प्रतापगढ़- जिला कलेक्टर डॉ. अंजलि राजोरिया के नेतृत्व में 'मिशन बाबुल की बिटिया' अभियान के तहत आदिवासी बहुल प्रतापगढ़ जिले में एकल महिलाओं की पहचान और सशक्तिकरण के लिए व्यापक स्तर पर सर्वेक्षण कार्य 10 फरवरी से प्रारंभ किया गया है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य उन महिलाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाना है, जो अपने पति से अलग हो चुकी हैं लेकिन कानूनी रूप से परित्यक्ता या तलाकशुदा घोषित नहीं की गई हैं। इस पहल के अंतर्गत, जिले भर में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए व्यक्तिगत रूप से उनके घर जाकर सर्वेक्षण किया जा रहा है।
जिला प्रशासन ने इस सर्वेक्षण कार्य के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा सहयोगिनियों और साथिनों को शामिल किया है ताकि सर्वे में गहनता और संवेदनशीलता बनी रहे। ये महिलाकर्मी ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर एकल महिलाओं से संवाद कर उनकी समस्याओं को समझेंगी और उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़ने का कार्य करेंगी।
सर्वेक्षण कार्य को सप्ताह-दस दिनों में पूरा करने के लिए बीडीओ को जवाबदेह बनाया गया है। हालांकि, कुछ दुर्गम क्षेत्रों में आवागमन की समस्या होने के कारण सर्वेक्षण में कुछ अतिरिक्त समय लग सकता है। जिला प्रशासन द्वारा तलाक और घरेलु विवादों के मामलों की जानकारी लेने के लिए पुलिस प्रशासन से भी सहायता मांगी गई है ताकि महिला व पुलिस थानों में उपलब्ध डाटा मिल सके।
इसके अलावा उन्हें परित्यक्ता महिलाओं के डेटा का सत्यापन करने और पात्र एकल महिलाओं से आवेदन प्राप्त करने के लिए भी कहा गया है ताकि उन्हें योजनाओं का लाभ मिल सके। इसी के साथ ही उन्होंने निर्देश दिए गए कि सर्वे टीम का गठन इस प्रकार किया जाए की टीम को महिलाओं को अधिक से अधिक समय देने का अवसर मिल सके। इसके साथ ही उन्होंने सर्वे करने वाली टीम को टारगेट-बेस्ड सर्वे करने के लिए कहा ताकि सर्वे समय पर पूरा हो सके और एकल महिलाओं को पूरी तरह से समय मिल सके।
अभियान का जन्म कैसे हुआ?
द मूकनायक से विस्तृत बातचीत में क्लेक्टर अंजलि राजोरिया ने बताया कि इस अभियान की प्रेरणा उन्हें एक व्यक्तिगत अनुभव से मिली। हाल में वे धरियावद ब्लाक के रामेर तालाब गांव में नन्हीं वायरल गेंदबाज सुशीला मीणा से मिलने गईं, तब वहां उन्होंने राहुल मीणा नामक एक अन्य बालक से भी मुलाकात की जिसका भी वीडियो वायरल हुआ था, राहुल और सुशीला दोनों को एक ही कोच क्रिकेट सिखाते हैं।
राजोरिया ने कहा, " राहुल की मां से बातचीत के दौरान मुझे पता चला कि उनका पति उन्हें छोड़कर चला गया था और वह परिवार के भरण-पोषण के लिए संघर्ष कर रही थी। इस घटना ने मुझे झकझोर दिया और मैंने महसूस किया कि ऐसी कई महिलाएं हैं, जो समाज में इस समस्या का सामना कर रही हैं लेकिन किसी सरकारी योजना से लाभान्वित नहीं हो पा रही हैं।"
राजस्थान में पालनहार योजना, विधवा पेंशन और ऐसे कुछ योजनाएं हैं जिनके जरिये महिलाओं को कुछ आर्थिक मदद मिल सकती है लेकिन एकल लेडीज का कोई डाटा बेस नहीं होने से इन्हें लाभ नहीं मिल पाया है। कलेक्टर ने कहा, " ऐसी महिलाओं की पहचान करने के लिए 'मिशन बाबुल की बिटिया' का ख़याल आया और पिछले सप्ताह ही मैंने सर्वेक्षण के आदेश दिए. काम सोमवार से शुरू हुआ.
कलेक्टर ने बताया कि प्रतापगढ़ जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में अकेली महिलाओं के लिए परिवार और बच्चों का भरण-पोषण करना एक आम चुनौती है। यहां की सामाजिक परंपराओं के तहत महिला-पुरुषों को बिना कानूनी तलाक लिए दूसरी शादी करने की छूट होती है। वे पहली पत्नी को मुआवजा देकर या कई बार बिना किसी आर्थिक सहायता के ही छोड़ देते हैं, जिससे महिलाएं असहाय हो जाती हैं और पूरे परिवार की जिम्मेदारी अकेले उठाने को मजबूर होती हैं। अभी तक ऐसी एकल महिलाओ को पहचाने का कार्य नहीं हुआ है. सर्वे के जरिये पहली बार ऐसी सिंगल शादीशुदा लेडीज जिनके बच्चे हो या नहीं हो, को चिन्हित किया जाएगा और इन्हें आत्म निर्भर और सशक्त बनाने का प्रयास होगा.
