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MP हाई कोर्ट के आदेश की अवमानना: 13 साल की दुष्कर्म पीड़िता का नहीं हो सका गर्भपात, केंद्रीय मंत्री के सामने पिता ने जोड़े हाथ!

भोपाल। मध्य प्रदेश में एक बार फिर न्याय व्यवस्था और सरकारी सिस्टम की लापरवाही का दर्दनाक चेहरा सामने आया है। धार जिले की 13 वर्षीय नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को हाई कोर्ट की अनुमति के बावजूद समय पर गर्भपात नहीं मिल सका। बच्ची के परिजन कोर्ट के आदेश की कॉपी लेकर सरकारी अस्पताल और अफसरों के चक्कर काटते रहे, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। जब दोपहर में केंद्रीय राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर निरीक्षण के लिए अस्पताल पहुँचीं तो पीड़ित के पिता मंत्री के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए।

दरिंदगी की शिकार, फिर सिस्टम की बेरुखी का शिकार

तीन महीने पहले धार के एक गांव की 13 वर्षीय बच्ची को कुछ बदमाश अगवा कर अहमदाबाद ले गए। वहां उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ। जब बच्ची वापस लौटी, तो उसका बचपन, उसकी मासूमियत और उसका विश्वास सब कुछ टूटा हुआ था। लेकिन जो उसके साथ बाद में हुआ, वह शायद दुष्कर्म से भी अधिक पीड़ादायक था।

परिवार जब बच्ची की शिकायत लेकर तिरला थाने पहुंचा, तो पुलिस ने यह कहकर लौटा दिया कि यह मामला राजगढ़ थाने के अधिकार क्षेत्र का है। जब परिजन राजगढ़ पहुंचे, तो वहां कहा गया कि एफआईआर तिरला में ही दर्ज होगी। इस टालमटोल और विभागीय पचड़े में एक मासूम की चीखें दबती रहीं और सिस्टम कान में रुई डालकर बैठा रहा।

न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

जब पुलिस से कोई मदद नहीं मिली, तो बच्ची के परिजन ने कोर्ट में अर्जी लगाई। कोर्ट के आदेश पर पीड़िता का मेडिकल कराया गया, जिससे सामने आया कि वह गर्भवती है। इसके बाद परिवार ने गर्भपात की अनुमति के लिए हाई कोर्ट में याचिका लगाई। हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधीक्षक से जवाब मांगा और मंगलवार सुबह 11 बजे तक गर्भपात की प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए।

आदेश लेकर भटकते रहे परिजन

मंगलवार को पीड़िता को सुबह 11 बजे जिला अस्पताल लाया गया। पिता हाथ में हाई कोर्ट का आदेश लेकर अस्पताल स्टाफ और अधिकारियों से मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन किसी ने कोई जिम्मेदारी नहीं ली। अस्पताल में न तो डॉक्टर मौजूद थे, न ही पुलिसकर्मी।

जब केंद्रीय मंत्री पहुंचीं, तब हरकत में आया सिस्टम

दोपहर करीब 2 बजे केंद्रीय राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर अस्पताल निरीक्षण के लिए पहुंचीं। पीड़िता के पिता हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हो गए और बोले, “हमने क्या गलती की थी? हमारी बच्ची के लिए मदद चाहिए...”। मंत्री की फटकार के बाद प्रशासन में हड़कंप मचा। आनन-फानन में शाम 4 बजे बच्ची को इंदौर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया। लेकिन रात 9 बजे तक भी गर्भपात की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी थी।

बच्ची को है सिकलसेल बीमारी

इंदौर रेफर किए जाने के पीछे एक और कारण सामने आया — पीड़िता को सिकलसेल की बीमारी है। डॉ. एम.के. बर्मन ने बताया कि गर्भपात के दौरान जटिलताएं हो सकती हैं, इसीलिए बेहतर मेडिकल सुविधा के लिए उसे इंदौर भेजा गया है। लेकिन सवाल यह है कि जब हाई कोर्ट ने सुबह 11 बजे तक गर्भपात का आदेश दिया था, तो उसे इंदौर भेजने की प्रक्रिया में इतना विलंब क्यों हुआ?

हाई कोर्ट के आदेश की अवमानना?

द मूकनायक से बातचीत में विधि विशेषज्ञ और अधिवक्ता मयंक सिंह ने बताया, यह मामला सीधा कोर्ट के आदेश की अवमानना का बनता है। हाई कोर्ट ने समय सीमा के साथ निर्देश दिए थे, जिसे नजरअंदाज किया गया। न केवल स्थानीय प्रशासन, बल्कि स्वास्थ्य विभाग और पुलिस भी इसमें बराबर की दोषी है।

अधिवक्ता सिंह ने कहा, भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अंतर्गत अदालत के आदेश की अवहेलना करने पर दंड का प्रावधान है. दंड: एक महीने तक की कैद या ₹200 जुर्माना या दोनों यदि आदेश से जीवन को खतरा हो सकता है: छह महीने तक की कैद या ₹1000 जुर्माना या दोनों

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