TM Ground Report: आनंदपुर धाम की ऊँची दीवारों के सामने टूटता आदिवासी हक़, सहारिया परिवारों की ज़मीन हड़प रहे महात्मा!

03:11 PM Oct 27, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। “बेटा… पिछले साल, 2024 के अप्रैल महीने में… हमारे ही खेत पर बनी हमारी छोटी-सी झोपड़ी को, आनंदपुर धाम के महात्माओं ने आग लगा दी थी। हम बरसों से वहीं खेती करते रहें हैं… वहीं सोते-जागते थे… लेकिन उन्होंने, झोपड़ी जला दी..”

इतना कहकर वे कुछ क्षण के लिए चुप हो गईं। द मूकनायक से बातचीत के दौरान 70 वर्षीय भमरिया बाई, जमड़ेहरा गाँव की एक बुज़ुर्ग सहारिया महिला, अपने दर्द को रोक नहीं पा रहीं थीं। उनकी आँखों में नमी थी और आवाज़ काँप रही थी। उन्होंने आँचल से आँखें पोंछीं और फिर बोलीं- “वे लोग कहते हैं कि ये जमीन छोड़ दो, नहीं तो तुम्हारे बच्चों को जान से मार देंगे। हमारे लालाराम को… मेरे बेटे को… महात्मा सुरेंद्र और प्रीतम कई बार पीट चुके हैं। हम ग़रीब लोग क्या करें? कहाँ जाएँ? किससे लड़ें? हम तो बस अपनी जमीन पर जीना चाहते हैं… खेती करना चाहते हैं।”

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70 वर्षीय भमरिया बाई, जमड़ेहरा गाँव की एक बुज़ुर्ग सहारिया महिला, अपने दर्द को रोक नहीं पा रहीं थीं, उन्होंने बताई जमीन पर कब्जे की पूरी कहानी

उन्होंने आगे कहा, “हम तो यही जानते हैं बेटा… जमीन हमारी माँ होती है। माँ को कैसे छोड़ दें? जान चली जाए, पर जमीन नहीं छोड़ेंगे।”

दरअसल, मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले की ईसागढ़ तहसील मुख्यालय से सिर्फ़ तीन किलोमीटर दूर बसा श्री आनंदपुर धाम पिछले कुछ समय से जमीन कब्ज़े, मारपीट और जान से मारने की धमकियों के आरोपों को लेकर चर्चा में है। आसपास के गाँवों के सहारिया आदिवासी, सहित अन्य ग्रामीण कहते हैं कि ट्रस्ट से जुड़े कुछ लोग, जिन्हें यहाँ महात्मा (सीनियर) और भगत (जूनियर) कहा जाता है, धीरे-धीरे उनकी जमीनों पर कब्ज़ा कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पहले उन्हें आश्रम में खेती, मजदूरी, ड्राइवरी, माली जैसी नौकरियाँ देकर निकटता बनाई जाती है, फिर दबाव, लालच और डर के मिश्रण से ज़मीनें हड़पी जाती हैं।

धाम को लेकर आकार-परिमाण पर भी अलग-अलग दावे सामने आते हैं, कुछ दस्तावेज़ों और दावों में 315 हेक्टेयर का जिक्र मिलता है, तो ग्रामीण 20 हज़ार बीघा में फैलाव की बात करते हैं। करीब 52 बड़े-बड़े रकबे जिन्हें गाँव के लोग चक्क कहते हैं। यहां चारों ओर से बाउंड्री वॉल से कवर किए गए हैं।

स्थानीयों का कहना है कि बड़े-बड़े वैभवपूर्ण आयोजन यहाँ होते रहे हैं और प्रधानमंत्री एवं संघ प्रमुख जैसे शीर्ष नेताओं के आगमन का भी ज़िक्र वे करते हैं। पर मौजूदा विवाद में मुद्दा वैभव का नहीं, बल्कि वंचितों के अधिकारों का है।

द मूकनायक ने ईसागढ़ के आनंदपुर धाम से सटे गाँवों में ज़मीन पर उतरकर इस पूरे विवाद की पड़ताल की। जमडेरा जैसे गाँव आज भी सहारिया आदिवासियों की बदहाली की जीवित तस्वीर बने खड़े हैं, जहाँ आर्थिक तंगी, शिक्षा की कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव और सामाजिक उपेक्षा रोज़मर्रा की सच्चाई है। गाँव में प्रवेश करते ही टूटी पगडंडियाँ, कच्चे मकान, पत्थर की दीवारें और जर्जर झोपड़ियाँ साफ़ बता देती हैं कि विकास की रौशनी इन घरों की दहलीज़ तक कभी पहुँच ही नहीं पाई। सहारियों का यही भोलापन, भरोसा और समझ की कमी आज उनके शोषण, जमीन हड़पने के खेल और दबाव की राजनीति का सबसे बड़ा आधार बन चुका है।

काम दिलाते हैं, फिर काग़ज़ बनवाकर ज़मीन ले लेते हैं!

