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आरक्षक भर्ती 2016 में आरक्षण पर विवाद: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गृह सचिव और पीएचक्यू से मांगा शपथ पत्र, जानिए पूरा मामला?

भोपाल। मध्य प्रदेश में 2016 की आरक्षक भर्ती में आरक्षण नियमों को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। आरक्षण की प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं और विरोधाभाषी जवाबों को लेकर हाईकोर्ट में दायर याचिका (कर्मांक 3966/2023) पर मंगलवार को मुख्य न्यायमूर्ति और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने सुनवाई की। कोर्ट ने गृह सचिव और पुलिस मुख्यालय (पीएचक्यू) के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे शपथ पत्र के माध्यम से स्पष्ट करें कि इस भर्ती में जिलेवार आरक्षण लागू किया गया या प्रदेशवार।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि गृह विभाग ने इस मामले में तीन बार विरोधाभाषी जवाब दाखिल किए हैं। इससे कोर्ट में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई। हाईकोर्ट ने इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यदि शपथ पत्र में गलत जानकारी दी गई तो संबंधित अधिकारियों को इसके परिणाम भुगतने होंगे।

भर्ती में ओबीसी उम्मीदवारों के साथ भेदभाव का आरोप

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि पीएचक्यू ने चयन प्रक्रिया में अनियमितताएं की हैं। पीएचक्यू ने ओबीसी वर्ग के 62% अंक हासिल करने वाले उम्मीदवारों को अनारक्षित श्रेणी में और 72% अंक प्राप्त करने वालों को ओबीसी श्रेणी में रखा।

भर्ती प्रक्रिया की विसंगतियां:

  • 15 दिसंबर 2016 को जारी कटऑफ सूची में ओबीसी के 884 पदों को रिक्त बताया गया था।

  • 9 दिसंबर 2022 को पीएचक्यू ने जिलेवार मेरिट सूची तैयार कर दी, जिससे आरक्षण की प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो गए।

  • कुल 1090 ओबीसी पदों में से 884 पद रिक्त छोड़ दिए गए।

  • उच्च अंक वाले ओबीसी उम्मीदवारों को उनकी श्रेणी में न रखते हुए, कम अंक वालों को अनारक्षित श्रेणी में समायोजित किया गया।

कोर्ट का स्पष्ट निर्देश

हाईकोर्ट ने गृह सचिव और पीएचक्यू को निर्देश दिए हैं कि वे स्पष्ट करें कि आरक्षण नियमों को जिलेवार लागू किया गया या प्रदेशवार। यदि शपथ पत्र में गलत जानकारी दी गई, तो संबंधित अधिकारियों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक शाह, रामभजन लोधी, और पुष्पेंद्र शाह ने पैरवी की।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने कहा, "आरक्षक भर्ती 2016 में आरक्षण नियमों के उल्लंघन के आरोप गंभीर हैं, और इस मामले में गृह सचिव और पीएचक्यू द्वारा दी गई असंगत जानकारी से न्याय की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। कोर्ट में दायर याचिका में यह स्पष्ट किया गया है कि कैसे ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को उनके निर्धारित श्रेणी में नहीं रखा गया और उनकी मेरिट के बावजूद उन्हें अनारक्षित श्रेणी में डाल दिया गया।"

उन्होंने आगे कहा, "यह मामला न केवल न्यायिक पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकारी संस्थाएं आरक्षण जैसे संवैधानिक अधिकारों को लागू करने में गंभीरता से चूक रही हैं। हमें विश्वास है कि अदालत इस मामले में उचित दिशा-निर्देश जारी करेगी और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी।"

पीएचक्यू पर तानाशाही का आरोप

याचिकाकर्ताओं ने पीएचक्यू पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी पोस्टिंग में मनमानी की गई और मेरिट सूची का पालन नहीं किया गया। इससे परेशान होकर अभ्यर्थियों को फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

2016 की आरक्षक भर्ती में आरक्षण के नियमों को लेकर विवाद शुरू से ही बना हुआ है। आरोप है कि भर्ती एजेंसी ने आरक्षण प्रक्रिया में गड़बड़ी की, जिससे बड़ी संख्या में ओबीसी उम्मीदवारों के साथ अन्याय हुआ।

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