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गुजरात में दलितों पर बढ़ते अत्याचार, प्रशासन क्यों है उदासीन?

इदर (गुजरात) – उत्तर गुजरात के इदर कस्बे के पास वडोल गांव के 32 वर्षीय दलित दिहाड़ी मज़दूर शैलेशभाई चेणवा अब घर से बाहर निकलते हैं तो हमेशा चेहरे पर सफेद रूमाल बांधते हैं। वह लंगड़ाकर चलते हैं और उनके शरीर पर गहरे नीले व काले निशान हैं — जो उस भयावह हमले की निशानी हैं जिसे वह झेल चुके हैं।

11 मार्च को चेणवा रोज़ की तरह इदर के एक कोल्ड स्टोरेज में काम करने गए थे। दिन भर काम करने के बाद लौटते समय कुछ ठाकुरों ने उन्हें अगवा कर लिया। उन्हें बेरहमी से पीटा गया, फिर पूरे गांव — नानी वडोल — के सामने निर्वस्त्र कर घुमाया गया। इतना ही नहीं, उन्हें एक माफीनामा लिखने के लिए मजबूर किया गया, जिसमें उन्हें यह वादा करना पड़ा कि वह कभी किसी ठाकुर महिला से बात नहीं करेंगे।

उन्होंने बताया, “पूरे गांव ने मुझे निर्वस्त्र देखा, जैसे मैं कोई जानवर हूं। कोई बचाने नहीं आया।”

शादी में घोड़ी चढ़ने पर हमला

2022 में मेहसाणा ज़िले के वांसोल गांव के किशनभाई सेनमा अपनी शादी के दिन को अब भी नहीं भूल पाए हैं — लेकिन वो दिन याद कर उन्हें खुशी नहीं, सिहरन होती है।

शादी की रस्मों के लिए वह जब घोड़ी पर सवार होकर अपनी दुल्हन के घर जा रहे थे, तभी ठाकुर समुदाय के लोगों ने उन्हें घोड़ी से नीचे खींच लिया और पूरे परिवार पर जातिसूचक गालियों की बौछार की। कारण सिर्फ इतना था कि सेनमा दलित थे और घोड़ी पर सवार थे।

सेनमा ने कहा, “ये लोग Manusmriti में विश्वास करते हैं और हमें कीड़ों-मकोड़ों की तरह समझते हैं। लेकिन अब हम चुप नहीं बैठेंगे।”

पहले तो उन्होंने मामला न बढ़ाने का फैसला किया, लेकिन एक महीने बाद उन्होंने ठाकुरों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया।

उन्होंने बताया, “एफआईआर दर्ज कराने गए तो पुलिस ने कहा कि बिना जांच के भी मामला सुलझाया जा सकता है। तभी समझ में आया कि हमें अपने अधिकारों के लिए कोर्ट जाना होगा।”

गांव के बुजुर्ग सुखाभाई (60) कहते हैं, “हमारी ज़िंदगी बद से बदतर होती जा रही है। ना हम पढ़े-लिखे हैं, ना वोट बैंक माने जाते हैं। सरकार को फर्क ही नहीं पड़ता कि हम ज़िंदा हैं या मरे।”

विकास मॉडल बनाम जमीनी सच्चाई

गुजरात को भले ही ‘विकास मॉडल’ के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं। राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2021 के बीच अनुसूचित जातियों पर अत्याचार के मामलों में गुजरात में सजा की दर मात्र 3.065% रही — जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।

2022 में अकेले अहमदाबाद शहर में ऐसे 189 मामले दर्ज हुए, जो राज्य में सबसे ज़्यादा हैं। पूरे राज्य में 1,425 मामले सामने आए।

2018 से 2021 के बीच दर्ज कुल 5,369 मामलों में सिर्फ 32 मामलों में आरोप सिद्ध हुए। वहीं 1,012 मामलों में आरोपी बरी कर दिए गए, चाहे मामला हत्या का हो या बलात्कार का।

अमित शाह द्वारा ‘गोद लिए’ गांव में हमला

गांधीनगर ज़िले का बिलेश्वर गांव, जिसे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 'गोद लिया' है, वहां जनवरी 2024 में एक मामूली विवाद ने हिंसा का रूप ले लिया।

दलित महिला गीताबेन अपनी गाय दुह रही थीं, तभी पास में ठाकुर समुदाय के कुछ किशोर खेल रहे थे। गीताबेन ने उन्हें दूर जाकर खेलने को कहा ताकि गाय डर न जाए। इससे नाराज़ होकर अगले दिन शाम को करीब 200 ठाकुर पुरुष ट्रकों में भरकर दलित बस्ती (रोहितवास कॉलोनी) में घुस आए और घरों पर पत्थर, डंडे और लोहे की रॉड से हमला कर दिया। गीताबेन और उनके परिवार को गंभीर चोटें आईं।

