ऑपरेशन कगार के नाम पर आदिवासियों पर सितम: झारखंड के जन संगठनों ने कहा- दमन और हिंसा बंद हो

06:23 PM Jul 06, 2025 | Geetha Sunil Pillai

रांची- झारखंड के जन संगठन, राजनीतिक दल और सचेत नागरिकों ने बस्तर (छत्तीसगढ़), झारखंड और देश के संसाधन समृद्ध आदिवासी क्षेत्रों में "माओवाद खात्मा" के नाम पर बढ़ती हिंसा, दमन, मानवाधिकार उल्लंघन और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की तैयारियों का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों से मांग की है कि वे अपने नागरिकों पर सैन्य आक्रमण तुरंत रोकें और संवैधानिक जिम्मेदारियों का पालन करें।

5 जुलाई को स्टेन स्वामी के शहादत दिवस पर झारखंड के 100 से अधिक सचेत नागरिक और संगठनो ने साझा बयान जारी कर बस्तर व झारखंड के आदिवासियों पर हो रहे राज्य दमन को तुरंत रोकने और भाकपा (माओवादी) के साथ शांतिवार्ता शुरू करने की मांग की।

संगठनों ने अपने सांझा ज्ञापन में कहा कि पिछले कई दशकों से आदिवासियों और उनके सहजीवी समुदायों पर माओवाद के खिलाफ अभियान के नाम पर हिंसा और दमन जारी है, जो हाल के वर्षों में और तीव्र हो गया है। जनवरी 2024 में बस्तर में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार के साथ मिलकर "ऑपरेशन कगार" शुरू किया, जिसमें अब तक लगभग 500 लोग मारे गए हैं, जिनमें अधिकांश आदिवासी हैं। मृतकों में माओवादी और कई सामान्य नागरिक शामिल हैं। सुरक्षा बलों को इन हत्याओं के लिए करोड़ों रुपये का इनाम दिया गया है।

आदिवासियों के शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक विरोध को भी कुचला जा रहा है। बस्तर में "मूलवासी बचाओ मंच" जैसे संगठन, जो जबरन शिविर निर्माण और विस्थापन के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे, पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मंच के युवा नेताओं को UAPA और अन्य फर्जी आरोपों में गिरफ्तार किया गया है।

आगे बताया कि पिछले कुछ वर्षों में बस्तर, झारखंड के आदिवासी सघन क्षेत्रों और पांचवीं अनुसूची वाले राज्यों में PESA और अन्य संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए, बिना ग्राम सभा की सहमति के कई सुरक्षा बल शिविर स्थापित किए गए। कई शिविर रात के अंधेरे में बिना ग्रामीणों को सूचित किए बनाए गए। बस्तर में 160 से अधिक और झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में 25 शिविर बनाए गए हैं। ये शिविर आदिवासियों की सार्वजनिक और रैयती जमीन पर बनाए गए हैं, जिससे गांवों का सामाजिक माहौल खराब हो रहा है, महिलाओं की असुरक्षा बढ़ रही है, और लोगों के दैनिक जीवन पर दमन का साया मंडरा रहा है।

नागरिकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ और झारखंड में माओवाद विरोधी अभियानों का असली उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों को कॉरपोरेट लूट के लिए सुरक्षित बनाना है। ये क्षेत्र खनिज और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं, जिन पर बड़े कारोबारियों की नजर है। ग्राम सभाओं की असहमति और आदिवासियों के प्रतिरोध को दबाने के लिए सरकार कॉरपोरेट हितों की रक्षा में दमनकारी नीतियां अपना रही है।

पिछले कुछ महीनों में भाकपा (माओवादी) ने कई बार युद्धविराम (आत्मरक्षा को छोड़कर) की घोषणा की और शांतिवार्ता में शामिल होने की इच्छा जताई। इसके बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों ने हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन जारी रखा। हाल ही में बस्तर के करेंगुट्टा पर्वत श्रृंखला में तीन सप्ताह तक चले अभियान में 31 लोग, मुख्यतः आदिवासी, मारे गए। इसमें कुछ सशस्त्र माओवादी और कई निहत्थे आदिवासी शामिल थे। सुरक्षा बलों ने शवों के सामने जश्न मनाया और कई शवों को परिजनों से छिपाकर सड़ने तक अस्पताल में रखा। मई 2025 में भाकपा (माओवादी) के महासचिव बसवराजु को कथित रूप से पकड़कर मार दिया गया। उनके और अन्य माओवादी सदस्यों के शवों को पुलिस ने परिवारों की सहमति के बिना जला दिया।

5-6 जून 2025 को बस्तर में 18 या अधिक माओवादी नेताओं को हिरासत में लिया गया, लेकिन उनकी गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं की गई, न ही उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। यह गैरकानूनी और आपराधिक है, जिससे उनकी हत्या की आशंका बढ़ती है।

झारखंड के जन संगठन, राजनीतिक दल और सचेत नागरिकों ने केंद्र, झारखंड और अन्य राज्य सरकारों से निम्न मांगें की हैं:

  1. सशस्त्र आक्रमण और हिंसा तुरंत रोकें और निष्पक्ष सैन्य अभियान विराम लागू करें।

  2. स्थानीय आदिवासियों के साथ उनके मुद्दों पर तुरंत संवाद शुरू करें।

  3. भाकपा (माओवादी) के साथ वार्ता शुरू करें।

  4. मूलवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध हटाएं, नेताओं पर लगे आरोप वापस लें और उन्हें रिहा करें।

  5. ग्राम सभा की सहमति के बिना बनाए गए सुरक्षा बल शिविर और स्कूलों में लगे शिविर हटाएं।

  6. PESA, पांचवीं अनुसूची, वन अधिकार कानून और आदिवासी अधिकारों से संबंधित सभी कानूनों को पूरी तरह लागू करें।