+

पुर्तगालियों ने दिया 'कास्टा' नाम, अंग्रेजी में बन गया कास्ट: भारतीय समाज की जाति व्यवस्था यूँ हुई परिभाषित

भारतीय समाज में जाति की अवधारणा को प्राचीन हिंदू ग्रंथों में वर्ण व्यवस्था से जोड़कर देखा जाता है, जिसमें समाज को चार प्रमुख वर्गों—ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र—में बांटा गया है, जबकि अछूतों को इस पदानुक्रम से बाहर रखा गया। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जाति के लिए इस्तेमाल होने वाला अंग्रेजी शब्द 'कास्ट' भारतीय नहीं, बल्कि यूरोपीय मूल का है। यह शब्द स्पेनिश भाषा के 'कास्टा' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'नस्ल' या 'वंश'। इस शब्द का भारतीय सामाजिक संरचना से जुड़ाव पुर्तगालियों के माध्यम से हुआ, जिन्होंने 15वीं सदी में भारत के पश्चिमी तट पर व्यापार करते हुए स्थानीय समाज को देखा और उसे अपनी भाषा में परिभाषित किया।

जब पुर्तगाली भारत पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि यहां के समाज में एक जटिल सामाजिक विभाजन है, जिसमें लोगों के व्यवसाय, खान-पान और सामाजिक संबंध उनकी पैदाइश से तय होते हैं। उन्होंने इस व्यवस्था को समझने के लिए अपनी भाषा का शब्द 'कास्टा' इस्तेमाल किया, जो बाद में अंग्रेजों द्वारा 'कास्ट' के रूप में अपना लिया गया। समाजशास्त्री सुरिंदर एस. जोधका के अनुसार, भारतीय भाषाओं में 'कास्ट' का कोई सटीक समानार्थी शब्द नहीं है। दरअसल, भारत में 'जाति' और 'वर्ण' जैसी अवधारणाएं थीं, लेकिन यूरोपीय लोगों ने इसे अपने नजरिए से देखकर 'कास्ट' नाम दे दिया।

इतिहासकार सुमित गुहा के अनुसार, पुर्तगाली भाषा उस समय एशिया में व्यापार और संचार की मुख्य भाषा थी, जिसके कारण यूरोपीय लोगों ने भारतीय समाज को समझने के लिए पुर्तगालियों के शब्दों का ही इस्तेमाल किया। 'कास्टा' की अवधारणा स्पेन और पुर्तगाल में 'शुद्ध रक्तरेखा' के विचार से जुड़ी थी। 15वीं-16वीं सदी में जब ये देश दुनिया भर में औपनिवेशिक विस्तार कर रहे थे, तो उन्होंने अलग-अलग समुदायों को 'उच्च' और 'निम्न' नस्ल के आधार पर वर्गीकृत किया। भारत में भी उन्होंने यही तरीका अपनाया और जाति व्यवस्था को 'रक्त की शुद्धता' से जोड़कर देखा।

गुहा बताते हैं कि भारत में कुछ व्यवसायों को 'अशुद्ध' माना जाता था, जैसे चमड़े का काम करने वाले या मृतकों के अंतिम संस्कार से जुड़े लोग। इन व्यवसायों से जुड़े लोगों के साथ छुआछूत की भावना थी, जो कुछ हद तक यूरोप की 'कास्टा' व्यवस्था से मेल खाती थी। हालांकि, भारत में यह भेदभाव धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं पर आधारित था, न कि जैविक नस्ल के आधार पर। लेकिन पुर्तगालियों ने इसे अपनी समझ के अनुसार 'रक्त की शुद्धता' से जोड़ दिया।

जब अंग्रेज भारत आए, तो उन्होंने पुर्तगालियों द्वारा दिए गए 'कास्ट' शब्द को ही अपनाया और इसे प्रशासनिक व्यवस्था में शामिल कर लिया। उन्होंने जनगणना और भूमि रिकॉर्ड में लोगों की जाति को दर्ज करना शुरू किया, जिससे यह व्यवस्था और मजबूत हुई। इस तरह, एक विदेशी शब्द भारतीय सामाजिक व्यवस्था का पर्याय बन गया।

2013 में ब्रिटेन की हाउस ऑफ लॉर्ड्स में भारतीय मूल के सदस्य भीखू पारेख ने कहा था कि "जाति को परिभाषित करना मुश्किल है। समाजशास्त्री 200 साल से इसकी परिभाषा ढूंढ रहे हैं। पुर्तगालियों ने यह शब्द दिया था, और भारत व ब्रिटेन में यह लगातार बदल रहा है।" उनके इस बयान से स्पष्ट होता है कि जाति की अवधारणा स्थिर नहीं, बल्कि समय के साथ बदलती रही है।

इस प्रकार, 'कास्ट' शब्द भले ही विदेशी मूल का हो, लेकिन यह भारतीय समाज की एक मूलभूत संरचना को परिभाषित करने का हिस्सा बन गया। यह उपनिवेशवाद का एक ऐसा प्रभाव है, जिसने भारतीय सामाजिक व्यवस्था को एक नए नजरिए से देखने का तरीका बदल दिया।

- ये रिपोर्ट द इन्डियन एक्सप्रेस में प्रकाशित लेखिका निकिता मोहन की रिपोर्ट 'Caste: how a Spanish word, carried by the Portuguese, came to describe social order in India' पर आधारित है।

Trending :
facebook twitter