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बाबा साहेब का मूर्तिभंजन: सेलेक्टिव व्याख्याओं का षड्यंत्र

मुंबई में डॉ.अम्बेडकर के सम्पर्क में वह (मिल्ड्रेड ड्रेशर) आयीं। वे इतने घनिष्ठ हो गए कि जब भी अम्बेडकर मुंबई आते, यहीं रुकते उनके घर। उनकी दोस्ती से ऐसी अफवाहें उड़ीं कि वे शादी कर सकते हैं। (आनंद तेलतुंबड़े,आयकोनोक्लास्ट अ रिफ्लेक्टिव बायोग्राफी ऑफ़ डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर)

बाबा साहेब अम्बेडकर के पिता 50 रूपये का पेंशन पाते थे, जो आज के 78 हजार रूपये के समतुल्य है और वे इतने खुशनसीब थे कि दो-दो महाराजाओं ने उन्हें विदेश में पढ़ने के लिए फेलोशिप दिया। (आनंद तेलतुंबड़े, आयकोनोक्लास्ट अ रिफ्लेक्टिव बायोग्राफी ऑफ़ डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर)

अम्बेडकर कभी भी सिख धर्म को लेकर गंभीर नहीं थे, विदेश दौरे में मदद और खालसा कॉलेज की स्थापना के लिए बाबा साहेब अम्बेडकर ने सिख धर्म के लोगों को अहसास दिया था कि वे हिन्दू धर्म छोड़कर सिख बनेंगे, जिसके लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन समिति द्वारा उन्हें 7000 रूपये का भुगतान किया गया था। (आनंद तेलतुंबड़े, आयकोनोक्लास्ट अ रिफ्लेक्टिव बायोग्राफी ऑफ़ डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर)

बाबा साहेब अम्बेडकर ने कांग्रेस की महिलाओं के लिए अपमान जनक भाषण दिया था। उस अम्बेडकर ने जिन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समाज की उन्नति का मापदंड उस समाज में महिलाओं की उन्नति होती है। (आनंद तेलतुंबड़े, आयकोनोक्लास्ट अ रिफ्लेक्टिव बायोग्राफी ऑफ़ डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर)

ऐसी अनेक बातों, 'सेलेक्टिव व्यख्याओं का षड्यंत्र' है आनंद तेलतुंबड़े, द्वारा लिखी गई किताब, बाबा साहेब की जीवनी, 'आयकोनोक्लास्ट अ रिफ्लेक्टिव बायोग्राफी ऑफ़ डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर', पेंगुइन इंडिया.

आयकोनोक्लास्ट का अर्थ होता है 'मूर्ति भंजक'। मूर्ति भंजन की इस योजनाबद्ध जीवनी के प्रतिलेखक का दावा है कि बाबा साहेब को और दलित आंदोलन को उनके भक्तों से, कथित कोऑप्शन से निकालने की कोशिश है यह जीवनी। लेखक ने पूरी शिद्दत से बाबा साहेब को संविधान का ड्राफ्ट मैन सिद्ध किया है। और संविधान सभा में महज वकील।

बाबा साहेब के बारे में लेखक द्वारा सबसे ऊपर की तीन स्थापनाओं के संदर्भ हैं खैरमोड़े की जीवनी। कुछ कुछ धनञ्जय कीर की भी। इनके बारे में खुद लेखक ने लिखा है कि बाबा साहेब के जीवन काल में ही सी.खैरमोड़े उनसे नाराज हो गए थे, अलग हुए थे और हिन्दू महासभा से जुड़ गए थे। धनंजय कीर भी स्वयं सावरकर भक्त रहे हैं।

खैर, इस टिपण्णी के प्रारम्भ का जो दूसरा बिंदु है वह सेलेक्टिव धारणा के लिए एक आधार हो सकता है,उन तथ्यों से अलग जाकर कि उच्च शिक्षा के लिए डॉ. आंबेडकर की पहली विदेश यात्रा के बहुत पूर्व ही उनके पिता और मां की मौत हो चुकी थी और परिवार आर्थिक संघर्षों से जूझ रहा था।

पहले बिंदु का आधार सी. खैरमोडे हैं और उसमें उल्लिखित 'मिल्ड्रेड ड्रेशर' वह नहीं हैं जिनसे बाबा साहेब के पत्र व्यवहार थे। इंग्लैण्ड की फ्रैंसिका ('एफ') नाम की स्त्री से उनके पत्र व्यवहार थे। खैरमोड़े द्वारा उल्लिखित मिल्ड्रेड ड्रेशर सहित अन्य तथ्यों के जरिये बाबा साहेब की जीवनसाथी रमा बाई के प्रति बाबा साहेब की कमियां बताई गई हैं। सबकुछ सेलेक्टिव सा। रमाबाई और उनके सम्बन्ध के जो डोर थे, उन्हें रखे बिना।

