर मूर्ति स्थापित करने के निर्देश दिए।

  • 10 मई 2025 – मूर्ति का विरोध कर रहे वकीलों ने स्थल पर तिरंगा फहराया, पुलिस से झड़प हुई।

  • 14 मई 2025 – वकीलों के दो गुटों में टकराव, सोशल मीडिया पर पोस्टर वॉर शुरू।

  • 17 मई 2025 – हाईकोर्ट परिसर में भीम आर्मी के सदस्य पर हमला हुआ, जिससे तनाव बढ़ गया।

  • 23 मई 2025 – बसपा प्रमुख मायावती ने बयान दिया कि मूर्ति विरोध जातिवादी मानसिकता का परिणाम है, सीएम और राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग की।

  • 24 मई 2025 – कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने CJI को पत्र लिखकर मूर्ति विरोध की निंदा की।

  • 25 मई 2025 – प्रशासन ने 26 मई को होने वाली सभा की अनुमति देने से इनकार कर दिया।

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