नई दिल्ली: आदिवासी मामलों के मंत्रालय (MoTA) ने भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त (RGI) से आग्रह किया है कि देश के सबसे हाशिए पर मौजूद समुदायों — विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) — को आगामी जनगणना में अलग से दर्ज किया जाए। मंत्रालय का मानना है कि यदि पीवीटीजी का सटीक आंकड़ा उपलब्ध हो, तो उनके लिए बनाई जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं का बेहतर तरीके से क्रियान्वयन किया जा सकेगा।
यदि यह प्रस्ताव अमल में आता है, तो यह पहली बार होगा जब पीवीटीजी को जनगणना में अलग से गिना जाएगा। वर्तमान में भारत में 75 पीवीटीजी समूह मौजूद हैं, जो 18 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश (अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह) में फैले हुए हैं। इन समूहों की पहचान उनके निम्न साक्षरता स्तर, दूरस्थ भौगोलिक स्थिति, कृषि-पूर्व तकनीक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर की गई थी।
जनगणना में शामिल नहीं हो पाते सभी पीवीटीजी
करीब 40 पीवीटीजी ऐसे हैं जिन्हें ‘सिंगल एंट्री’ के तहत अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणी में गिना जाता है। उदाहरण के लिए, 2011 की जनगणना में ये 40 समूह दर्ज हुए थे क्योंकि वे अधिसूचित एसटी सूची में आते हैं। लेकिन शेष पीवीटीजी, जो प्रायः बड़ी जनजातियों के उप-समूह होते हैं, उन्हें अलग से दर्ज नहीं किया जाता।
मंत्रालय ने हाल ही में आरजीआई को पत्र लिखकर आग्रह किया कि पीवीटीजी परिवारों और व्यक्तियों की संख्या के साथ-साथ उनकी जनसांख्यिकी, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं को दर्ज करने की व्यवस्था की जाए। मंत्रालय का कहना है कि पीवीटीजी सबसे कमजोर और पिछड़े वर्गों में से हैं, इसलिए उनके लिए एक समेकित डाटाबेस होना बेहद जरूरी है।
विशेषज्ञों की राय
पूर्व आईएएस अधिकारी और ओडिशा राज्य जनजातीय संग्रहालय के निदेशक रह चुके प्रोफेसर ए.बी. ओटा का कहना है कि 75 पीवीटीजी में से 40 समूह राष्ट्रपति आदेश के तहत एसटी सूची में शामिल हैं और इसलिए जनगणना में गिने जाते हैं। लेकिन शेष समूह अलग से दर्ज न होने के कारण उनकी वास्तविक स्थिति की जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती। यह आंकड़ों की कमी नीति निर्माताओं के लिए बड़ी चुनौती है।
उन्होंने यह भी कहा कि हाल ही में शुरू की गई पीएम-जनमन (प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान) जैसी योजनाओं ने कुछ डेटा इकट्ठा करना शुरू किया है, लेकिन अब व्यापक स्तर पर जनगणना में पीवीटीजी की अलग गिनती करना जरूरी हो गया है।
पीएम-जनमन योजना और आंकड़े
नवंबर 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड से पीएम-जनमन योजना की शुरुआत की थी। इस योजना का लक्ष्य है कि तीन वर्षों में पीवीटीजी इलाकों में सड़क, स्वास्थ्य केंद्र, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं की पूरी व्यवस्था की जाए। यह योजना नौ मंत्रालयों के सहयोग से लागू की जा रही है।
योजना शुरू करते समय केंद्र सरकार ने पीवीटीजी की अनुमानित आबादी 28 लाख बताई थी। इसके बाद मंत्रालय और राज्यों ने पीएम गति शक्ति मोबाइल एप के जरिए बस्ती स्तर पर डेटा एकत्र किया। इस सर्वेक्षण में आबादी का अनुमान 45.56 लाख निकला। इसमें सबसे अधिक आबादी वाले राज्य हैं — मध्य प्रदेश (12.28 लाख), महाराष्ट्र (6.2 लाख) और आंध्र प्रदेश (4.9 लाख)।
मानदंड की समीक्षा की जरूरत
मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक प्रोफेसर कमल के. मिश्रा का कहना है कि पीवीटीजी की गिनती से पहले एक विशेषज्ञ समिति को उनके शामिल होने के मानदंडों की समीक्षा करनी चाहिए। कई राज्यों में नामकरण के चलते एक ही समुदाय अलग-अलग जगहों पर अलग तरह से दर्ज है, वहीं कुछ समूह छूट भी गए हैं। वर्तमान में 75 समूह चिन्हित हैं, लेकिन यह संख्या बढ़ या घट भी सकती है।
मिश्रा का सुझाव है कि पीवीटीजी की गिनती के बाद एक डेवलपमेंट इंडेक्स तैयार किया जाए, ताकि यह तय हो सके कि किन समूहों को तत्काल विकास कार्यों की ज्यादा आवश्यकता है, क्योंकि सभी समूहों की स्थिति समान नहीं है।
2027 की जनगणना का रोडमैप
केंद्र सरकार ने जून 2025 में घोषणा की थी कि 2027 की जनगणना दो चरणों में कराई जाएगी और इसमें जातिगत आंकड़े भी शामिल होंगे। पहला चरण अप्रैल 2026 से शुरू होगा, जिसमें मकान सूचीकरण और आवास जनगणना की जाएगी। इसके बाद दूसरे चरण में जनसंख्या की गिनती होगी।