अयोध्या। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को निर्माणाधीन राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का भव्य आयोजन होगा। आयोजन की युद्धस्तर पर तैयारियां चल रही हैं, लेकिन अयोध्या में कई ऐसे परिवार है जो इस चकाचौंध से दूर मुफलिसी और परेशानी में अपनी रात और दिन गुजार रहे होंगे। द मूकनायक ने राम मंदिर निर्माण से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए अयोध्यावासी कुछ लोगों से बातचीत की और उनके दर्द को जाना।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले के बाद राम जन्मभूमि बनाने का कार्य तेजी से चल रहा है। लगभग 2.77 एकड़ में बनी बाबरी मस्जिद का फैसला हिंदुओं के पक्ष में आया। इसके बाद उससे हजार गुना बड़ी 67 एकड़ की जमीन पर राम मंदिर कॉम्प्लेक्स का निर्माण कराया जा रहा है। ऐसे में विवादित ढांचे के पास रह रहे कई लोगों को बेघर होना पड़ा।
राम जन्मभूमि से सटी हुई जमीन को रामकोट क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। यह नगर निगम अयोध्या का वार्ड नम्बर 54 है। इस क्षेत्र में बाबरी मस्जिद (अब राम मंदिर) से लगभग 10 मीटर की दूरी पर अहिराना मोहल्ला मौजूद था। इसमें दो दर्जन से अधिक घर थे।

इसी मोहल्ले के रहने वाले 21 साल के राजन यादव का परिवार यहां कई पीढियों से रह रहा था। वहीं मकान लगभग ढाई बिसवां जमीन (लगभग 3 हजार स्क्वायर फुट) में बना हुआ था। राजन द मूकनायक को अपना आधार कार्ड, राशन कार्ड, बिजली का बिल और हाउस टैक्स जैसे जरूरी दस्तावेज दिखाते हुए कहते हैं, ”मेरा जन्म इसी अहिराना मोहल्ले में हुआ। मेरे पिता रामू यादव भी यहीं पैदा हुए थे। इस जगह पर रहकर मेरे बाबा और पिता ने पक्का मकान बनवाया था। हमें यह जानकारी नहीं थी कि सरकार हमसे यह जमीन छीन लेगी। कम से कम हमारा घर बनाने में जो लागत आई उसका पैसा तो हमें दे देते। किसी अन्य जगह पर हमें मकान या जमीन दे देते। ऐसा नहीं हुआ। मेरे पिता का देहांत 2004 में हुआ था। मैं ही घर मे सबसे बड़ा हूँ। मेरे घर में मेरी तीन बहनें रानी यादव (19), तनु यादव (15), मनु यादव (14), मेरी माँ ज्ञानमती यादव (45) और मेरे बूढ़े बाबा हैं।"

राजन आगे कहते हैं, "मैंने पिता की मौत के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ दी। बहनों की शादी और पढ़ाई की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है। नेशनल स्तर पर रेसलिंग खेलकर अपने जिले का नाम रौशन किया है। अब सब छूटता जा रहा है। घर बनवाने में काफी पैसा लगा था। अब नए सिरे से शुरुआत करनी पड़ेगी। 2006 में किसी तरह हमने एक प्लाट खरीदा था। अब उस पर ही झोपड़ी बनाकर रह रहा हूँ। घर बनवाने तक का हमारे पास पैसा नहीं बचा है।"
राजन, नगर निगम द्वारा तोड़े गए मकान को लेकर द मूकनायक से कहते हैं, "राम मंदिर बन रहा है. विश्व यही चाहता है, लेकिन किसी को उजाड़ कर राम मंदिर बनाना अच्छी बात नहीं है। मेरे मोहल्ले में लगभग 7 लोग ऐसे हैं, जिन्हें एक भी पैसा नहीं मिला है। सरकार को हमारी पीड़ा भी समझनी चाहिए।"

