+

कर्ज के जाल में उलझी मोहन सरकार! त्योहारों और योजनाओं के भुगतान के लिए एक और 5200 करोड़ का लोन, कुल कर्ज 4.64 लाख करोड़ के पार

भोपाल। मध्य प्रदेश की मोहन सरकार लगातार कर्ज के सहारे अपनी योजनाओं और खर्चों को चला रही है। मंगलवार को सरकार एक और 5200 करोड़ रुपए का कर्ज लेने जा रही है। यह चालू वित्त वर्ष का 20वां और 21वां कर्ज होगा। यह रकम दो किश्तों में ली जाएगी, पहली किश्त 2700 करोड़ रुपए की और दूसरी 2500 करोड़ रुपए की। सरकार का कहना है कि यह राशि पूंजीगत योजनाओं के लिए है, लेकिन सरकारी हलकों में यह चर्चा है कि यह कर्ज मुख्य रूप से लाड़ली बहना योजना, मध्य प्रदेश स्थापना दिवस और अन्य सरकारी भुगतानों के लिए जरूरी हो गया है।

दरअसल, भाईदूज पर प्रदेश की 1.27 करोड़ लाड़ली बहनों के खाते में 250 रुपए की राशि समय पर नहीं पहुंच सकी। यह देरी एक संकेत थी कि सरकार पर तत्काल वित्तीय दबाव है। इसके बाद यह नया लोन तय किया गया, जिसका भुगतान 29 अक्टूबर को होना है ताकि 1 नवंबर यानी मध्यप्रदेश स्थापना दिवस से पहले सभी योजनाओं और परियोजनाओं में भुगतान किया जा सके। देव उठनी एकादशी से पहले सरकार इस कर्ज को अपनी आर्थिक जरूरतों के लिए राहत मान रही है।

दो हिस्सों में मिलेगा कर्ज

सरकार का यह नया कर्ज दो हिस्सों में बंटा होगा। पहला कर्ज 21 साल के लिए 2700 करोड़ रुपए का होगा, जिसका ब्याज भुगतान अक्टूबर 2046 तक किया जाएगा। वहीं, दूसरा कर्ज 22 साल की अवधि का 2500 करोड़ रुपए का होगा, जिसका भुगतान अक्टूबर 2047 तक ब्याज सहित किया जाएगा। सरकार इसे आरबीआई के माध्यम से उठा रही है। यह कर्ज राज्य के पूंजीगत खर्चों के तहत मंजूर किया गया है। वित्त विभाग के अनुसार, इस कर्ज का उपयोग सिंचाई परियोजनाओं, पावर प्रोजेक्ट्स और सामुदायिक विकास योजनाओं में किया जाएगा।

लेकिन सवाल यह है कि जब सरकार खुद को राजस्व अधिशेष (रेवेन्यू सरप्लस) बताती है, तब बार-बार कर्ज लेने की जरूरत क्यों पड़ रही है? वित्त विभाग ने दावा किया है कि वित्त वर्ष 2023-24 में सरकार 12,487.78 करोड़ रुपए के राजस्व सरप्लस में रही। इसी तरह 2024-25 में भी सरकार का अनुमानित सरप्लस 1,025.91 करोड़ रुपए का बताया गया है। यानी सरकार के अनुसार उसकी आमदनी खर्च से अधिक है। फिर भी, चालू वित्त वर्ष में सरकार अब तक 42,600 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। यह आंकड़ा बताता है कि राज्य की आमदनी से ज्यादा उसका खर्च बढ़ रहा है, और सरकार को योजनाओं के संचालन और भुगतान के लिए लगातार कर्ज का सहारा लेना पड़ रहा है।

सरकार द्वारा लिया जा रहा यह नया 5200 करोड़ का कर्ज, चालू वित्त वर्ष का 20वां और 21वां कर्ज होगा। इस तरह मोहन सरकार ने केवल सात महीने में लगभग हर पंद्रह दिन में एक नया कर्ज लिया है। अप्रैल से अब तक सरकार कई बार कर्ज के लिए ऑक्शन करा चुकी है। मई से अक्टूबर के बीच राज्य सरकार ने आरबीआई से बार-बार कर्ज उठाया है, जिसकी अवधि 12 साल से लेकर 23 साल तक की है।

कब और कितना लिया कर्ज

वित्त विभाग के रिकॉर्ड बताते हैं कि 1 अक्टूबर को सरकार ने 3000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था, उससे पहले 23 सितंबर को 3000 करोड़ रुपए, 9 सितंबर को 4000 करोड़ रुपए, 26 अगस्त को 4800 करोड़ रुपए, और 5 अगस्त को 4000 करोड़ रुपए के कर्ज लिए गए थे। जुलाई में 4300 करोड़ और जून में 4500 करोड़ रुपए के दो-दो कर्ज उठाए गए। मई में सरकार ने ढाई-ढाई हजार करोड़ के दो कर्ज लिए थे। इन सबके बाद अब यह नया कर्ज राज्य की वित्तीय स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

लाड़ली बहना योजना बन रही बोझ!

वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की यह लगातार उधारी यह दिखाती है कि राज्य का राजकोषीय प्रबंधन कमजोर हो गया है। त्योहारी सीजन में लाड़ली बहना योजना जैसी लोकलुभावन योजनाओं और वेतन-भत्तों के भुगतान के लिए सरकार को अल्पकालिक राहत की जरूरत पड़ रही है। इस समय प्रदेश का कुल कर्ज 4,64,340 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। यदि यही गति रही, तो वित्त वर्ष के अंत तक यह कर्ज 5 लाख करोड़ रुपए के करीब पहुंच सकता है।

राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि सरकार विकास और सहायता की दोहरी रणनीति पर काम कर रही है। एक तरफ वह सिंचाई और बिजली परियोजनाओं के नाम पर पूंजीगत खर्च दिखा रही है, वहीं दूसरी तरफ योजनाओं के भुगतान और राजनीतिक दवाबों को संभालने के लिए कर्ज पर निर्भर है। इससे भविष्य में राज्य की वित्तीय स्थिरता पर असर पड़ सकता है।

हालांकि सरकार लगातार यह दोहराती रही है कि सभी कर्ज लोन लिमिट के भीतर लिए जा रहे हैं और आरबीआई से स्वीकृत हैं। मगर हकीकत यह है कि कर्ज की यह बढ़ती संख्या भविष्य में ब्याज भुगतान का बड़ा बोझ बन जाएगी। हर कर्ज की औसत अवधि 18 से 22 साल तक है, और अधिकांश कर्जों पर ब्याज भुगतान साल में दो बार कूपन रेट के जरिए किया जाएगा। इसका मतलब है कि आने वाले वर्षों में राज्य का बजट एक बड़े हिस्से तक ब्याज की अदायगी में खर्च होगा।

आर्थिक विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर राज्य सरकार इसी रफ्तार से कर्ज लेती रही, तो यह कर्ज केवल योजनाओं को नहीं, बल्कि आने वाली सरकारों को भी प्रभावित करेगा। आज जो राशि विकास परियोजनाओं या जनकल्याण योजनाओं के नाम पर ली जा रही है, वह अगले दो दशकों तक राज्य के आर्थिक ढांचे पर दबाव बनाए रखेगी।

Trending :
facebook twitter