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दिल्ली: 1983 में आवंटित जमीन के लिए आज भी भटक रहे 153 दलित परिवार, क्या खत्म होगा इंतज़ार?

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के पॉश इलाके वसंत कुंज से सटे रंगपुरी गांव में 153 भूमिहीन दलित परिवारों का सपना पिछले चार दशकों से फाइलों और अदालती तारीखों में उलझा हुआ है। साल 1983 में केंद्र सरकार की एक योजना के तहत इन परिवारों को 120-120 वर्ग गज के प्लॉट आवंटित किए गए थे। लेकिन 42 साल बाद भी हकीकत यह है कि उस खाली जमीन पर जंगली कीकर उगे हुए हैं और वहां ट्रांसपोर्टर्स अपनी बसें और ट्रक पार्क करते हैं।

जिस जमीन के एक हिस्से को दिल्ली सरकार ने 2012 में स्टाफ क्वार्टर बनाने के लिए अधिग्रहित किया था, वहां आज तक निर्माण का कोई नामो-निशान नहीं है। वहीं, अपने हक की लड़ाई लड़ रहे परिवार आज भी न्याय की आस लगाए बैठे हैं।

तीन दशक से कोर्ट में चल रही है लड़ाई

यह मामला पिछले 30 सालों से अधिक समय से अदालत में है। करीब डेढ़ दशक पहले ही दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि लाभार्थियों को उनका हक मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, साल 2016 में हाईकोर्ट ने अधिकारियों के खिलाफ 'स्वतः संज्ञान' (Suo Motu) लेते हुए अवमानना की कार्यवाही भी शुरू की थी।

बावजूद इसके, सरकार ने अब कोर्ट में दलील दी है कि आवंटित जमीन उपलब्ध नहीं है। प्लॉट के बदले में सरकार ने इन 153 परिवारों को रंगपुरी से लगभग 35 किलोमीटर दूर नरेला में एक-एक छोटा फ्लैट (EWS श्रेणी) देने का प्रस्ताव रखा है। यदि वे फ्लैट नहीं चाहते, तो उन्हें मुआवजे के तौर पर 17 लाख रुपये लेने का विकल्प दिया गया है।

सरकार की टालमटोल पर हाईकोर्ट सख्त

इस मामले में 10 नवंबर को सुनवाई करते हुए जस्टिस नितिन वासुदेव संबरे और जस्टिस अनिश दयाल की पीठ ने सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि सरकार "प्रशासनिक फैसलों" का सहारा लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायिक आदेशों को "रुकवाने या बेकार करने" की कोशिश न करें। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को भी सलाह दी कि वे अड़ियल रवैया न अपनाएं और सरकार के "उचित प्रस्ताव" पर विचार करने के लिए तैयार रहें।

एलजी के साथ बैठक भी रही बेनतीजा

17 नवंबर को दिल्ली सरकार के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता संजय जैन ने कोर्ट को बताया कि लगभग एक दशक से चल रही अवमानना कार्यवाही को देखते हुए, मुद्दे को सुलझाने के लिए 21 नवंबर 2025 को माननीय उपराज्यपाल (LG) के साथ एक बैठक निर्धारित की गई है। हालांकि, शुक्रवार को हुई उस बैठक में मौजूद सूत्रों का कहना है कि इसमें कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका।

कैसे शुरू हुआ यह पूरा मामला?

कानूनी लड़ाई की शुरुआत 1993 में हुई, जब एक लाभार्थी नंद किशोर (जो अब 67 वर्ष के हैं) ने अपने वकील राकेश सैनी के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने 'प्रधानमंत्री के बीस सूत्री कार्यक्रम' (TPP) के तहत 1983 में आवंटित प्लॉट पर कब्जे की मांग की थी। यह योजना 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा वंचित और भूमिहीन परिवारों को जमीन देने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।

साल 2011 में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने नंद किशोर के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि रंगपुरी गांव के भूमिहीन निवासियों को आवास के लिए जमीन देना सरकार का "कानूनी दायित्व" और "सामाजिक जिम्मेदारी" है। हालांकि, क्योंकि आवंटन में 'दिल्ली पंचायत राज नियमों' के तहत पूर्व मंजूरी नहीं ली गई थी, इसलिए कोर्ट ने अधिकारियों को टीपीपी के उद्देश्य को पूरा करने के लिए वैकल्पिक जमीन तलाशने का निर्देश दिया था।

जमीन की अदला-बदली और वादों का खेल

जुलाई 2012 में सरकार की अपील खारिज होने के बाद, जनवरी 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की याचिका ठुकरा दी और हाईकोर्ट के आदेश को लागू न करने पर अवमानना कार्यवाही की चेतावनी दी।

इसके बाद शुरू हुआ वादों और यू-टर्न का सिलसिला:

  • 2016: प्रशासन ने हाईकोर्ट को बताया कि रंगपुरी में जमीन नहीं है, लेकिन पास के 'रजोकरी' गांव में 25 बीघा और 5 बिस्वा जमीन की पेशकश की।

  • मार्च 2017: प्रशासन ने अपना रुख बदला और कहा कि नजफगढ़ के 'खेड़ा डाबर' गांव में जमीन की पहचान की गई है।

  • 2018: प्रशासन ने फिर पलटी मारी और कहा कि किसी अन्य गांव की जमीन रंगपुरी के निवासियों को आवंटित नहीं की जा सकती।

अब क्या है ताजा स्थिति?

अक्टूबर 2024 में प्रशासन ने हाईकोर्ट को सूचित किया कि सरकार के पास कोई जमीन उपलब्ध नहीं है। नीतिगत फैसले के तहत, दावेदारों को नरेला के सेक्टर जी-7, पॉकेट 4 में लगभग 35.50 वर्ग मीटर के 153 ईडब्ल्यूएस फ्लैट या 17 लाख रुपये की अनुग्रह राशि (Ex-gratia) दी जा सकती है।

इसी साल मार्च में याचिकाकर्ता नंद किशोर ने कोर्ट से गुहार लगाई कि या तो मलिकपुर कोही और रंगपुरी की जमीन का अधिग्रहण रद्द किया जाए, या फिर उन्हें रजोकरी में वो 120 गज के प्लॉट दिए जाएं जिनका जिक्र प्रशासन ने पहले किया था। अब इस मामले की अगली सुनवाई 1 दिसंबर को होनी है, जिस पर सभी की निगाहें टिकी हैं।

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