लखनऊ – बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में दलित शोध छात्र बसंत कन्नौजिया के निष्कासन के खिलाफ शांतिपूर्ण धरना एक सप्ताह से अधिक समय से जारी है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा लगाए गए 'अनुशासनहीनता' के आरोपों को खारिज करते हुए कन्नौजिया शिक्षा और न्याय के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए परिसर में धरने पर डटे हुए हैं। लेकिन अब मामला और तूल पकड़ लिया है, क्योंकि प्रशासन ने उनके समर्थन में खड़े छात्रों को भी चेतावनी नोटिस जारी कर दिए हैं। नगिना से सांसद चंद्रशेखर आजाद समेत प्रमुख बहुजन कार्यकर्ता इस मामले में खुलकर उतर आए हैं और विश्वविद्यालय से तत्काल निष्कासन रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
यह घटना बीबीएयू के इतिहास में जातिगत भेदभाव और प्रशासनिक तानाशाही का एक और काला अध्याय जोड़ रही है। कन्नौजिया, जो इतिहास विभाग में पीएचडी शोधार्थी हैं, पिछले 14 वर्षों से विश्वविद्यालय में अध्ययनरत थे। 17 सितंबर को परिसर में हुई कथित अशांति के दौरान उन्हें 'छात्रों को भड़काने, तोड़फोड़ और वीसी कार्यालय में घुसपैठ' का दोषी ठहराया गया। जांच समिति और अनुशासन समिति ने सीसीटीवी फुटेज, छात्र बयानों और उनके पूर्व रिकॉर्ड (जिसमें 2012 से 14 अनुशासनहीनता के मामले, शो-कॉज नोटिस और एफआईआर शामिल हैं) के आधार पर उन्हें निष्कासित करने की सिफारिश की। कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने 17 अक्टूबर को जारी शो-कॉज नोटिस के जवाब को 'निराधार' बताते हुए उनके निष्कासन आदेश जारी कर दिया। आदेश में उन्हें परिसर में प्रवेश और भविष्य में प्रवेश से भी वंचित कर दिया गया।
#BBAU प्रशासन की तानाशाही का एक और शर्मनाक उदाहरण!
— Basant Kumar Kanaujiya (@bk_kanaujiya) November 24, 2025
दलित छात्रों के लिए 50% आरक्षण और 51 दलित प्रोफेसर वाले विश्वविद्यालय में ही दलित शोधार्थियों /छात्रों को सबसे ज्यादा जातिगत प्रताड़ित किया जा रहा है। मुझ पर झूठा अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर निष्कासन कर दिया गयाबीऔर मैं अपने… pic.twitter.com/yythxGNz5l
निष्कासन के तुरंत बाद कन्नौजिया ने संवैधानिक दायरे में रहते हुए शांतिपूर्ण धरना शुरू कर दिया, जो अब सातवें दिन में प्रवेश कर चुका है। धरना स्थल प्रशासनिक भवन के मुख्य द्वार के पास है, जहां वे छात्र कल्याण, जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने और शिक्षा के अधिकार की मांग कर रहे हैं। लेकिन प्रशासन की प्रतिक्रिया और कठोर हो गई है। 20 नवंबर से धरने में शामिल होने वाले छात्रों को नोटिस भेजे जा रहे हैं।
सबसे ताजा मामला सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के छात्र शिवम कुमार का है। विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर कार्यालय ने 21 नवंबर 2025 को पत्र संख्या 1084/प्रॉक्ट./बीबीएयू/2025 जारी किया, जिसमें शिवम को 'अनुशासनहीन गतिविधियों में लगातार शामिल रहने' के लिए चेतावनी दी गई। पत्र में कहा गया है: "ऐसा पाया गया है कि आप बाहरी तत्वों के साथ मिलकर विश्वविद्यालय परिसर के अन्दर प्रशासनिक भवन के मुख्य द्वार पर दिनाँक 20.11.2025 से धरना-प्रदर्शन में शामिल हैं। जिससे प्रशासनिक भवन में आने-जाने वाले शिक्षकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों के मार्ग में बाधा पहुँचाने के साथ-साथ परिसर में अशांति फैलाने में लिप्त है। इस प्रकार के कृत्य विश्वविद्यालय की छात्र आचार संहिता का घोर उल्लंघन है।"
