डिंडीगुल- पश्चिमी सिंहभूम जिले के मंझारी और तांतनगर प्रखंड की आदिवासी युवतियों ने मई माह में तमिलनाडु के डिंडीगुल स्थित Adishankara Spinning Mills Pvt Ltd में नौकरी पाने के उद्देश्य से कदम रखा था। लेकिन अब ये लडकियाँ प्रशासन से अपील कर रही हैं कि उन्हें अपने घर झारखंड लौटने में मदद की जाए।
jharkhand मुख्यमंत्री, पश्चिमी सिंहभूम उपायुक्त और श्रम विभाग के अधिकारी को संबोधित करते हुए सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक चिट्ठी ने उनकी पीड़ा को उजागर किया. युवतियों ने चिठ्ठी में लिखा कि वे विभाष महतो नाम के एजेंट के जरिये कम्पनी में नौकरी करने आई थी लेकिन अब वे आगे कम्पनी में काम नहीं करना चाहती हैं, वे कम्पनी द्वारा इंतजाम किये गए एक होस्टल में रहती हैं लेकिन वार्डन घर जाने की इजाजत नहीं दे रही हैं. चिठ्ठी के मुताबिक़ होस्टल वार्डन का कहना है कि जो उन्हें यहाँ लेकर आया है, उसके साथ ही होस्टल से भेजा जाएगा.
इस मामले में जब द मूकनायक ने पड़ताल की कहानी के दो विपरीत पक्ष सामने आये. एक तरफ जहां युवतियों ने बताया कि सभी अपने-अपने पारिवारिक कारणों जैसे बीमारी, परिजनों की मृत्यु आदि के कारण घर जाना चाहती हैं, वहीं दूसरी ओर उन लडकियों को कपनी में लाने वाले प्रभारी विभाष महतो का कहना है कि इन लडकियों ने कंपनी के नियम के अनुसार 15 दिन एडवांस में छुट्टी की सूचना नहीं दी और अचानक से 7 तारीख को वेतन मिलने के बाद एक साथ घर जाने की रट पकड ली, इनसे कोई जबरदस्ती काम नहीं करवा रहा है और जितने दिन काम किया उसके अनुसार बाकायदा वेतन नही दिया गया है. बताया जाता है कि सभी लडकियां 4 दिन से काम पर नहीं जा रही हैं और कमरे में ही बैठी हैं.
मूकनायक ने इस मामले की पड़ताल के दौरान युवतियों से बातचीत की। उन्होंने अपनी समस्याएं साझा करते हुए बताया कि वे मानसिक और शारीरिक तनाव से गुजर रही हैं। लडकियों ने कहा कि कहना है कि एजेंट का कहना है अगर हम घर लौटना चाहती हैं, तो हमें 8-8 हजार रुपये जमा करने होंगे। एजेंट विभाष महतो से संपर्क करने पर वह फोन कॉल तक रिसीव नहीं करता।
आदुर गाँव की जिंगी हासदा ने हमें बताया कि मई 2024 में विभाष महतो नामक एजेंट के जरिए सभी युवतियों को डिंडीगुल भेजा गया था। उन्हें 10-12 हजार रुपये मासिक वेतन का वादा किया गया था। लेकिन वास्तविकता में उन्हें किसी भी माह 8 हजार रुपये से अधिक का भुगतान नहीं हुआ।
इसके अलावा, उनके वेतन से कमरे का किराया और खाने का खर्च काटा गया, जिसकी कोई पारदर्शिता नहीं रखी गई। जिंगी मेट्रिक पास है , आगे पढाई करना चाहती थी लेकिन परिवार की आर्थिक हालात देखते हुए उसने खुद ही रोजगार का रास्ता चुना. जिंगी बताती हैं, " मेरे पापा नहीं है, अपनी माँ के साथ मामा घर में पली बढ़ी. घर खर्च चलाने के लिए नौकरी करने आई लेकिन अब माँ बीमार हैं और घर जाना चाहती हूँ लेकिन हमे जाने नहीं दिया जा रहा."
मुमती बिरुवा ने बताया उसकी खुद की तबियत खराब है और इसलिए घर जाने को मन है.
एक अन्य लडकी सीता गागराई ने बताया एक छोटे कमरे में हम 9 लड़कियां चटाई बिछाकर सोते हैं। खाना भी स्थानीय आदतों के अनुसार नहीं है। नारियल मिली हुई दाल और चावल प्रतिदिन दिया जाता है, जो युवतियों को रास नहीं आता। सप्ताह में केवल एक बार चपाती दी जाती है। सीता से घर लौटने की वजह पूछने पर उसने बताया उसके दो मामा के निधन के चलते उसे परिवार के साथ होने की जरूरत है।
तिप्पिल गाँव की फूलमुनि हासदा ने बताया उसे किसी महीने 6 हजार, कभी 7 और एक बार 8 हजार रूपये वेतन मिला है, सप्ताह में एक दिन सभी को अवकाश मिलता है लेकिन लडकिया कहती हैं कि कभी कभी छुट्टी के दिन भी काम करवाया जाता है.
फूलमुनि अपने घर में 6 भाई- बहनों में सबसे बड़ी है, पूरे परिवार का खर्चा अकेले पापा उठा नहीं पा रहे थे इसलिए वो तमिलनाडू में नौकरी करने आई. फूलमुनि ने बताया कि घर में उसकी माँ बीमार हैं, उन्हें कैंसर हुआ है, खून की उल्टिया हो रही हैं और इसलिए वो जल्दी से जल्दी घर जाना चाहती है.
