MP: वन भूमि पर कब्जे को लेकर गरमाया सियासी संग्राम, आदिवासी अधिकारों की अनदेखी या अवैध कब्जों पर लगाम?

12:37 PM Aug 05, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। मध्य प्रदेश में इन दिनों वन भूमि पर कब्जों और आदिवासी अधिकारों को लेकर सत्ता और विपक्ष आमने-सामने हैं। विधानसभा के मानसून सत्र में सोमवार को इस मुद्दे पर जबर्दस्त बहस देखने को मिली। सरकार जहां वनाधिकार पट्टों को सैटेलाइट इमेजरी से सत्यापित करने की बात कह रही है, वहीं विपक्ष सरकार पर आदिवासियों को उजाड़ने और बिना सूचना के दावे खारिज करने का आरोप लगा रहा है। यह मामला सीधे तौर पर राज्य के लाखों आदिवासियों के हक और उनके वन परंपरागत अधिकारों से जुड़ा है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सदन में साफ किया कि अब 31 दिसंबर 2005 की स्थिति को सैटेलाइट इमेजरी के माध्यम से ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे यह स्पष्ट होगा कि उस समय किसका वास्तविक कब्जा था। सरकार का दावा है कि यह तरीका अतिक्रमणकारी और वास्तविक दावेदार में फर्क करने में मदद करेगा। मुख्यमंत्री ने यह भी आश्वस्त किया कि बरसात के मौसम में किसी का भी घर नहीं तोड़ा जाएगा।

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि “धरती आबा योजना” के अंतर्गत न केवल आदिवासियों बल्कि जंगलों में रहने वाली अन्य पिछड़ी जातियों को भी योजनाओं का लाभ मिलेगा।

वनाधिकार दावों की स्थिति

वर्तमान में प्रदेश में 2,73,457 वनाधिकार दावे लंबित हैं। इसमें से 87,283 दावे पहले खारिज किए जा चुके हैं, जिनकी अब पुनः समीक्षा की जा रही है। बीते दो वर्षों में 1,86,224 नए दावे दर्ज हुए हैं।

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के अनुसार, वर्ष 2006 से 2025 तक कुल 6.27 लाख वनाधिकार दावे दर्ज हुए हैं, जिनमें से 3.22 लाख दावे खारिज कर दिए गए। उन्होंने केंद्र सरकार की वेबसाइट के आंकड़ों का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि आदिवासियों के वैध स्टेट टाइम दस्तावेजों को भी वन विभाग खारिज कर रहा है।

उजाड़े जा रहे आदिवासी!

विपक्ष ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि विभिन्न जिलों में बिना नोटिस दिए आदिवासियों को वन भूमि से बेदखल किया गया है। उन्होंने कहा बुराहनपुर नेपानगर में बड़ी संख्या में आदिवासियों को उजाड़ा गया।

गुना में 22,890, सिंगरौली में 22,676 और सागर में 30,545 दावे बिना सूचना के खारिज किए गए।

नेता प्रतिपक्ष ने यह भी कहा कि 23 जून को देवास, 26 जून को सीहोर, 9 जून को खंडवा, 5 मई को बुरहानपुर, 8 अप्रैल को गुना और जनवरी में जबलपुर, नरसिंहपुर व सागर के कुल 52 गांवों में वनाधिकार उल्लंघन हुआ और बुलडोजर की कार्रवाई की गई।

2.30 लाख पट्टे और योजनाओं का लाभ

वन राज्यमंत्री दिलीप अहिरवार ने बताया कि अब तक 2,30,000 आदिवासियों को वनाधिकार पट्टे वितरित किए गए हैं, जिनमें कुल 3,70,000 हेक्टेयर भूमि दी गई है। उन्होंने बताया कि इन पट्टाधारकों को सरकार की कई योजनाओं का लाभ भी मिला है:

सरकार की ओर से जवाब में कहा गया, 61,054 पीएम आवास, 55,357 कपिलधारा कूप, 24,366 डीजल पंप, 58,796 खेतों पर भूमि सुधा, 1,86,131 पीएम किसान सम्मान निधि के लाभार्थी, 21,514 को किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए गए। मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार आदिवासियों को केवल जमीन ही नहीं दे रही, बल्कि खेती से जुड़ी सुविधाएं भी सुनिश्चित कर रही है, ताकि उन्हें जीवनयापन के लिए जंगल पर निर्भर न रहना पड़े।

पट्टों की स्वीकृति के लिए जरूरी दो प्रमाण

जनजातीय कार्यमंत्री विजय शाह ने सदन में जानकारी दी कि अब से वनाधिकार पट्टों को मान्य या अमान्य करने के लिए कम से कम दो प्रमाण आवश्यक होंगे। इसके लिए 2005 की सैटेलाइट इमेजरी को मुख्य आधार बनाया जाएगा। मध्यप्रदेश इस दिशा में देश का पहला राज्य है जो यह कदम उठा रहा है।

विपक्ष की ओर से नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और डॉ. हीरालाल अलावा ने संयुक्त रूप से सदन में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव प्रस्तुत किया। तीनों नेताओं ने सरकार से पूछा कि अगर इतने बड़े पैमाने पर दावे खारिज हो रहे हैं तो क्या यह प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायसंगत है?

विपक्ष का कहना है कि आदिवासियों को उनके परंपरागत वनाधिकार से वंचित किया जा रहा है, जबकि सरकार दावा कर रही है कि वह तकनीक की मदद से असली और नकली दावेदारों में फर्क करना चाहती है।