भोपाल। मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल मंडला जिले में राज्य पुलिस की नक्सल विरोधी 'हॉक फोर्स' और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि दो को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस का दावा है कि मारा गया व्यक्ति नक्सली था, लेकिन आदिवासी संगठनों का आरोप है कि यह एक फर्जी मुठभेड़ थी, जिसमें निर्दोष आदिवासी हिरन बैगा की हत्या कर दी गई। इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में आक्रोश फैल गया है, और आदिवासी संगठन न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं।
पुलिस का दावा: मुठभेड़ में मारा गया नक्सली
बालाघाट जोन के पुलिस महानिरीक्षक (IG) संजय सिंह के अनुसार, खुफिया रिपोर्ट के आधार पर 'हॉक फोर्स' ने रविवार को कान्हा राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में तलाशी अभियान चलाया। इस दौरान पुलिस ने नक्सलियों के एक समूह को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने गोलीबारी शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में एक नक्सली मारा गया और दो को गिरफ्तार कर लिया गया।
पुलिस के अनुसार, मुठभेड़ के दौरान कुल 205 गोलियां चलीं—125 गोलियां नक्सलियों ने चलाईं और 80 गोलियां पुलिस ने। मारे गए व्यक्ति के पास से .315 बोर की बंदूक बरामद की गई है। गिरफ्तार किए गए लोगों की पहचान अशोक कुमार वाल्को और संतोष कुमार धुर्वे के रूप में हुई है, जिनकी उम्र 28 वर्ष बताई जा रही है। पुलिस के मुताबिक, ये सभी केबी (कवर्धा-भोरमदेव) डिवीजन के सदस्य थे, जो एमसीसी (महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़) जोन के अंतर्गत आता है।
आदिवासी संगठनों का आरोप: फर्जी मुठभेड़
घटना के बाद, आदिवासी संगठनों ने प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) के प्रदेश अध्यक्ष इंजीनियर कमलेश तेकाम ने इसे ‘पुलिस की सुनियोजित साजिश’ बताते हुए कहा कि वे इस मामले को सड़क से लेकर उच्च न्यायालय तक ले जाएंगे।
आदिवासी एक्टिविस्ट और वकील सुनील आदिवासी ने 'द मूकनायक' से बातचीत में कहा, "जब पूरा देश होली मना रहा था, तब मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने एक निर्दोष आदिवासी हिरन बैगा को नक्सली बताकर गोली मार दी। यह पहली बार नहीं हो रहा। पुलिस लगातार आदिवासियों को फर्जी मुठभेड़ों में मार रही है।"
उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा, "आप देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं, लेकिन जब पुलिस आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ कर रही है, तब आपकी चुप्पी क्यों?"
फर्जी एनकाउंटर्स का पैटर्न?
विशेष पिछड़ी जनजातियों (पीवीटीजी) में शामिल बैगा, भरिया और सहरिया समुदायों के लोगों को लगातार पुलिस की कठोर कार्रवाइयों का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस बिना ठोस सबूतों के आदिवासियों को नक्सली करार देकर मार रही है।
इससे पहले भी मध्यप्रदेश में कई आदिवासी मुठभेड़ों पर सवाल उठ चुके हैं। पुलिस द्वारा मारे गए लोगों को नक्सली बताया जाता है, लेकिन कई मामलों में यह दावा संदिग्ध साबित हुआ है।
गोंगपा और अन्य आदिवासी संगठनों ने इस मामले में निम्नलिखित मांगें रखी हैं:
न्यायिक जांच: मजिस्ट्रेट जांच के बजाय हाई कोर्ट के किसी मौजूदा जज से जांच कराई जाए।
दोषी पुलिसकर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए।
मृतक के परिवार को 1 करोड़ रुपये का मुआवजा और सरकारी नौकरी दी जाए।
प्रदेश सरकार आदिवासियों के खिलाफ हो रहे फर्जी एनकाउंटर्स पर तुरंत रोक लगाए।
जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को तत्काल हटाया जाए।