सिख धर्म वाला प्रसंग डॉ. आंबेडकर को एक चालाक व्यक्ति के रूप में पेश करता है। ऐसे कई प्रसंग हैं,जो इसी टोन में पेश किये गए हैं।

पूरी किताब एक ख़ास मकसद की कीमियागिरी से लिखी गई है। पैटर्न वही संघ/ आरएसएस वाला। सेलेक्टिव प्रसंग उठा लेना अपने मकसद को पूरा करने के लिए। वह भी ज्यादातर हिन्दू महासभा और सावरकर के अनुरागी लोगों के लेखन से। मकसद 'मूर्ति भंजन' की महान जिम्मेवारी। आयकोनोक्लास्ट का अनुवाद 'मूर्ति भंजन' के अलावा मूर्ति का मानवीकरण भी हो सकता है। जो अपनी व्याख्या में आनंद तेलतुंबड़े कहते भी हैं। लेकिन महान मूर्तियों के, महान छवियों के कथित मानवीकरण में आप खुद अमानवीकृत न हो जाएँ यह देखना होता है। अपने ख़ास एजेंडे के तहत धनंजय कीर ने भी जीवनी लिखी थी लेकिन बाबा साहेब से उनका प्रेम उसमें दिखता है।

किसी भी अम्बेडकरवादी (या उसे जिसे बाबा साहेब के प्रति सम्मान है) को यह बात खलेगी कि दीक्षा के बाद जो महिला विरोधी कथित भाषण है उसे क्यों न एक बार वेरिफाई कर लिया जाए। भले ही वह बाबा साहेब के सम्पूर्ण वांग्मय में शामिल है। कोई भी अम्बेडकरवादी उसे पढ़कर बेचैन होता है,और सोर्स की ओर पहुँचता है। उसका सोर्स है अख़बारों की कथित रिपोर्टिंग, अथवा 'हियर से । यही वजह है कि डॉ. आंबेडकर और उनकी विरासत के प्रति अनुराग रखने वाले लोग वांग्मय से रिपोर्टेड चीजों को हटाने की बात कर रहे हैं। वांगमय में भाषण, पत्र, आलेख अदि हो सकते हैं, अख़बारों की रिपोर्टिंग नहीं। अम्बेडकरी वांङ्गमय के रिसर्चर प्रकाश तुपे उस वक्त के और अख़बारों से इसपर शोध कर रहे हैं, पीआईएल की तैयारी में भी हैं कि सम्पूर्ण वांग्मय से रिपोर्टेड चीजें हटें।

डॉ. अम्बेडकर और दलित आंदोलन पर अपनी धारणाओं को पुष्ट करने के लिए आनंद तेलतुंबड़े बाबा साहेब के परिनिर्वाण के वक्त का नानक चंद रत्तू जी का लिखा कोट तो करते हैं, लेकिन माई साहेब के हवाले से आई उनकी किताब ' बाबा साहेब, माय लाइफ विद डॉक्टर आंबेडकर' का नहीं। एक अन्य प्रसंग में वे इस किताब के प्रस्तोता विजय सुरवड़े का जिक्र करते हैं, लेकिन विजय सुरवडे द्वारा किये गए इस उल्लेख से उन्हें कोई मतलब नहीं कि रत्तू साहेब अपनी टिप्पणियों के प्रति पश्चाताप में थे। हालाँकि लेखक को दलित आंदोलन पर अपनी राय देनी होती है तो वे माई साहेब का इसके लिए ढाल और तलवार की तरह इस्तेमाल करते हैं।

यदि मूर्ति से बाहर बाबा साहेब के काम, उनके प्रभाव, उनके संघर्ष और उनकी राजनीति व योगदान को व्यख्यायित करने वाली किताब/ जीवनी पढ़नी ही हो तो क्रिस्टोफ जाफरलॉट की किताब क्यों नहीं पढ़ी जाए या मधु लिमये की, जो बाबा साहेब अम्बेडकर के प्रति अनुराग भी रखते हैं और उनके योगदानों या विचारों के प्रति एक सम्मानपूर्ण तटस्थता भी।

डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के जीवन और कार्यों के विशेषज्ञ इसपर क्या राय रखते होंगे मुझे नहीं पता लेकिन मुझे तो यह एक साफ़-साफ़ षड्यंत्रकारी योजना का हिस्सा लगता है, हालांकि वे बाबा साहेब के बेटे के दामाद हैं, लेकिन एक ऐसे इकोसिस्टम के सदस्य भी दिखते हैं जिन्हें डॉ. अम्बेडकर उनके कथित क्रान्ति के मार्ग के रोड़ा हैं। ऐसे लोग भगवा ब्रिगेड से एक तालमेल सा बना जाते हैं और इनका तंत्र अंतर्राष्ट्रीय होता है। जल्द ही इस किताब को हिंदी के बड़े प्रकाशक छापेंगे।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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