भोपाल। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में रेप पीड़ित दो नाबालिग बच्चियों के मामलों में अलग-अलग फैसले सुनाए हैं, जो न सिर्फ संवेदनशील हैं, बल्कि संविधान, चिकित्सा विशेषज्ञों की राय और पीड़िता की इच्छाओं के संतुलन का उदाहरण भी हैं।
पहला मामला बालाघाट जिले का है, जहां 14 वर्षीय एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के बाद वह गर्भवती हो गई। स्थानीय प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने इस गंभीर मामले को पत्र के माध्यम से हाईकोर्ट को भेजा। कोर्ट ने इसे याचिका मानते हुए समर वेकेशन बेंच में जस्टिस अमित सेठ की अध्यक्षता में 9 जून को सुनवाई की।
कोर्ट ने विशेषज्ञ चिकित्सकों की एक टीम गठित कर पीड़िता की मेडिकल जांच करवाई। रिपोर्ट में सामने आया कि गर्भ अब 8 माह (32 सप्ताह) का हो चुका है, और इस स्थिति में गर्भपात करवाना मां और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए जानलेवा हो सकता है।
गौरतलब है कि पीड़िता और उसके परिजनों ने भी गर्भपात न करवाने की स्पष्ट राय कोर्ट में दर्ज कराई थी। हाईकोर्ट ने 20 फरवरी 2025 को जारी स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई नाबालिग पीड़िता 24 सप्ताह से अधिक गर्भवती हो, तो गर्भपात की अनुमति के लिए हाईकोर्ट से मार्गदर्शन लेना अनिवार्य है।
कोर्ट ने सभी तथ्यों और चिकित्सा जोखिमों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया कि गर्भ जारी रहेगा। साथ ही बच्ची और उसके परिवार को इस दौरान स्वास्थ्य सुरक्षा और सभी आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने के निर्देश दिए।
दमोह की 16 वर्षीय नाबालिग को मिली गर्भपात की अनुमति
वहीं दूसरे मामले में, दमोह जिले की 16 वर्षीय नाबालिग रेप पीड़िता को हाईकोर्ट ने 28 सप्ताह से अधिक गर्भवती होने के बावजूद गर्भपात की अनुमति दे दी है। यह मामला भी जिला एवं सत्र न्यायालय से पत्र के रूप में हाईकोर्ट तक पहुंचा, जिसे याचिका के तौर पर दर्ज किया गया।
सुनवाई के दौरान मेडिकल विशेषज्ञों ने यह स्वीकार किया कि गर्भपात इस स्थिति में जोखिमभरा हो सकता है, लेकिन पीड़िता और उसकी मां ने कोर्ट में लिखित रूप से कहा कि वे इस खतरे के लिए तैयार हैं।
कोर्ट ने इस पर विचार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट और पूर्व में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों का संदर्भ दिया और इस बात को महत्व दिया कि किसी महिला को जबरन मातृत्व के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। संविधान द्वारा दिए गए निजता और प्रजनन अधिकार की रक्षा करते हुए, कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति दी।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए विधि विशेषज्ञ एवं अधिवक्ता मयंक सिंह ने बताया इन दोनों मामलों में हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कोई भी फैसला एकतरफा नहीं लिया जा सकता। गर्भ की अवधि, मेडिकल जोखिम, और सबसे अहम – पीड़िता की सहमति और इच्छा – यह सभी निर्णय के मूल आधार रहे।
उन्होंने कहा, हाईकोर्ट के ये दोनों फैसले यह दिखाते हैं कि भारतीय न्यायपालिका पीड़िताओं के संवैधानिक अधिकारों, उनकी राय और चिकित्सा विज्ञान की सीमाओं को समझते हुए अत्यंत संवेदनशील और संतुलित निर्णय ले रही है।
क्या कहती है गाइडलाइन?
स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन (20 फरवरी 2025): यदि कोई नाबालिग 24 सप्ताह से अधिक गर्भवती हो, तो गर्भपात की अनुमति के लिए हाईकोर्ट से मार्गदर्शन अनिवार्य है। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट आवश्यक है।