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MP में मासूमियत पर बढ़ते हमले: NCRB आंकड़े और हालिया घटनाएं भयावह!

भोपाल। प्रदेश में मासूम बच्चों के साथ हो रही दरिंदगी के किस्से अब अखबारों की सुर्खियां नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की हकीकत बनते जा रहे हैं। कभी किसी गली के कोने से, तो कभी किसी शादी समारोह से, मासूमों की चीखें और टूटी हुई मासूमियत की कहानियां सामने आ रही हैं। यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि उन नन्हीं जिंदगियों का सच है, जिनकी हंसी समय से पहले खामोश कर दी जाती है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट इस भयावह सच्चाई की पुष्टि करती है। रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2022 में मध्यप्रदेश में कुल 20,415 अपराध बच्चों के खिलाफ दर्ज हुए, जो महाराष्ट्र के बाद देश में दूसरा सबसे ऊंचा आंकड़ा है। इनमें से 6,654 मामले ‘पॉक्सो एक्ट’ (POCSO Act) के तहत दर्ज हुए, जो सीधे-सीधे यौन शोषण से जुड़े हैं।

सबसे ज्यादा मामले अपहरण और बहला-फुसलाकर ले जाने से जुड़े हैं, जिनकी संख्या 10,125 रही। इसके अलावा, 109 बच्चों की हत्या और 90 मामलों में आत्महत्या के लिए उकसाने की घटनाएं भी दर्ज की गईं।

राष्ट्रीय औसत से दोगुनी अपराध दर

NCRB रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में बच्चों के खिलाफ अपराध की दर 71 प्रति एक लाख बच्चों पर है, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। इस मामले में दिल्ली के बाद मध्यप्रदेश दूसरे स्थान पर है। सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि 96.8% यौन अपराधों में आरोपी पीड़िता के परिचित होते हैं, यानी बच्चों के लिए सबसे असुरक्षित जगह अक्सर उनका अपना सामाजिक दायरा बन जाता है।

भोपाल के मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकान्त त्रिवेदी द मूकनायक बातचीत में कहतें हैं कि कम उम्र के बच्चे यौन शोषण जैसी घटनाओं के लिए बेहद संवेदनशील और आसान शिकार होते हैं। वे मानसिक और भावनात्मक रूप से इतनी परिपक्वता नहीं रखते कि घटना को समझ पाएं या उसका विरोध कर सकें।

डॉ. त्रिवेदी के अनुसार, यह समस्या ‘मल्टीफेक्टोरीयल’ यानी कई कारणों से पैदा होती है, जिनमें आरोपियों की यौन कुंठा, मानसिक विकृति, नशे की लत, समाज में बढ़ती संवेदनहीनता और बच्चों की सुरक्षा को लेकर लापरवाही प्रमुख हैं।

केस 1: ग्वालियर में दोस्तों ने ही किया अपराध

तिघरा थाना क्षेत्र में 15 वर्षीय किशोर के साथ उसके तीन नाबालिग दोस्तों ने हैवानियत की। झरना दिखाने के बहाने बुलाकर उसे झाड़ियों में ले गए, मारपीट की, गलत हरकत की और जान से मारने की धमकी दी। आरोपियों ने घटना का वीडियो भी रिकॉर्ड किया और वायरल करने की धमकी दी। डर के कारण पीड़ित ने कई दिन तक चुप्पी साधी, लेकिन बाद में पिता को बताया और पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।

केस 2: गुना किशोरी का अपहरण कर सामूहिक दुष्कर्म

चांचौड़ा थाना क्षेत्र के ग्राम भैंसुआ में 16 वर्षीय किशोरी को गांव के ही दो युवकों ने घर से उठा लिया। कमरे में बंद कर दोनों ने दुष्कर्म किया। पीड़िता के बयान के बाद पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर सामूहिक दुष्कर्म और POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज किया।

केस 3: कटनी 4 साल की मासूम के साथ दरिंदगी

मझगवां थाना क्षेत्र में शादी समारोह में शामिल होने निकली 4 साल की बच्ची को आरोपी ने रास्ते से अगवा कर सुनसान जगह ले जाकर दुष्कर्म किया। यह घटना प्रदेश में बच्चों के खिलाफ हो रही अमानवीय वारदातों की चरम सीमा को दिखाती है।

कानून और सजा का प्रावधान!

पॉक्सो एक्ट, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act)

धारा 4: यौन शोषण- न्यूनतम 7 वर्ष की सजा, अधिकतम आजीवन कारावास।

धारा 6: गंभीर यौन शोषण- न्यूनतम 10 वर्ष की सजा, अधिकतम आजीवन कारावास या मृत्युदंड।

धारा 14: अश्लील सामग्री बनाना/वायरल करना- 5 से 7 वर्ष की सजा और जुर्माना।

स्थिति क्यों चिंताजनक है?

प्रदेश में अपराध दर राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। चिंताजनक बात यह है कि इन अपराधियों में बड़ी संख्या उन्हीं लोगों की है जो पीड़ितों के परिचित होते हैं, जिससे बच्चों के लिए माने जाने वाले सुरक्षित दायरे भी असुरक्षित बनते जा रहे हैं। पुलिस और प्रशासन की ओर से लगातार प्रयास किए जाने के बावजूद घटनाओं में कमी नहीं आ रही, जिससे समाज में भय और असुरक्षा की भावना बनी हुई है।

द मूकनायक से बातचीत में मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने कहा कि आयोग बच्चों की सुरक्षा को लेकर लगातार सक्रिय है। उन्होंने बताया कि आयोग न केवल विभिन्न जिलों में होने वाली घटनाओं की निगरानी करता है, बल्कि स्कूलों, शिक्षण संस्थानों और स्थानीय प्रशासन को समय-समय पर सुरक्षा संबंधी दिशा-निर्देश भी जारी करता है।

ओंकार सिंह ने कहा कि आयोग की प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी घटना की तुरंत और निष्पक्ष जांच हो। इसके लिए संबंधित विभागों से रिपोर्ट मांगी जाती है और ज़रूरत पड़ने पर मौके पर टीम भेजी जाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए आयोग अपनी सिफारिशें उच्च स्तर पर भेजता है, ताकि ऐसे मामलों में कोई ढिलाई न बरती जाए।

उनके अनुसार, बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए जागरूकता अभियान, स्कूल स्तर पर काउंसलिंग, और समुदाय में भरोसेमंद निगरानी तंत्र का निर्माण भी आयोग की कार्ययोजना का हिस्सा है, जिससे भविष्य में ऐसे अपराधों को न्यूनतम किया जा सके।

मध्यप्रदेश में बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराध, खासकर यौन शोषण, समाज और प्रशासन दोनों के लिए गहरी चिंता का विषय हैं। NCRB के ताजा आंकड़े चेतावनी देते हैं कि यदि रोकथाम, कड़ी सजा, और बच्चों की सुरक्षा के ठोस उपाय नहीं किए गए, तो आने वाले वर्षों में यह स्थिति और गंभीर हो सकती है।

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