भोपाल। उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन करने पहुंचे मध्यप्रदेश पुलिस के महानिदेशक (DGP) कैलाश मकवाना ने प्रदेश में रेप की बढ़ती घटनाओं पर एक ऐसा बयान दिया है, जिसने सरकार और पुलिस की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मीडिया से चर्चा में उन्होंने कहा कि बलात्कार जैसी घटनाएं सिर्फ पुलिस के बूते नहीं रोकी जा सकतीं। उनका मानना है कि इसके लिए समाज की जिम्मेदारी ज्यादा है और अपराध के पीछे इंटरनेट, मोबाइल, शराब और नैतिकता में गिरावट जैसे कई कारण हैं।
डीजीपी मकवाना ने स्पष्ट रूप से कहा कि समाज में अश्लीलता जिस तरह से इंटरनेट के माध्यम से परोसी जा रही है, उसने बच्चों के मानसिक विकास पर नकारात्मक असर डाला है। पहले जहां घरों में माता-पिता और शिक्षक बच्चों पर नजर रखते थे, अब वह नियंत्रण खत्म होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज के समय में बच्चे माता-पिता या गुरु की बात नहीं मानते, और समाज में नैतिकता की जो गिरावट आई है, वह अपराध को जन्म दे रही है।
DGP के बयान के बाद उठ रहे सवाल
डीजीपी के इस बयान के बाद यह सवाल उठने लगा है कि अगर कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी उठाने वाली संस्था ही हाथ खड़े कर रही है, तो आम जनता की सुरक्षा की उम्मीद किससे की जाए? क्या शासन सिर्फ नैतिक शिक्षा की दुहाई देकर अपने कर्तव्यों से बच सकता है? खास बात यह है कि जब उन्हीं की पुलिस रोज़ रेप, छेड़छाड़ और नाबालिगों के साथ अपराध के मामलों की जांच करती है, तो ऐसे बयान से पुलिस तंत्र की गंभीरता पर भी सवाल उठते हैं।
NCRB के आंकड़े
इसी बीच राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट भी स्थिति की भयावहता को उजागर करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में देशभर में महिलाओं के खिलाफ कुल 4,45,256 मामले दर्ज हुए, जो 2021 की तुलना में 4% अधिक हैं। वहीं बच्चों के खिलाफ अपराधों की संख्या 1,62,449 तक पहुंच गई, जो पिछले वर्ष की तुलना में 8.7% अधिक है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में अकेले बच्चों के खिलाफ 758 मामले दर्ज हुए हैं, जो प्रदेश की भयावह स्थिति की ओर इशारा करते हैं।
वर्ष 2022 में मध्यप्रदेश में बच्चों के खिलाफ कुल 20,415 अपराध दर्ज किए गए, जो कि देशभर में महाराष्ट्र के बाद दूसरा सबसे ऊंचा आंकड़ा है। इनमें से 6,654 मामले केवल POCSO एक्ट के तहत दर्ज हुए हैं। सबसे अधिक मामले अपहरण और बहला-फुसलाकर ले जाने से जुड़े हैं, जिनकी संख्या 10,125 रही। बच्चों की हत्या के 109 और आत्महत्या के लिए उकसाने के 90 मामले भी इस रिपोर्ट का हिस्सा हैं।
NCRB की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि राज्य में बच्चों के खिलाफ अपराध की दर 71 प्रति एक लाख बच्चों पर है, जो कि राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। दिल्ली के बाद मध्यप्रदेश इस मामले में दूसरे स्थान पर है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि 96.8% यौन अपराधों में आरोपी पीड़िता के परिचित होते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि पीड़िताओं के लिए सबसे असुरक्षित स्थान उनका अपना सामाजिक दायरा बनता जा रहा है।
हालांकि डीजीपी ने यह जरूर कहा कि पुलिस विभाग में 8,500 पदों पर जल्द ही भर्ती की जाएगी और नक्सल मोर्चे पर भी पुलिस ने बेहतर काम किया है। मगर सवाल यह है कि जब प्रदेश में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा बनती जा रही है, तब पुलिस महकमा उसे इंटरनेट और शराब के हवाले कर कैसे बच सकता है? डीजीपी मकवाना के इस बयान ने साफ कर दिया है कि अब राज्य में महिला सुरक्षा सिर्फ कानून-व्यवस्था का नहीं बल्कि सामाजिक और राजनैतिक इच्छाशक्ति का भी मसला बन चुकी है।