पत्र में आगे चेतावनी दी गई: "अतः आपको निर्देशित किया जाता है कि आप इस प्रकार की अनुशासनहीन गतिविधियों से अविलम्ब दूर होकर अपने शैक्षणिक कार्यों पर ध्यान केन्द्रित करें। आपके द्वारा की जा रही अनुशासनहीन गतिविधियों के कारण आपको विश्वविद्यालय के नियमानुसार दण्डित भी किया जा सकता है।"
यह नोटिस न केवल धरने में भागीदारी के लिए है, बल्कि समर्थन व्यक्त करने वालों के लिए मानसिक प्रताड़ना का रूप ले चुका है। कन्नौजिया के अनुसार, अब उनके समर्थन में खड़े दूसरे छात्रों को भी इसी तरह के नोटिस भेजे जा रहे हैं।
कन्नौजिया ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया में प्रशासन की तानाशाही को बेनकाब किया है। उन्होंने लिखा: "प्रशासन की तानाशाही का एक और शर्मनाक उदाहरण! दलित छात्रों के लिए 50% आरक्षण और 51 दलित प्रोफेसर वाले विश्वविद्यालय में ही दलित शोधार्थियों/छात्रों को सबसे ज्यादा जातिगत प्रताड़ित किया जा रहा है। मुझ पर झूठा अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर निष्कासन कर दिया गया और मैं अपने न्याय व शिक्षा के अधिकार की रक्षा के लिए संवैधानिक दायरे में रहकर शांतिपूर्ण धरने पर बैठा हूँ। लेकिन अब प्रशासन ने उन छात्रों को भी नोटिस जारी कर दिया जो सिर्फ मेरे समर्थन में खड़े हुए थे। सभी विभागाध्यक्षों को आदेश दिया गया है कि कोई भी छात्र/शोधार्थी बसंत कुमार कन्नौजिया के आंदोलन में शामिल न हो। यह साफ दिखाता है कि प्रशासन असहमति की आवाज से डरता है और जातिवादी मानसिकता से छात्रों को दबाने की कोशिश कर रहा है। अब मेरे समर्थन करने वाले दूसरे छात्र को भी नोटिस देकर मानसिक प्रताड़ना शुरू हो चुकी है। क्या यही है लोकतंत्र? क्या यही है बाबासाहेब के नाम पर चला विश्वविद्यालय? सच यह है कि अन्याय के खिलाफ आवाज को नोटिस से नहीं दबाया जा सकता। हम संविधान के रास्ते पर हैं और संघर्ष जारी रहेगा।"
इधर, मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। नगिना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कन्नौजिया के समर्थन में खुलकर बयान दिया है। उन्होंने कहा, "BBAU (केंद्रीय विश्वविद्यालय) में एक दलित शोधार्थी पर लगाए गए मनगढ़ंत एवं फर्जी अनुशासनहीनता के आरोपों और उसके आधार पर किए गए अन्यायपूर्ण निष्कासन के विरोध में चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन और संघी मानसिकता से संचालित Vice Chancellor महोदय की चुप्पी चिंता का विषय है। ऐसी चुप्पी न केवल अनैतिक है, बल्कि एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की लोकतांत्रिक और संवैधानिक मर्यादा पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करती है। यह संघर्ष केवल एक छात्र का नहीं है, बल्कि— अस्मिता की रक्षा, सम्मान की पुनर्स्थापना, संविधानिक मूल्यों की सुरक्षा और BBAU (केंद्रीय विश्वविद्यालय) की लोकतांत्रिक आत्मा को बचाने का संघर्ष है। हम स्पष्ट करते हैं: “दलित शोधार्थी पर अत्याचार — अब देश नहीं करेगा बर्दाश्त।”
अपनी जनता पार्टी के अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक पोस्ट में लिखा- "बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के दलित शोध छात्र बसंत कुमार कनौजिया पर अनुशासनहीनता का झूठा आरोप लगाकर, बिना तथ्य और बिना पक्ष सुने, निष्कासित कर दिया गया । जबकि विश्वविद्यालय परिसर में लगे सी.सी.टी वी. कैमरे के फुटेज को देखकर सही तथ्यों की जानकारी की जा सकती है किंतु ऐसा न कर विश्वविद्यालय प्रशासन ने जातिवादी मानसिकता से ग्रसित होकर तानाशाही एवं भेदभाव पूर्ण घटिया कृत किया है जिसकी मैं घोर निंदा करता हूं दलितों,आदिवासियों व पिछड़ों के साथ पहले भी इसी प्रकार का भेदभाव, कभी शम्वूक का सिर काटकर और कभी एकलव्य का अंगूठा काटकर किया जाता रहा है। चिंता की बात है कि मनुवादी सोच के लोग आज भी ऐसा कर रहे हैं जो दुर्भाग्य पूर्ण है।"