द मूकनायक की ग्राउंड पड़ताल में कई सहारिया परिवारों ने एक जैसे अनुभव सुनाए:

निकटता और निर्भरता: आश्रम/ट्रस्ट से जुड़े लोग गाँव में आकर रिश्ते बनाते हैं, परिवार के किसी सदस्य को आश्रम में मौसमी काम दे देते हैं।

‘काग़ज़ी’ उलझन: कुछ समय बाद दस्तावेज़ी खेल शुरू होता है: बँटवारे, बटाई, पट्टा, गिरवी, देखरेख या दान जैसे शब्दों के सहारे काग़ज़ बनते-बनवाए जाते हैं, ग्रामीणों का आरोप है कि असल अर्थ छिपा लिया जाता है। यह काम पिछले 3 दशकों से चल रहा है।

दबाव और डर: आरोप है कि विरोध करने पर धमकियाँ, कभी-कभी मारपीट तक होती है, और पुलिस-प्रशासन तक पहुँचने पर समझौता कराने का दबाव आता है।

ट्रस्ट के महात्माओं पर आरोप

महात्मा सुरेंद्र और प्रीतम भगत के नाम ग्रामीणों ने आरोपों में लिए। उनका कहना है कि गाँवों में गुंडागर्दी से चुप्पी छा जाती है, लोग बेबात पीटे जाने और आधी रात खेतों पर कब्ज़ की घटनाएँ बताते हैं। कई लोगों ने कहा कि ट्रस्ट से जुड़े कर्मचारी, समर्थक अन्य राज्यों (हरियाणा, पंजाब आदि) के मूलतः निवासी यहाँ आते-जाते हैं और बाहरी ताक़त का प्रभाव भी दिखता है।

आनंदपुर धाम ट्रस्ट, अशोकनगर

द मूकनायक से बातचीत में लालाराम सहरिया, जमड़ेहरा गाँव के एक किसान, अपनी पीड़ा बयान करते हुए बार-बार यही कह रहे थे- “हमारी जमीन हमारा सब कुछ है… इसे छीनने का क्या हक़ है उन्हें?”

लालाराम बताते हैं, “हमारी 18 बीघा जमीन पर ट्रस्ट वाले कब्जा करना चाहते हैं। कहते हैं कि मेरे दादा–पिता ने वो जमीन ट्रस्ट को दे दी थी, लेकिन ये झूठ है। हमारी तीन-तीन पीढ़ियाँ उसी जमीन पर खेती करती आई हैं। हमने वहीं अनाज उगाया, वहीं अपना घर चलाया, वहीं से जिंदगी पली-बढ़ी। अब अचानक कोई आकर कैसे कह सकता है कि ये जमीन उनकी है?”

लालाराम आदिवासी और उनकी माँ, घर के सामने बैठे हुए

लालाराम ने आगे बताया कि कैसे ट्रस्ट के लोग ज़मीनों पर कब्जा कर लेते हैं..

उन्होंने कहा, “मैं कई साल तक ट्रस्ट में मजदूरी करता रहा… लेकिन जब मैंने अपनी ही जमीन पर अपना अधिकार मांगा, तो उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया। मुझे काम से निकाल दिया। आज वो ज़बरदस्ती मेरी जमीन पर बाउंड्री खड़ी करना चाहते हैं, जैसे बाकी जगहों पर किया है।”

लालाराम दावा करते हैं कि उनकी जमीन भूमि सर्वे नंबर 541 है, जो 18 बीघा में दर्ज है।

उन्होंने कहा, “मैंने कलेक्टर साहब तक शिकायत की है, उन्होंने कहा एक बार रात में ट्रस्ट के लोग मेरे घर तक पहुँच गए थे… मेरी माँ से मेरे बारे में पूछते रहे। माँ ने कहा वो घर पर नहीं है, तो उन्हें धमका कर चले गए। मुझे कई बार पीट चुके हैं। पुलिस को बताया, पर पुलिस भी हमारी सुनती नहीं…”

द मूकनायक से बात करते हुए एक अन्य महिला, 50 वर्षीय मानकुँवर आदिवासी की आँखों में डर और बेबसी साफ़ दिखाई दे रही थी। वे धीरे-धीरे बोल रही थीं,

