भोपाल। मध्य प्रदेश में सरकारी भर्तियों के 13% पद ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए होल्ड होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई। ओबीसी महासभा के वकील वरुण ठाकुर के अनुसार, कोर्ट ने सवाल किया, “मध्यप्रदेश सरकार सो रही है क्या? 6 साल में 13% होल्ड पदों पर आपने क्या किया?”
यह मामला उन चयनित अभ्यर्थियों से जुड़ा है, जिन्हें मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) की परीक्षाओं में सफल होने के बावजूद नियुक्ति नहीं दी जा रही है। इन अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर नियुक्ति की मांग की है।
2019 से लटका 27% ओबीसी आरक्षण
प्रदेश सरकार ने 2019 में ओबीसी आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने का कानून पारित किया था। इस संशोधन के बाद कुल आरक्षण का प्रतिशत 73% हो गया, जिसमें एसटी को 20%, एससी को 16%, ओबीसी को 27% और ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण शामिल था।
मई 2022 में, हाईकोर्ट ने शिवम गौतम की याचिका पर सुनवाई करते हुए 27% ओबीसी आरक्षण के क्रियान्वयन पर रोक लगाई और इसे 14% तक सीमित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 50% की संवैधानिक सीमा से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसके बाद कई भर्तियों में 13% पदों को होल्ड कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मंगलवार की सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार के नेता सार्वजनिक मंचों पर तो 27% आरक्षण देने की प्रतिबद्धता जताते हैं, लेकिन कोर्ट में उनके वकील तब पहुंचते हैं जब आदेश डिक्टेट हो चुका होता है।
सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने MPPSC चयनित अभ्यर्थियों की ओर से पक्ष रखा, जबकि राज्य सरकार का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने रखा।
सरकार ने दलील दी कि ओबीसी को 27% आरक्षण देने के लिए वे भी इच्छुक हैं और हाईकोर्ट के आदेश से उत्पन्न प्रशासनिक अड़चनों को देखते हुए जल्द सुनवाई की जाए। कोर्ट ने मामले को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हुए 23 सितंबर से रोजाना सुनवाई का आदेश दिया और इसे सूची में पहले नंबर पर रखने का निर्देश दिया।
कोर्ट की आपत्ति
सुप्रीम कोर्ट ने 22 सितंबर 2022 को जारी राज्य सरकार के नोटिफिकेशन पर सवाल उठाते हुए पूछा कि इसे कानून के खिलाफ क्यों जारी किया गया था। एड. वरुण ठाकुर के अनुसार, सरकार ने माना कि यह नोटिफिकेशन गलत तरीके से जारी हुआ था।
द मूकनायक से बातचीत में ओबीसी महासभा के कोर कमेटी सदस्य, एडवोकेट धर्मेंद्र कुशवाहा ने कहा कि प्रदेश में ओबीसी वर्ग के 13% पदों को पिछले छह साल से होल्ड पर रखकर सरकार ने लाखों युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है। उन्होंने कहा कि 2019 में विधानसभा से 27% आरक्षण का कानून पारित होने के बावजूद हाईकोर्ट के स्थगन आदेश को चुनौती देने में सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई। सुप्रीम कोर्ट में भी कई बार सरकार की लापरवाही और देर से पेशी के कारण सुनवाई के मौके गंवाए गए।
एडवोकेट कुशवाहा ने कहा कि छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में ओबीसी को पर्याप्त आरक्षण का लाभ मिल रहा है, जबकि मध्यप्रदेश में सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी हो रही है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद अब सरकार को तुरंत कदम उठाकर हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगवानी चाहिए, ताकि होल्ड पदों को जल्द भरा जा सके और ओबीसी वर्ग के युवाओं को उनका संवैधानिक हक मिल सके।
छत्तीसगढ़ से तुलना
इससे पहले 22 जुलाई की सुनवाई में राज्य सरकार ने दलील दी थी कि जैसे छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी है, वैसे ही एमपी को भी राहत दी जाए ताकि भर्ती प्रक्रिया पूरी हो सके। हालांकि, अनारक्षित पक्ष ने आपत्ति जताते हुए कहा कि दोनों राज्यों के हालात अलग हैं। छत्तीसगढ़ में एसटी आबादी अधिक होने से वहां का आरक्षण पुरानी संरचना के अनुसार है, जबकि एमपी में 14% से सीधे 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने की कोशिश हुई।
याचिकाओं की बड़ी संख्या
अब तक 70 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो चुकी हैं। राज्य सरकार ने ट्रांसफर केस 7/2025 के तहत हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की है। अगर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाता है, तो मध्यप्रदेश में ओबीसी को 27% आरक्षण लागू हो सकेगा और होल्ड 13% पदों पर नियुक्ति की राह खुल जाएगी।