नई दिल्ली: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को लेकर एक महत्वपूर्ण दावा किया है। उन्होंने कहा कि मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के दौरान संघ के घर वापसी अभियान की सराहना की थी और यह भी कहा था कि संघ के इस प्रयास के बिना, आदिवासियों का एक हिस्सा “राष्ट्रविरोधी” हो सकता था।
भागवत ने यह बात सोमवार को इंदौर में आयोजित एक कार्यक्रम में कही, जहां उन्होंने विहिप नेता चंपत राय को ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार’ प्रदान किया। चंपत राय श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव भी हैं।
अपने संबोधन में भागवत ने बताया कि जब संसद में घर वापसी को लेकर बहस चल रही थी, तब उनकी पहली बार मुखर्जी से मुलाकात हुई थी। उन्होंने कहा:
“डॉ. प्रणब कुमार मुखर्जी उस समय राष्ट्रपति थे। जब मैं उनसे पहली बार मिला, तो संसद में घर वापसी को लेकर बहुत विवाद चल रहा था। मैं पूरी तैयारी के साथ गया था, लेकिन उन्होंने मुझसे पूछा कि आपने कुछ लोगों को वापस लाने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों की? ऐसा करने से विवाद होता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर मैं कांग्रेस में होता और राष्ट्रपति नहीं होता, तो मैं भी संसद में इसका विरोध करता। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि संघ के प्रयासों के कारण 30% आदिवासी ईसाई या राष्ट्रविरोधी बनने से बच गए।”
भागवत ने यह भी बताया कि यदि धर्मांतरण स्वेच्छा से और आंतरिक विश्वास से हो, तो यह स्वीकार्य है। लेकिन प्रलोभन या जबरदस्ती से धर्मांतरण को उन्होंने गलत ठहराया। उन्होंने कहा:
“अगर धर्मांतरण आंतरिक प्रेरणा से होता है, तो यह ठीक है। हम मानते हैं कि सभी प्रार्थना पद्धतियां सही हैं। लेकिन अगर धर्मांतरण प्रलोभन या जबरदस्ती से होता है, तो इसका उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति नहीं होता, बल्कि जड़ों से काटकर प्रभाव बढ़ाना होता है।”
2018 में नागपुर में आयोजित एक आरएसएस कार्यक्रम में मुखर्जी की भागीदारी ने पहले ही काफी चर्चा बटोरी थी। भागवत के हालिया बयान इस चर्चा को और गहरा करते हैं, विशेष रूप से क्योंकि कांग्रेस में रहते हुए मुखर्जी से ऐसे विचार सार्वजनिक रूप से नहीं जोड़े गए थे।
मामले पर, राष्ट्रीय समाचार समूह द इंडियन एक्सप्रेस ने, मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी से संपर्क किया तो उन्होंने भागवत के दावों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
आपको बता दें कि, संघ परिवार लंबे समय से आदिवासियों के ईसाई धर्मांतरण का विरोध करता रहा है। वानवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों के माध्यम से यह अभियान दशकों से चल रहा है। हाल के वर्षों में, संघ से जुड़े संगठनों ने आदिवासी इलाकों में धर्मांतरण के खिलाफ और धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण लाभ से वंचित करने के लिए अभियान तेज किया है।
संघ के सूत्रों के अनुसार, भागवत का इंदौर में दिया गया भाषण भारत की सांस्कृतिक पहचान पर केंद्रित था, जिसे उन्होंने भगवान राम, कृष्ण और शिव से जोड़ा। उन्होंने मुखर्जी को यह कहते हुए उद्धृत किया कि भारत का 5,000 साल पुराना सभ्यतागत इतिहास स्वयं धर्मनिरपेक्षता को समाहित करता है और दुनिया को भारत को धर्मनिरपेक्षता सिखाने की आवश्यकता नहीं है।
भागवत का यह बयान ऐसे समय आया है जब विपक्ष जाति जनगणना और आदिवासी अधिकारों को अपने चुनावी रणनीति के केंद्र में रख रहा है। इस संदर्भ में, भागवत का सांस्कृतिक पहचान और धर्मांतरण विरोधी रुख संघ के लंबे समय से स्थापित विचारों के अनुरूप है।