उन्होंने कहा- “हमारी 18 बीघा जमीन पर ट्रस्ट वाले पहले ही कब्जा कर चुके हैं। अब उस खेत पर पैर तक नहीं रखने देते। कहते हैं, अगर जमीन पर पैर रखा, तो ट्रैक्टर से बाँधकर पूरे खेत में घसीट देंगे… ऐसा डर फैलाते हैं हम पर।”

मानकुँवर आदिवासी की आँखों में डर और बेबसी है।

इतना कहते-कहते मानकुँवर बाई का गला रुँध गया। कुछ पल चुप रहने के बाद उन्होंने फिर कहा, “वो लोग हमसे कहते हैं, अगर इस जमीन पर आए, तो पैर काट देंगे। बताइए, यह कैसा इंसाफ है? वह जमीन हमारे पुरखों की है… 80 साल से हम वहीं खेती करते आए हैं। वहीं हमारा घर है, वहीं हमारी रोटी उगती है, वहीं हमारा भविष्य है।”

मानकुँवर बाई ने आरोप लगाया कि ट्रस्ट से जुड़े लोग ज्यादातर बाहरी राज्य के हैं और वे “चारों गाँव में आतंक फैलाने की कोशिश कर रहे हैं” ताकि कोई आवाज़ उठाने की हिम्मत ही न कर पाए।

जमड़ेहरा गाँव की आदिवासी बस्ती

इन लोगों की पीड़ा और कहानी सिर्फ़ जमीन का मामला नहीं है। सहारिया समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर है, शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और कानूनी समझ की कमी, ऐसे में कागज़ी पेचीदगियाँ उनके लिए जाल बन जाती हैं। हक़ का काग़ज़ और कब्ज़े का काग़ज़ के बीच का फर्क अक्सर महरून स्याही में कहीं गुम हो जाता है।

आस्था के केंद्र में अधिकारों की दरार!

आनंदपुर धाम को परमहंस अद्वैत मत का महत्वपूर्ण धाम माना जाता है। 1954 में ट्रस्ट की स्थापना के साथ इसकी संस्थागत संरचना बनी और समय के साथ देश-विदेश में सत्संग केंद्र फैलते गए। भक्ति-परमार्थ का केंद्र होने के दावे के साथ यहाँ सामुदायिक सेवा और आध्यात्मिक आयोजन भी होते रहे हैं।

लेकिन धाम के ताज़ा अध्याय में आस्था की गरिमा और अधिकारों की लड़ाई आमने-सामने दिखाई देती है। ग्रामीण कहते हैं- "हम पर धौंस क्यों?”

वे पूछते हैं कि अगर धाम परमार्थ का केंद्र है, तो सबसे हाशिए के समुदाय, सहारिया समुदाय की ज़मीन, इज़्ज़त और सुरक्षा पर यह बोझ क्यों?

क्षेत्रफल के दावों में अंतर भी शक और शोर को बढ़ाता है। ग्रामीणों का कहना है कि सीमांकन (डिमार्केशन) और भू-अभिलेखों का पारदर्शी ऑडिट जरूरी है। रेवेन्यू रिकार्ड, पटवारी की नकलें, नक्शा-खसरा, उपज का इतिहास, और हालिया म्युटेशन की खुली जांच हो- यही उनकी प्रमुख मांग है।

प्रशासन भी पड़ा कमजोर?

द मूकनायक की टीम जब पड़ताल के लिए आगे रवाना होकर, ईसागढ़ तहसील कार्यालय पहुँची, तो तहसील परिसर में असामान्य भीड़ देख कर हम रुक गए। हमने पूछा- “क्या हुआ है?” लोगों ने एक सुर में जवाब दिया।

“आनंदपुर धाम ट्रस्ट के महात्माओं ने हमारी जमीन पर कब्ज़ा कर लिया है… वे मारपीट करते हैं, धमकियाँ देते हैं।”

उनकी आवाज़ में गुस्सा था, पर उससे अधिक लाचारी और डर की मिलीजुली थरथराहट थी।

इसके पहले हमें जानकारी मिली कि अशोकनगर कलेक्टर आदित्य सिंह और एसपी राजीव कुमार मिश्रा विवाद सुलझाने आनंद धाम पहुँचे थे। ग्रामीण और आनंदधाम के महात्माओं से बात करने के बाबजूद मामला पूरी तरह से खत्म नहीं हो सका।

सूत्रों के अनुसार आनंदधाम ने आरोपियों को हटाने का आश्वासन प्रशासन को दिया लेकिन कानून रूप से जो आरोप महात्माओं पर आदिवासी ग्रामीण लगा रहे है, पुलिस को एट्रोसिटी में मामला दर्ज करना चाहिए था।