अहिराना मोहल्ले की तरह ही दुराही कुआं क्षेत्र, कटरा मोहल्ला, मौर्या मोहल्ला, कौशल्या घाट, राज घाट, रैन बसेरा जैसे कई मोहल्ले राम जन्म भूमि पथ, भक्ति पथ और राम पथ के चौड़ीकरण में लगभग चार हजार लोगों के मकान और दुकान प्रभावित हुए हैं।
समाजवादी पार्टी के नेता नंदू गुप्ता ने द मूकनायक से कहा, "रामजन्म भूमि मार्ग लगभग 800 मीटर लंबा, भक्ति पथ लगभग 800 मीटर और राम पथ लगभग 13 किमी लंबा है। रामपथ को लगभग 20 मीटर और भक्ति पथ को लगभग 14 मीटर चौड़ा किया गया है। इस कार्रवाई में 1600 से दुकानदार ऐसे हैं, जिनकी दुकानें पूरी तरह खत्म हो गईं। लगभग तीन हजार लोग ऐसे हैं जिनके घर और मकान अब आधे हो गए हैं। जब यह कार्रवाई शुरू हुई तब हमने विरोध प्रदर्शन किया था। इस मामले में अब तक दो बार मुकदमा भी दर्ज किया जा चुका है।"

राम जन्म भूमि से सटे अहिराना मोहल्ले में रहने वाले रविन्द्र यादव द मूकनायक को बताते हैं, "प्रधानमंत्री आवास योजना की तरफ से मुझे मकान बनाने के लिए ढाई लाख रुपए मिले थे। बेटी की शादी के लिए रखा हुआ तीन लाख रुपया मिलाकर घर बनवाया था। रंगाई-पुताई के लिए पचास हजार का कर्जा भी लिया था। अब घर भी टूट गया, न तो घर मिला और न ही जमीन मिल सकी है। सारे सपने टूट गए।"

अहिराना मोहल्ले की रहने वाली गीता यादव ने द मूकनायक को बताती हैं, "मेरा मकान एक बिसवां (लगभग 1300 स्क्वायर फुट) में बना था। चार कमरे लेट्रिन बाथरूम और किचन था। मेरी एक बेटी और तीन बेटे हैं। अभी किसी की शादी नहीं हुई है। मुझे न तो जमीन मिली है और न घर ही मिला है। मेरे पति मजदूरी (मिस्त्री) करते हैं। मकान मेरे पति ने ही मकान बनाया था जो तोड़ दिया गया। ऊषा देवी इस समय राम मंदिर के पीछे अस्थाई रूप से बनाई झोपड़ी में रह रही हैं।"
दुकान तोड़ दी गई, अब किराए की लग रही लाखों रुपए कीमत
दोराही कुआ रामकोट के रहने वाले रामनारायण मौर्या द मूकनायक को बताते हैं, "मेरी दुकान रामन्दिर से पचास मीटर दूरी पर थी। उसे देर रात में तोड़ दिया गया। सामान तक निकालने नहीं दिया गया। इस दुकान की शुरुआत मेरे पिता ने की थी। पहले वह जमीन पर सामान लगाते थे। फिर मन्दिर के पुजारी ने इस जमीन पर हमें दुकान बनाने दी। इसका किराया भी हम देते थे। पहले किराया मात्र 350 रुपए था। दुकान हटाने के लिए हमें एक लाख रुपए दिया गया और यह भी कहा गया था दुकान मिलेगी, लेकिन सरकार ने अब इसकी कीमत 15 से 20 लाख रुपए की पगड़ी जमा करने के बाद देने को कहा है। इसके अतिरिक्त इसका हर महीने किराया भी देना पड़ेगा। ऐसे में हम गरीब दुकान वाले जमीनों को खरीदने में सक्षम नहीं है। बड़े-बड़े बिजनेस मैन इन दुकानों को ले रहे हैं।"
रामजन्म भूमि ट्रस्ट के मीडिया प्रभारी शरद के मुताबिक जो भी जमीन मंदिर बनाने के लिए ली गई है। उसका उचित मुआवजा ट्रस्ट द्वारा लोगों को दिया गया है। वहीं जिनके घर नजूल की भूमि के कारण तोड़े गए उसे लेकर नगर निगम अयोध्या के मेयर महंत गिरीश त्रिपाठी ने द मूकनायक को बताया, "जिन लोगों का मकान तोड़ा गया है, यदि उनमें से किसी को कुछ भी नहीं मिल सका है, 22 जनवरी के कार्यक्रम के बाद उनका निरीक्षण कराकर आवास के लिए मदद की जाएगी।"