MP: नेता प्रतिपक्ष की चेतावनी के बाद मुख्यमंत्री ने की वनग्राम सर्वे की घोषणा! जानिए क्या है मामला?

05:27 PM Jun 22, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। मध्यप्रदेश के आदिवासी समुदाय के लिए एक बड़ी जीत सामने आई है। मुख्यमंत्री द्वारा हाल ही में की गई यह घोषणा कि राज्य के वनग्रामों में फिर से सर्वे कराया जाएगा और जो पात्र आदिवासी वनाधिकार पट्टों से वंचित रह गए हैं उन्हें पट्टे दिए जाएंगे—ने वर्षों से संघर्ष कर रहे समुदाय को राहत तो दी है, लेकिन साथ ही कई नए सवाल भी खड़े कर दिए हैं।

इस पूरी प्रक्रिया के केंद्र में हैं नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, जिन्होंने न केवल आदिवासियों की मांगों को खुलकर विधानसभा और सड़क दोनों पर उठाया, बल्कि नेपानगर में एक विशाल जनसभा कर सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम भी दिया था। इसके बाद ही सरकार की ओर से यह घोषणा आई, जिसे सिंघार ने "आदिवासियों की जीत" बताया है।

सरकार आदिवासियों की आवाज़ के आगे झुकी: सिंघार

भोपाल में मीडिया को संबोधित करते हुए उमंग सिंघार ने कहा — “मुख्यमंत्री की घोषणा आदिवासियों के संघर्ष की जीत है। यह दिखाता है कि यदि संगठित होकर आवाज़ उठाई जाए, तो सरकार को झुकना पड़ता है। हमने आदिवासियों की भूमि पर उनके अधिकार की बात उठाई, सरकार को आखिरकार सुनना पड़ा।”

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उन्होंने यह भी कहा, कि सिर्फ घोषणा कर देना ही काफी नहीं है। वास्तविक समाधान तब होगा जब सरकार समयसीमा बताए, ज़मीनी कार्यवाही शुरू करे और पारदर्शी तरीके से सर्वे और पट्टों का वितरण सुनिश्चित करे।

उमंग सिंघार ने सरकार की घोषणा के बाद कई सवाल उठाए

- क्या सरकार उन 3.5 लाख निरस्त वनाधिकार पट्टों का पुनः सर्वे कराएगी? कई पात्र आदिवासी परिवारों के पट्टे बिना सुनवाई के निरस्त कर दिए गए। क्या उन्हें दोबारा मौका मिलेगा?

जो 1.25 लाख नए आवेदन आए हैं, क्या उन्हें भी सर्वे में शामिल किया जाएगा? इन आवेदनों को लेकर सरकार की चुप्पी चिंता का विषय है।

सर्वे की प्रक्रिया कब शुरू होगी? क्या कोई समय-सीमा तय की गई है? यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कब तक गांवों में टीमें पहुंचेंगी और सर्वे होगा।

सर्वे के लिए ज़िम्मेदार कमेटी का गठन कब होगा? किस विभाग को जिम्मा मिलेगा? टीम में कौन-कौन अधिकारी होंगे?

सिंघार ने कहा कि जब तक इन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए जाते, तब तक यह महज एक "राजनीतिक घोषणा" मानी जाएगी।

जंगल कटाई पर भी उठे गंभीर सवाल

उमंग सिंघार ने प्रदेश में तेजी से हो रही जंगलों की कटाई पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि— “सरकार बार-बार आदिवासियों को जंगल काटने का दोष देती है, लेकिन सच्चाई क्या है? कौन लोग मशीनों और ट्रकों से जंगल साफ कर रहे हैं? क्या इसमें वन विभाग की मिलीभगत है?”

उन्होंने निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए कहा कि सरकार को सामने लाना चाहिए कि असल में कौन जंगलों को खत्म कर रहा है। अगर आदिवासियों को बदनाम करने की साज़िश हो रही है, तो वह भी सामने आनी चाहिए।

नेपानगर से शुरू हुआ आंदोलन बना दबाव की वजह

इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत हुई थी बुरहानपुर जिले के नेपानगर क्षेत्र से, जहां आदिवासियों के पट्टे रद्द कर दिए गए थे। इससे नाराज़ होकर उमंग सिंघार ने वहां बड़ी रैली की और कहा कि अगर 15 दिन के भीतर कोई हल नहीं निकला तो राज्यव्यापी आंदोलन शुरू किया जाएगा।

इसके साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर चेताया था। इसके बाद ही सरकार की ओर से यह घोषणा आई कि अब वनग्रामों में पुनः सर्वे होगा।

आदिवासी वनाधिकार का सवाल

वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत आदिवासी परिवारों को वन भूमि पर अधिकार दिए जाते हैं। लेकिन बीते वर्षों में हजारों परिवारों के पट्टे या तो रद्द कर दिए गए या उन्हें पट्टे दिए ही नहीं गए। इसके खिलाफ कांग्रेस और कई सामाजिक संगठन लगातार आवाज़ उठा रहे थे।