भोपाल। महज साढ़े चार साल की मासूम बच्ची, जो अभी खेल-कूद और मां की गोद से बाहर की दुनिया को ठीक से पहचान भी नहीं पाई थी, उसके साथ दरिंदगी की गई और फिर उसकी नृशंस हत्या कर दी गई। इस जघन्य अपराध ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया था। महीनों चली लंबी कानूनी लड़ाई और सबूतों की गहन पड़ताल के बाद सागर की विशेष अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई। अदालत ने इसे “विरल से विरलतम मामला” बताते हुए कहा कि ऐसे अपराधी का समाज में रहना पूरी मानवता के लिए खतरे से कम नहीं है।
क्या था मामला?
विशेष लोक अभियोजक रिपा जैन के अनुसार, यह दर्दनाक घटना 8-9 अप्रैल 2024 की रात की है। मासूम बच्ची की उम्र महज 4 साल 5 माह की थी और अपने परिवार के साथ घर में सो रही थी। इस दौरान जब मां थोड़ी देर के लिए बाहर गईं, तभी आरोपी ने बच्ची को उठा लिया।
परिवार ने रातभर उसकी तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं! मिला। दो दिन बाद यानी 10 अप्रैल को बच्ची का शव गांव के ही पास खेत की मेड़ पर बरामद हुआ। इस दृश्य ने पूरे गांव को दहला दिया और लोगों में गुस्से की लहर दौड़ गई।
आरोपी परिवार का ही सदस्य
पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि आरोपी पीड़िता के परिवार का ही युवक था। पूछताछ और जांच में यह भी सामने आया कि उसने पहले भी बच्ची से अनुचित व्यवहार किया था। परिवार ने रिश्तों को देखते हुए उसे सुधरने का मौका दिया था, लेकिन उसने और भी गंभीर अपराध को अंजाम देकर मासूम की जिंदगी छीन ली।
26 अप्रैल को आरोपी को गिरफ्तार किया गया। एफएसएल रिपोर्ट में डीएनए मेल खाने से उसकी संलिप्तता पूरी तरह साबित हो गई। इसके बाद पुलिस ने अदालत में मजबूत चालान पेश किया।
मामले की सुनवाई विशेष न्यायाधीश नेहा श्रीवास्तव की अदालत में हुई। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “भारतीय समाज में कन्या को देवी स्वरूप माना जाता है। इतनी कम उम्र की मासूम के साथ ऐसा घृणित अपराध आरोपी की विकृत मानसिकता को दर्शाता है। ऐसे व्यक्ति का समाज में रहना मानवता के लिए खतरा है।” कोर्ट ने माना कि यह अपराध विरल से विरलतम श्रेणी का है और आरोपी को समाज से बाहर करना आवश्यक है।
कोर्ट रूम का माहौल हुआ भावुक
जैसे ही अदालत ने सजा का ऐलान किया, पूरे कोर्ट कक्ष का माहौल भावुक हो उठा। लंबी सुनवाई के बाद जब विशेष न्यायाधीश नेहा श्रीवास्तव ने आरोपी को फांसी की सजा सुनाई, तो उपस्थित लोगों की निगाहें एक क्षण को ठहर सी गईं। फैसले के शब्द गूंजते ही पीड़ित परिवार फफक पड़ा। उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली, जो उनके दिल में दबे दर्द और लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष की गवाही दे रही थी। ग्रामीण, जो इस पूरे मामले में लगातार परिवार के साथ खड़े रहे थे, वे भी भावुक हो उठे और कई लोगों की आंखें नम हो गईं। कोर्ट कक्ष में सन्नाटा पसरा रहा, लेकिन उस सन्नाटे में पीड़िता के लिए न्याय मिलने की गूंज स्पष्ट सुनाई दे रही थी।
एमपी में बच्चों के खिलाफ अपराध की स्थिति?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट भी इस स्थिति की भयावहता को दर्शाती है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2022 में मध्यप्रदेश में बच्चों के खिलाफ कुल 20,415 अपराध दर्ज किए गए, जो कि देशभर में महाराष्ट्र के बाद दूसरा सबसे ऊंचा आंकड़ा है। इनमें से 6,654 मामले केवल POCSO एक्ट के तहत दर्ज हुए हैं। सबसे अधिक मामले अपहरण और बहला-फुसलाकर ले जाने से जुड़े हैं, जिनकी संख्या 10,125 रही। बच्चों की हत्या के 109 और आत्महत्या के लिए उकसाने के 90 मामले भी इस रिपोर्ट का हिस्सा हैं।
NCRB की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि राज्य में बच्चों के खिलाफ अपराध की दर 71 प्रति एक लाख बच्चों पर है, जो कि राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। दिल्ली के बाद मध्यप्रदेश इस मामले में दूसरे स्थान पर है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि 96.8% यौन अपराधों में आरोपी पीड़िता के परिचित होते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि पीड़िताओं के लिए सबसे असुरक्षित स्थान उनका अपना सामाजिक दायरा बनता जा रहा है।