तहसील कार्यालय ईशागढ

हमने कई ग्रामीणों की पीड़ा, उनका पक्ष और उनकी आपबीती धैर्य से सुनी। इसके पहले हम जमडेरा गाँव में, जाकर ग्रामीणों से मिल चुके थे... इसके बाद हम सीधे अनुविभागीय अधिकारी (SDM) कार्यालय पहुँचे, ताकि प्रशासन का पक्ष जान सकें। लेकिन हमारे प्रश्नों पर SDM त्रिलोचन गौड़, ने कैमरे पर बयान या रिकॉर्डेड बातचीत देने से साफ़ इनकार कर दिया। न एक शब्द सफाई का, न कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया- बस चुप्पी।

हमारे प्रश्नों पर SDM त्रिलोचन गौड़, ने कैमरे पर बयान या रिकॉर्डेड बातचीत देने से साफ़ इनकार कर दिया।

वहाँ से हम आगे ईसागढ़ थाना पहुँचे। एसडीओपी शैलेन्द्र शर्मा से विस्तृत प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने भी रिकॉर्डेड बयान देने से मना कर दिया और बातचीत को औपचारिक रूप से दर्ज करने से कतराते रहे।

यह पूरा अनुभव एक बात को बेहद स्पष्ट कर रहा था, प्रशासनिक इच्छाशक्ति, भय और प्रभाव के बीच कहीं, सच्चाई बोलने का साहस दम तोड़ता दिख रहा था। आनंदपुर धाम की भव्यता, पहुँच और प्रभाव के आगे व्यवस्था की आवाज़ धीमी और पीड़ितों की आवाज़ और भी दबती हुई महसूस हो रही थी।

द मूकनायक से बातचीत में स्थानीय नेता रणवीर सिंह आदिवासी ने कहा- “अंग्रेजों के ज़माने में हमारे पुरखों का जो शोषण होता था, वही इतिहास आज फिर दोहराया जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब नाम अंग्रेज था, और अब इनका नाम ट्रस्ट है। तब हमारी मेहनत छीनी जाती थी, आज हमारी ज़मीन छीनी जा रही है।”

रणवीर सिंह ने आरोप लगाया कि आनंदपुर धाम ट्रस्ट से जुड़े महात्मा आसपास के गाँवों में आदिवासियों के साथ मारपीट, धमकाने और कब्ज़े की घटनाएँ कर रहे हैं।

द मूकनायक से बातचीत में स्थानीय नेता रणवीर सिंह आदिवासी ने कहा- “अंग्रेजों के ज़माने में हमारे पुरखों का जो शोषण होता था, वही इतिहास आज फिर दोहराया जा रहा है।

उन्होंने आगे कहा, “हमने कई बार थाने में शिकायत की, अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन पुलिस एक्शन नहीं ले रही। शिकायत दर्ज करने से लेकर कार्रवाई तक, हर कदम पर टाल-मटोल और दबाव दिखता है। यही वजह है कि आज हालात बेहद नाज़ुक हैं। लोगों में गुस्सा भी है और डर भी।”

द मूकनायक से लालाराम और उसकी माँ ने पीड़ा साझा की

प्रशासन कहाँ है?

गाँवों में जिस तेज़ी से कथित कब्ज़े की घटनाएँ सामने आईं, उसी तेज़ी से प्रशासनिक रोक-थाम दिखनी चाहिए थी, ग्रामीणों का आरोप है कि ऐसा नहीं हुआ। कई लोग कहते हैं कि थाने में सुनवाई मुश्किल है, एफ़आईआर के बजाय रोज़नामचा में जांच जारी लिख दिया जाता है।

दूसरी ओर, ट्रस्ट अपनी छवि को सेवा, आध्यात्मिक कार्यों और स्थानीय लोगों को रोजगार देने वाले संस्थान के रूप में प्रस्तुत करता रहा है। ट्रस्ट प्रबंधन का पुराना दावा रहा है कि वह क़ानूनी प्रक्रिया के तहत ही भूमि लेता है और क्षेत्र में “सामाजिक व धार्मिक कार्य” कर रहा है।

द मूकनायक ने इस विवाद पर ट्रस्ट का पक्ष जानने के लिए सीधे आनंदपुर धाम पहुँचकर महात्माओं से बातचीत करने की कोशिश की, ताकि आरोपों पर उनकी स्पष्ट प्रतिक्रिया ली जा सके। लेकिन मुख्य परिसर के प्रवेश द्वार पर मौजूद सुरक्षा कर्मियों ने कहा कि बिना अनुमति के किसी भी पत्रकार या बाहरी व्यक्ति को आश्रम परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं है।