इस अभियान का उद्देश्य केवल आंकड़े जुटाना नहीं है, बल्कि एकल महिलाओं को उनके अधिकारों और अवसरों के प्रति जागरूक करना भी है। डॉ. राजोरिया ने बताया, " एक बार डाटा संकलन हो जाये उसके बाद हमारी कोशिश होगी कि प्रत्येक चिन्हित महिला को उसकी जरूरत के अनुसार समाधान मिल सके। जो महिलाएं तलाक के कानूनी मामलों में उलझी हैं, लीगल ऐड से उनकी मदद की जाएगी। जो शिक्षा प्राप्त करना चाहती हैं, उन्हें शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे। जो महिलाएं काम करके आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं, उन्हें संविदा के आधार पर नरेगा या अन्य स्कीम में रोजगार से जोड़ा जाएगा। साथ ही, उन महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता दिलाने के प्रयास किए जाएंगे, जिनके पति या बच्चों ने उन्हें छोड़ दिया है।"
राजोरिया ने बताया कि सर्वे के बाद जिला प्रशासन गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को इस अभियान में शामिल करेगा, जो महिलाओं को कानूनी सहायता, स्वरोजगार प्रशिक्षण, शिक्षा और अन्य व्यावसायिक कौशल प्रदान करने में सहयोग करेंगे।
सामाजिक भेदभाव और आर्थिक असुरक्षा
अभियान की प्रगति का निरीक्षण करने सोमवार को जिला कलक्टर स्वयं ग्राम पंचायत खेरोट में कुछ एकल महिलाओं के घर पहुंची और उनके जीवन की चुनौतियों के बारे में जानकारी ली। सर्वे के दौरान कलक्टर ने महिलाओं से संवाद करने पर जाना की ऐसी बहुत सी महिलाएं है जो अपने पति के साथ नहीं रह रहीं है और न ही उनका विधिक रूप से तलाक हुआ है, जिसकी वजह से उन्हें भरण पोषण और पालनहार का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
डॉ राजोरिया ने संवेदनशीलता दिखाते हुए सम्बंधित अधिकारियों को निर्देश दिए कि यदि कोई महिला 3 साल से अधिक समय से अपने पति से अलग रह रही है और उसका विधिक रूप से तलाक नहीं हुआ है, तो उसका परित्यक्तता प्रमाण पत्र सरपंच और ग्राम विकास अधिकारी द्वारा अनुशंसा करने पर एसडीएम द्वारा जारी किया जा सकता है।
उन्होंने कहा की यदि कोई महिला चाहती है तो विधि एवं नियमानुसार उसका परित्यक्तता प्रमाण पत्र बनवा कर सहायता की जाए।
कलेक्टर राजोरिया ने एक वास्तविक घटना साझा करते हुए बताया कि आज की ही बात है, एक महिला ने उनसे अपनी पीड़ा व्यक्त की—पति के छोड़ने के बाद वह अपने मायके में रह रही थी, लेकिन हाल ही में हार्ट अटैक से उसके इकलौते भाई की मृत्यु हो गई। अब न तो उसे पति का सहारा है और न ही मायके का। सोचिए, ऐसी महिला किस तरह जीवन यापन करेगी? जब उसका एकमात्र सहारा भी छिन जाए, तो वह किसके पास जाए? ऐसी ही महिलाओं के लिए 'मिशन बाबुल की बिटिया' एक संजीवनी साबित हो सकता है, जो उन्हें न केवल आर्थिक मदद बल्कि सामाजिक और कानूनी संरक्षण भी दिलाने की कोशिश कर रहा है।
कलेक्टर ने यह भी बताया कि समाज में सिंगल मदर को एक कलंक के रूप में देखा जाता है। उन्हें सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता है, जबकि इसमें उनकी कोई गलती नहीं होती। कई बार छोड़ी गई महिलाओं को विवाह समारोहों में आमंत्रित नहीं किया जाता या फिर लोग उनका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। इन सबसे बढ़कर, कमजोर आर्थिक स्थिति उनके हालात को और दयनीय बना देती है।
सर्वे के बाद आगे की रणनीति
सर्वेक्षण पूरा होने के बाद जिला प्रशासन इन महिलाओं को विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी योजनाओं से जोड़ने का कार्य करेगा। इसके तहत:
कानूनी सहायता: महिलाओं को निशुल्क कानूनी परामर्श और तलाक व भरण-पोषण के मामलों में सहायता दी जाएगी।
आजीविका के अवसर: महिलाओं को छोटे पैमाने पर स्वरोजगार, उद्यमिता और कौशल विकास के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाया जाएगा।
शिक्षा और प्रशिक्षण: इच्छुक महिलाओं को शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण से जोड़ा जाएगा।
आर्थिक सहायता: परित्यक्ता और विधवा महिलाओं को सरकार की वित्तीय सहायता योजनाओं से लाभान्वित किया जाएगा। प्रशासन का टारगेट है कि 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से पहले इस अभियान के तहत अधिकतम महिलाओं को लाभान्वित किया जा सके.