भोपाल। मध्य प्रदेश में सरकारी भर्तियों में आरक्षण को लेकर एक बार फिर गंभीर आरोप सामने आए हैं। कर्मचारी चयन मंडल द्वारा आयोजित ग्रुप-5 पैरामेडिकल स्टाफ सीधी भर्ती 2022 में पद कोड 13 के अंतर्गत आयुर्वेदिक कंपाउंडर (आयुष विभाग) की भर्ती प्रक्रिया को लेकर अनुसूचित जनजाति वर्ग के अभ्यर्थियों ने आरक्षण में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। अभ्यर्थियों का कहना है कि इस भर्ती में तय आरक्षण रोस्टर का पालन नहीं किया गया और आदिवासी वर्ग के साथ सीधा अन्याय किया गया है।
मध्यप्रदेश सरकार की आरक्षण नीति के अनुसार अनुसूचित जनजाति को 20 प्रतिशत और अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए। लेकिन इस भर्ती प्रक्रिया में आयुष विभाग द्वारा अनुसूचित जनजाति को केवल 17 प्रतिशत और अनुसूचित जाति को 19 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। इससे आदिवासी समुदाय के अभ्यर्थियों को उनके हक से वंचित होना पड़ा।
आरक्षण रोस्टर में हुआ गड़बड़ी!
इस भर्ती में कुल 174 पदों पर आयुर्वेदिक कंपाउंडर की नियुक्तियां होनी थीं। निर्धारित आरक्षण के अनुसार अनुसूचित जनजाति वर्ग को 20 प्रतिशत के हिसाब से 35 पद मिलने चाहिए थे, लेकिन उन्हें सिर्फ 30 पद दिए गए। वहीं, अनुसूचित जाति वर्ग को 16 प्रतिशत के हिसाब से 27 पद मिलने थे, लेकिन उन्हें 32 पद आवंटित कर दिए गए। यानि अनुसूचित जनजाति के 3 प्रतिशत आरक्षण को घटाकर अनुसूचित जाति को अतिरिक्त रूप से दे दिया गया। इससे न केवल संविधान की भावना का उल्लंघन हुआ है बल्कि यह आरक्षण नीति के खिलाफ भी है।
अभ्यर्थियों का आरोप है कि इस गड़बड़ी के चलते अनुसूचित जनजाति वर्ग के कई योग्य अभ्यर्थी, जो मेरिट में थे, उन्हें प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया। इससे साफ है कि विभाग की इस लापरवाही से न केवल आदिवासी अभ्यर्थियों को मानसिक आघात पहुंचा है, बल्कि उनके भविष्य पर भी संकट खड़ा हो गया है।
शिकायत पर कार्रवाई नहीं
इस संबंध में प्रभावित अभ्यर्थियों ने सबसे पहले आयुष विभाग को शिकायत सौंपी, लेकिन वहां से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, मध्यप्रदेश राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग और केन्द्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग तक अपनी बात पहुंचाई। लेकिन पत्रकार के अतिरिक्त कोई भी समाधान नहीं हुआ।
छिंदवाड़ा निवासी अभ्यर्थी सुकमन बट्टी ने आरक्षण घोटाले का आरोप लगाते हुए 'द मूकनायक' को बताया कि आयुष विभाग द्वारा ग्रुप-5 आयुर्वेदिक कंपाउंडर भर्ती में अनुसूचित जनजाति वर्ग के साथ अन्याय हुआ है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में अनुसूचित जनजाति को 20% आरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन इस भर्ती में सिर्फ 17% आरक्षण ही दिया गया। वहीं अनुसूचित जाति को तय 16% की जगह 19% आरक्षण दे दिया गया, जिससे आदिवासी अभ्यर्थियों के हक को छीन लिया गया।
सुकमन का कहना है कि इस गड़बड़ी की वजह से कई योग्य आदिवासी अभ्यर्थी मेरिट में होने के बावजूद प्रतीक्षा सूची में चले गए और उनकी नियुक्ति अटक गई। उन्होंने विभाग से लेकर मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और अनुसूचित जनजाति आयोग तक शिकायत की, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। उन्होंने इसे आरक्षण घोटाला बताते हुए न्याय की मांग की है।
3 वर्षों में आयोग का गठन नहीं हुआ
विशेष बात यह है कि वर्तमान में मध्यप्रदेश राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग में अध्यक्ष/सदस्य की नियुक्ति नहीं की गई है। आयोग का संचालन एक प्रशासक के माध्यम से किया जा रहा है, जो स्वयं एक शासकीय अधिकारी हैं। ऐसे में वे किसी विभाग के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं हैं। इससे आयोग की प्रभावशीलता पर सवाल उठ रहे हैं और आदिवासी समाज की आवाज कमजोर हो रही है।
अभ्यर्थियों ने यह भी आरोप लगाया है कि विभाग केवल दिखावे के लिए डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन कर रहा है और सरकार को यह दिखाया जा रहा है कि प्रक्रिया आगे बढ़ रही है। लेकिन हकीकत यह है कि अब तक किसी भी चयनित अभ्यर्थी को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया गया है। इससे यह आशंका और भी गहरी होती जा रही है कि कहीं यह पूरा मामला सिर्फ प्रक्रिया को टालने और दबाने की कोशिश दिखाई दे रही है!
यह पूरा मामला एक ‘आरक्षण घोटाला’ की तरह है!, जिसमें एक वर्ग का हक काटकर दूसरे वर्ग को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार विभाग भर्तियां को विवादित करने के लिए भी जानबूझकर गलतियां कर रहे हैं। ताकि न्यायालय या अन्य शिकायतों से भर्ती प्रक्रिया पूरी न हो सके।
द मूकनायक ने इस संबंध में मध्यप्रदेश सरकार के आयुष मंत्री इंदर सिंह परमार से बात करने के लिए उन्हें फोन किया, लेकिन बात नहीं हो सकी।