भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक 14 वर्षीय नाबालिग रेप पीड़िता बच्ची के मामले में गंभीर चिंता जताई है। बच्ची इस वक्त साढ़े सात महीने की गर्भवती है। यह मामला बालाघाट जिले के बहला थाना क्षेत्र का है। जिला न्यायालय, बालाघाट ने पीड़िता के गर्भपात की अनुमति के लिए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को पत्र लिखा था। हाईकोर्ट की समर वेकेशन बेंच ने इस पत्र को याचिका मानते हुए स्वतः संज्ञान लिया और सुनवाई शुरू की।
इस मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति दीपक खोत ने राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। उन्होंने कहा कि यह समझना बेहद जरूरी है कि आखिरकार गर्भ इतनी देर तक कैसे बढ़ गया और इसमें किन अधिकारियों की लापरवाही रही। कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ एक चिकित्सा अनुमति का मामला नहीं है, बल्कि एक गंभीर प्रशासनिक चूक का विषय भी है।
राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता अंशुमन स्वामी अदालत में उपस्थित रहे। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि आखिर रेप की एफआईआर कब दर्ज हुई, मेडिकल जांच कब की गई, और गर्भपात की प्रक्रिया में इतनी देरी क्यों हुई। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 20 फरवरी 2025 को हाईकोर्ट द्वारा जारी की गई गाइडलाइन का पालन हुआ या नहीं, यह बात भी रिपोर्ट में स्पष्ट होनी चाहिए। इस गाइडलाइन में कहा गया था कि यदि कोई नाबालिग रेप पीड़िता 24 सप्ताह (लगभग छह महीने) से अधिक गर्भवती हो, तो गर्भपात के लिए हाईकोर्ट से ही मार्गदर्शन लिया जाए। यह आदेश राज्य के सभी संबंधित विभागों को भेजा गया था।
मेडिकल रिपोर्ट पर कोर्ट की नाराजगी
हाईकोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि बालाघाट के सिविल सर्जन की रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं है कि बलात्कार की रिपोर्ट थाने में कब दर्ज हुई और मेडिकल टीम ने कितना जल्दी या देर से कार्यवाही की। न्यायमूर्ति खोत ने स्पष्ट किया कि यदि यह साबित होता है कि किसी भी स्तर पर लापरवाही हुई है, तो जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
अदालत ने यह साफ कर दिया कि सिर्फ गर्भपात की अनुमति देना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि जो भी व्यक्ति या विभाग समय पर कार्रवाई करने में असफल रहे, उनके खिलाफ भी कठोर कदम उठाए जाएं।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 9 जून को होगी। उस दिन सरकार को विस्तृत रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करनी होगी, जिसमें हर बिंदु पर जवाब मांगा गया है।
क्या कहता है कानून?
गर्भपात कानून: भारतीय दंड संहिता (IPC) और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) एक्ट के तहत 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति है, विशेष परिस्थितियों में यह अवधि बढ़ाई जा सकती है।
गोपनीयता कानून: POCSO एक्ट और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत पीड़िता और बच्चे की पहचान गोपनीय रखने का प्रावधान है।