गीताबेन ने बताया, “पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया। ऐसा लगा जैसे वे आरोपियों को पकड़ना ही नहीं चाहते।”

बाद में जब गीताबेन ने एफआईआर दर्ज करवाई, तो पुलिस ने ठाकुरों को भी प्रतिरोध में एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दे दी।

गांव के बुजुर्ग बलदेवभाई ने कहा, “यह गांव अमित शाह ने गोद लिया है, लेकिन क्या उन्होंने हमें भूल गए हैं? यहां भाजपा का विधायक भी ठाकुर समुदाय से है — लच्छनभाई पुंजाजी (बाकाजी) ठाकोर — इसलिए उन्हें खुली छूट मिलती है।”

रोजमर्रा के बहानों से अत्याचार

इदर के चित्रोड़ी गांव में कपास की खेती करने वाले सोंभाई चेणवा अब पशुओं से डरने लगे हैं। रबारी समुदाय के लोग जानबूझकर अपने मवेशियों को उनकी फसल में छोड़ देते हैं। जब छह महीने पहले उन्होंने इस पर आपत्ति जताई, तो उन्हें जातिसूचक गालियां दी गईं और सिर फोड़ दिया गया।

जनवरी 2019 में दाह्यबेन वंकर (65) पर हमला तब हुआ जब उनके पोते ने एक पतंगबाजी प्रतियोगिता में ठाकुर लड़कों को हरा दिया। उनका घर तोड़ दिया गया। जन विकास नामक एनजीओ की मदद से उन्होंने एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज कराया। लेकिन 6 साल बाद भी मामला इदर जिला कोर्ट में लंबित है। 17 दिसंबर 2024 की सुनवाई भी आरोपी के गैरहाजिर रहने के कारण नहीं हो सकी।

पीड़ितों ने बताया कि अधिकतर मामलों में हमलावर ठाकुर, रबारी और सुथार समुदायों से हैं — जो सभी OBC समूह हैं। छोटी-छोटी बातों को जानबूझकर विवाद में बदला जाता है ताकि दलितों को झूठे मामलों में फंसाया जा सके।

राजनीतिक चुप्पी और सरकारी उदासीनता

वडगाम से विधायक और राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक जिग्नेश मेवाणी कहते हैं, “भाजपा Manusmriti के सिद्धांतों पर चलती है — जो शूद्रों और दलितों को अपमानित करने की बात करती है। यही कारण है कि अत्याचार करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।”

मेवाणी ने 2023 में 'स्वाभिमान हेल्पलाइन' (9724344061) शुरू की, जिससे अब तक 113 कॉल्स आए और 150 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई। "यह दिखाता है कि लोगों का न्याय प्रणाली पर भरोसा नहीं रहा," वे कहते हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार, गुजरात में अनुसूचित जातियों की आबादी 40.74 लाख यानी राज्य की कुल आबादी का 6.74% है। पिछले दो दशकों में सरकार ने अत्याचार रोकने के लिए कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में दलितों के खिलाफ अपराधों की संख्या 1,313 थी। 2019 में राज्य के सामाजिक न्याय मंत्री ईश्वर परमार ने विधानसभा में बताया कि 2013 से 2018 के बीच ऐसे अपराधों में 32% की वृद्धि हुई है।

राज्य की घटती संवेदनशीलता

वरिष्ठ दलित कार्यकर्ता और नवसर्जन ट्रस्ट, दलित शक्ति केंद्र और दलित फाउंडेशन के संस्थापक मार्टिन मैकवान कहते हैं, “पहले कम से कम मंत्री पीड़ितों से मिलने आते थे। अब तो तहसीलदार भी नहीं आता। न्यायपालिका भी खुलेआम पूर्वाग्रह दिखा रही है और अत्याचार कानून के दुरुपयोग की बात कर रही है — जबकि इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है।”

वे कहते हैं, “गुजरात में भाजपा के दलित और आदिवासी विधायक भी राज्य सरकार पर दबाव डालने में विफल रहे हैं।”

जब आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं और पीड़ित न्याय की तलाश में भटक रहे हैं, तब सवाल ये उठता है — क्या गुजरात का ‘विकास मॉडल’ सिर्फ चंद लोगों के लिए है? या क्या यह राज्य अपने सबसे वंचित नागरिकों को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ने का दावा कर रहा है?

उक्त रिपोर्ट मूल रूप से द वायर वेबसाइट पर प्रकाशित की जा चुकी है.
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