भोपाल। मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने समाज और प्रशासन दोनों को झकझोर कर रख दिया है। यहाँ एक 15 वर्षीय नाबालिग लड़की मां बन गई। पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि दो साल पहले जब वह मात्र 13 वर्ष की थी, तभी उसका विवाह कर दिया गया था। अब प्रसव के बाद यह मामला सार्वजनिक हुआ, जिसके बाद पुलिस और प्रशासन हरकत में आ गए हैं।
13 साल में बाल विवाह
मामला जबलपुर जिले के कटंगी थाना क्षेत्र के मंगेला गांव का है। पुलिस जांच में पता चला है कि वर्ष 2023 में मझौली क्षेत्र की रहने वाली 13 वर्षीय किशोरी की शादी उसके ही पड़ोसी गांव में रहने वाले 23 वर्षीय युवक राजेश वंशकार से करा दी गई थी। यह विवाह 10 जुलाई 2023 को कटंगी के प्रसिद्ध नाहन देवी मंदिर में लड़की के माता-पिता, रिश्तेदारों, और लड़के के परिवार की मौजूदगी में सम्पन्न हुआ था। विवाह के बाद बच्ची अपने पति के साथ ससुराल चली गई। कुछ ही समय बाद वह गर्भवती हो गई, लेकिन परिवार ने इसे छिपाए रखा।
प्रसव के बाद खुला राज
करीब दस दिन पहले जब किशोरी को प्रसव पीड़ा हुई, तो उसके पति और नानी सास उसे कटंगी अस्पताल लेकर पहुंचे। हालत बिगड़ने पर डॉक्टरों ने उसे जबलपुर मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। चार दिन पहले उसने वहीं पर एक बच्चे को जन्म दिया। मेडिकल कॉलेज प्रशासन को जब पता चला कि मां की उम्र महज 15 वर्ष है, तो उन्होंने तुरंत इसकी जानकारी पुलिस को दी। सूचना मिलते ही मझौली थाना पुलिस ने जांच शुरू की और मामला सामने आया कि दो साल पहले यह बाल विवाह हुआ था।
पांच लोग गिरफ्तार, जेल भेजा गया
पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए बाल विवाह और बाल संरक्षण कानूनों के तहत मामला दर्ज किया। कटंगी थाना प्रभारी पूजा उपाध्याय ने बताया कि शादी कराने में लड़की के माता-पिता, लड़के की नानी और मामा की भूमिका सामने आई है। पुलिस ने सभी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।
पुलिस ने मामले में पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जिनमें लड़की और लड़के दोनों पक्षों के परिजन शामिल हैं। गिरफ्तार किए गए आरोपियों के नाम क्रमशः राजेश वंशकार (पति, 23 वर्ष), महेश कुमार (लड़की के पिता), अनीता वंशकार (लड़की की मां), गंगाराम (लड़के का मामा) और शंको बाई (लड़के की नानी) हैं। पुलिस का कहना है कि सभी आरोपियों ने नाबालिग की शादी कराकर कानून का उल्लंघन किया है। फिलहाल सभी से पूछताछ जारी है और बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत आगे की कार्रवाई की जा रही है।
महिला बाल विकास विभाग की जांच शुरू
मामले के प्रकाश में आने के बाद महिला बाल विकास अधिकारी सौरभ सिंह ने बताया कि विभाग ने जांच शुरू कर दी है। उन्होंने कहा, “यह मामला बेहद गंभीर है। यह देखा जा रहा है कि विवाह के समय किस स्तर पर निगरानी में चूक हुई। यदि किसी अधिकारी या कर्मचारी की लापरवाही पाई जाती है तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
कलेक्टर ने मांगी रिपोर्ट, दी चेतावनी
जबलपुर कलेक्टर राघवेंद्र सिंह ने इस पूरे प्रकरण पर नाराजगी जताते हुए महिला बाल विकास विभाग से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। उन्होंने कहा, “बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि यह एक मासूम बच्ची के पूरे जीवन को खतरे में डाल देती है। कोई भी व्यक्ति यदि ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देता है तो उसे सख्त सजा दी जाएगी।”
कलेक्टर ने आगे बताया कि प्रशासन हर साल अक्षय तृतीया जैसे मौकों पर विशेष निगरानी रखता है, क्योंकि इस दिन बाल विवाह की घटनाएं बढ़ जाती हैं। इसके लिए जिले में कंट्रोल रूम बनाए जाते हैं और पुलिस, प्रशासन तथा महिला बाल विकास विभाग की टीमें तैनात रहती हैं।
कानून क्या कहता है?
इस मामले में कई गंभीर कानूनी प्रावधान लागू होते हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार, लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़के की 21 वर्ष निर्धारित की गई है। किसी भी नाबालिग की शादी कराना, उसमें शामिल होना या सहायता करना कानूनन अपराध है, जिसके लिए दो वर्ष तक की सजा या एक लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। वहीं, यदि नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध स्थापित किया गया है, तो यह POCSO अधिनियम, 2012 के तहत बाल यौन शोषण की श्रेणी में आता है। यह एक गंभीर और गैर-जमानती अपराध है, जिसमें दोषी पाए जाने पर कठोर सजा का प्रावधान है। ऐसे में यह मामला न केवल बाल विवाह का, बल्कि बाल संरक्षण कानूनों के उल्लंघन का भी स्पष्ट उदाहरण बन गया है।
मासूम का भविष्य दांव पर
द मूकनायक से बातचीत में समाजशास्त्री डॉ. इम्तियाज खान ने बताया कि यह घटना स्पष्ट रूप से दिखाती है कि बाल विवाह एक गंभीर सामाजिक कुरीति है, जो आज भी हमारे समाज में गहराई तक जड़ें जमाए हुए है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में जागरूकता की भारी कमी और कानून के प्रति लापरवाही के कारण ऐसे मामले अब भी सामने आते हैं। यह केवल एक पारिवारिक गलती नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक विफलता है, जो बताती है कि जब तक शिक्षा, जागरूकता और सामाजिक चेतना नहीं बढ़ेगी, तब तक ऐसी कुरीतियों पर पूर्ण विराम लगाना कठिन रहेगा।
 
  
  
 