भोपाल। मध्य प्रदेश के चर्चित मंदसौर गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए दोनों दोषियों—इरफान उर्फ भैयू और आसिफ—की फांसी की सजा को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने मामले को पुनः ट्रायल कोर्ट भेजने का आदेश दिया है, जिससे एक बार फिर आरोपियों के खिलाफ नए सिरे से सुनवाई होगी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक लैंडमार्क जजमेंट माना जा रहा है, क्योंकि यह डीएनए रिपोर्ट की कानूनी वैधता और इसके सही उपयोग पर महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश देता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल डीएनए रिपोर्ट ही अंतिम प्रमाण नहीं हो सकती, जब तक कि इसे तैयार करने वाले साइंटिफिक एक्सपर्ट्स कोर्ट में उपस्थित होकर इसकी सटीकता की पुष्टि न करें।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के लिए आवश्यक है कि वह डीएनए रिपोर्ट की पुष्टि के लिए वैज्ञानिक विशेषज्ञों की गवाही प्रस्तुत करे। अभियोजन पक्ष को निर्देश दिया गया कि डीएनए से जुड़े सभी दस्तावेज बचाव पक्ष को भी उपलब्ध कराए जाएं ताकि वे उन्हें चुनौती देने का अवसर प्राप्त कर सकें। इसके बाद ट्रायल कोर्ट इस नए साक्ष्य और गवाहियों के आधार पर फैसला सुनाएगी। इस फैसले के बाद दोनों आरोपी अब सजायाफ्ता नहीं, बल्कि विचाराधीन कैदी हो गए हैं।
कैसे बदला मामला: ट्रायल कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर, 55 दिनों में सुनाई गई थी फांसी की सजा
मंदसौर में 26 जून 2018 को हुई इस वीभत्स घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। घटना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस केस की मॉनिटरिंग की और इसे फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाने का निर्देश दिया। मात्र 55 दिनों में मंदसौर जिला कोर्ट ने दोनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। बाद में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा था।
हालांकि, जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो बचाव पक्ष ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए, जिनमें प्रमुख रूप से डीएनए जांच की वैधता और पुलिस जांच की निष्पक्षता पर सवाल शामिल थे।
एडवोकेट बोले—पुलिस की जांच निष्पक्ष नहीं थी
आरोपियों के एडवोकेट अमित दुबे (इंदौर) ने कहा कि इस केस का ट्रायल बहुत जल्दबाजी में किया गया और आरोपियों को अपनी पूरी बात रखने का अवसर नहीं मिला। उन्होंने आरोप लगाया कि यह मामला 2018 में विधानसभा चुनावों के ठीक पहले हुआ था, जिससे यह आशंका बनी कि पुलिस ने निष्पक्ष जांच नहीं की।
पुलिस की रिपोर्ट में कई खामियां थीं
बचाव पक्ष के अनुसार पुलिस ने यह दावा किया था कि एक आरोपी ने बच्ची को अगवा किया और फिर अपने साथी को फोन कर बुलाया। दोनों ने मिलकर दुष्कर्म किया। लेकिन पुलिस के चालान में यह दर्ज था कि घटना वाले दिन दोनों आरोपियों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी। इसके अलावा, बचाव पक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि जब आरोपियों को फांसी की सजा मिल चुकी थी, उसके बाद डीएनए रिपोर्ट में सुधार किया गया।
डीएनए रिपोर्ट पर क्यों उठे सवाल?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, डीएनए रिपोर्ट अपने आप में निर्णायक प्रमाण नहीं हो सकती जब तक कि इसे तैयार करने वाले साइंटिफिक एक्सपर्ट्स कोर्ट में गवाही न दें। इस केस में डीएनए रिपोर्ट उपलब्ध थी, लेकिन इसे तैयार करने वाले विज्ञान विशेषज्ञों को कोर्ट में पेश नहीं किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
- अभियोजन पक्ष को वैज्ञानिक साक्ष्य के लिए साइंटिफिक एक्सपर्ट्स को पेश करना होगा।
- डीएनए रिपोर्ट से जुड़े सभी दस्तावेज बचाव पक्ष को उपलब्ध कराए जाएं, ताकि वे इसे चुनौती दे सकें।
- साक्ष्यों की दोबारा समीक्षा के बाद ही ट्रायल कोर्ट अंतिम फैसला लेगी।
अब आगे क्या होगा?
अब यह केस फिर से ट्रायल कोर्ट में जाएगा और अभियोजन पक्ष को नए सिरे से साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे। साइंटिफिक एक्सपर्ट्स कोर्ट में गवाही देंगे और अपनी रिपोर्ट की सटीकता को प्रमाणित करेंगे।
मंदसौर गैंगरेप केस की टाइमलाइन समझिए
26 जून 2018 को मंदसौर में 7 साल की बच्ची के अपहरण और दुष्कर्म की घटना हुई। पुलिस ने 8 जुलाई 2018 को आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, और 20 जुलाई 2018 को ट्रायल शुरू हुआ। तेजी से चली सुनवाई के बाद 21 अगस्त 2018 को मंदसौर जिला कोर्ट ने दोनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई, जिसे बाद में हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। हालांकि, 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को निरस्त करते हुए मामले को फिर से ट्रायल कोर्ट भेज दिया।
इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। बच्ची का लंबे समय तक इलाज इंदौर के एमवाय अस्पताल में चला था, पहली सर्जरी 7 घंटे तक चली थी। गंभीर चोटों के कारण बच्ची को ट्यूब फीडिंग पर रखा गया था। घावों को ठीक करने के लिए ल्युकोप्लास्टी भी की गई थी। जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, तो पीड़िता के पिता को मीडिया से इसकी जानकारी मिली। उन्होंने कहा कि न्याय में देरी होने से उन्हें फिर से दर्द सहना पड़ रहा है।
मध्य प्रदेश पुलिस के तत्कालीन एसपी और वर्तमान डीआईजी मनोज कुमार सिंह ने कहा कि अब ट्रायल में साइंटिफिक एक्सपर्ट्स को बुलाया जाएगा और सभी नए साक्ष्यों को प्रस्तुत किया जाएगा। उन्होंने कहा कि चार महीने का समय है, और इस बार पूरी तैयारी के साथ केस को मजबूत किया जाएगा। सरकार ने भी दोबारा ट्रायल को लेकर कड़े निर्देश दिए हैं।