झारखंड के प. सिंहभूम जिला, मंझारी प्रखंड की आदिवासी लड़कियां तमिलनाडु के Adishankara Spinning Mills, Dindigul में रोजगार के लिए गई थीं। अब वे झारखंड वापस आना चाहती हैं, लेकिन उन्हें वापस आने नहीं दिया जा रहा है। प्रशासन और सरकार से निवेदन है कि तुरंत कार्रवाई करें। @PMOIndia… pic.twitter.com/WZs9Xxridm
— Tribal Army (@TribalArmy) December 11, 2024
इस मामले में मूकनायक ने विभाष महतो से विस्तृत बातचीत की। विभाष ने बताया कि युवतियां पूरी तरह सुरक्षित और स्वस्थ हैं, और उनके जबरन काम करवाने के आरोप गलत हैं। पश्चिम बंगाल निवासी 27 वर्षीय विभाष नें बताया वे 2016 से कंपनी में काम कर रहे हैं और 2019 से लेबर जुटाने के काम से जुड़कर अब तक 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार पर रखा है। कुछ लडके बंगाल से हैं जबकि लडकिया सभी झारखण्ड से आयीं हैं.
उन्होंने कहा, "कंपनी द्वारा 2 महीने की ट्रेनिंग देकर काम सिखाया जाता है। सभी कर्मचारियों को पहले ही यह शर्त स्पष्ट कर दी जाती है कि छुट्टी के लिए 15 दिन की पूर्व सूचना देनी होगी। इमरजेंसी में ऐसी बाध्यता नहीं है, लेकिन क्या एक साथ 19-20 लोगों को इमरजेंसी हो सकती है?"
कपड़ा बनाने वाली इस कम्पनी में रुई से धागा और धागे से कपड़ा बनाने का काम होता है जिसमे इन कमर्चारियों को लगाया जाता है. कपनी में तीन शिफ्ट चलते हैं- मोर्निंग, हाफ नाईट और नाईट शिफ्ट. एक एक सप्ताह सभी को तीनों शिफ्ट में काम करना होता है लेकिन लडकिया अधिकांश मोर्निंग और हाफ नाईट शिफ्ट में ही काम करती हैं. वतर्मान में इन्हें प्रतिदिन 450 रूपये के हिसाब से वेतन दिया जाता है, हाफ नाईट शिफ्ट पर प्रति दिन 20 रूपये और नाईट शिफ्ट पर 40 रूपये अतिरिक्त देय है और हर माह 26 दिन काम करने होते हैं. विभाष कहते हैं- आप चाहे तो आपको कम्पनी के सभी कर्मचारियों की सैलरी स्लिप भेजता हूँ, सभी को अटेंडेंस के हिसाब से बैंक में वेतन क्रेडिट किया जाता है, पूरी पारदर्शिता है.
विभाष ने आगे कहा, "युवतियों के घर वापसी की बात पर मैंने उनसे केवल 10 दिन का समय मांगा था। अचानक इतने सारे लोग घर लौट जाएंगे तो कंपनी की 20-30 मशीनें बंद हो जाएंगी। मैंने अभी कुछ दिन पहले ही 6 लड़कियों को घर भेजा है। उसके बाद एक अलग ग्रुप को भेज रहा हूं। जिनका आवेदन पहले आया, उनकी छुट्टी मंजूर हो सकती है। मैं भी कंपनी के नियम से बंधा हुआ हूं, लेकिन लड़कियां इसे समझना नहीं चाहती हैं।
विभाष कहते हैं सोशल मीडिया पर पत्र वायरल होने के बाद नेता, परिजन सब फोन कर रहे हैं और मैं किसी से भी बात करने से बच नहीं रहा- ना तो लडकियों के वेतन से कई भी गलत कटौतियां की जा रही हैं ना ही किसी को पैसे देने को कहा गया है. विभाष के अनुसार इसी टीम की दमयंती नाम की युवती कुछ समय पहले किसी दूसरी कपनी में काम करने गई लेकिन वहां काम का वातावरण ठीक नहीं लगने पर दुबारा यहीं आगई. विभाष कहते हैं नौकरी लगने से पहले परिवार और लडकियों को काम की शर्त, कम से कम 6-8 माह काम करने की अनिवार्यता बता दी जाती हैं लेकिन काम मिलने के बाद अनुशासन इन्हें बुरा लगता है.
विभाष यह भी कहते हैं कि युवतियां बीमार होने पर डॉक्टर को दिखाने की बजाय पूजा पाठ झाड फूंक पर जोर देती हैं, सही तरीके से खाना नहीं खाती जिससे आये दिन बीमार होकर छुट्टी लेती हैं.
तमिलनाडू में डिंडीगुल के अलावा अन्य जिलों में भी सैकड़ों ऐसी कम्पनिया हैं जहाँ दुसरे राज्यों से युवक युवतिया रोजगार की तलाश में आते हैं. लेकिन रहन सहन, संस्कृति का फर्क, नियम कायदों की सख्ती आदि कुछ वजहों से कई बार ये नए वातावरण में ढल नहीं पाते हैं जबकि कई जगह जेन्युइन ऐसे भी केस होते हैं जहाँ लेबर नियमों की अनदेखी, रहने खाने की अव्यवस्था, सुरक्षा के गंभीर मुद्दे बनकर सामने आते हैं.
द मूकनायक ने डिंडीगुल कलेक्टर और सोशल वेलफेयर अफसर से सोशल मीडिया पर वायरल मुद्दे को लेकर जानकारी शेयर की और मामले की पड़ताल का आग्रह किया. अधिकारियों से कोई रेस्पोंस मिलने पर समाचार को अपडेट किया जाएगा.