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MP: मंदसौर के एक गाँव में फैला गुइलेन-बैरे सिंड्रोम, तीन मरीज वेंटिलेटर पर, 56 संदिग्ध, एक की मौत से दहशत

भोपाल। मध्य प्रदेश के मंदसौर ज़िले का मुल्तानपुरा गांव इन दिनों एक दुर्लभ लेकिन खतरनाक बीमारी गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) की चपेट में है। अब तक गांव में 6 लोग इस बीमारी के पुष्ट मरीज पाए जा चुके हैं, जिनमें से तीन ठीक हो चुके हैं, जबकि तीन वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। इसके अलावा 56 लोगों में बीमारी के लक्षण दिखने पर उन्हें संदिग्ध श्रेणी में रखा गया है। इनमें 36 लोग मेडिकल ऑब्ज़र्वेशन में हैं, जिन्हें दस्त, सर्दी, खांसी और बुखार जैसी शिकायत है।

30 जुलाई को गांव की 19 वर्षीय युवती की मौत ने हालात को और भयावह बना दिया है। मृतका के लक्षण GBS से मेल खाते थे, हालांकि जांच में इसकी पुख्ता पुष्टि नहीं हो सकी।

गंदगी में डूबा गांव, संक्रमण फैलने का खतरा

स्थानीय समाचार पत्रों की रिपोर्ट्स के मुताबिक स्थानीय लोग मानते हैं कि गांव में फैली गंदगी इस बीमारी के फैलाव की सबसे बड़ी वजह हो सकती है। स्वास्थ्य विभाग की चार टीमें 32 कर्मचारियों के साथ घर-घर जाकर सर्वे कर रही हैं। अब तक 1,555 घरों के 8,331 लोगों का सर्वे पूरा हो चुका है।

मुल्तानपुरा में संक्रमित पाए गए मरीजों की उम्र 2 से 21 साल के बीच है। इनमें खुशी (10), साहिल और अरहान बीमारी से उबर चुके हैं, जबकि ताजमुल (21) अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में वेंटिलेटर पर हैं।

खुशी के पिता सद्दाम मंगुड़ा ने बताया कि बेटी को पहले तेज बुखार आया। दवा लेने के बाद बुखार तो उतर गया, लेकिन वह चल-फिर नहीं पा रही थी। पैरालिसिस का शक होने पर बड़नगर के डॉक्टर ने रतलाम मेडिकल कॉलेज रेफर किया, फिर इंदौर के अरविंदो अस्पताल भेजा गया। जांच में GBS की पुष्टि हुई। 8 दिन के इलाज के बाद खुशी अब पूरी तरह स्वस्थ है। सद्दाम का कहना है, "गांव की गंदगी इस बीमारी का कारण है।"

मशीन के सहारे सांस ले रहा ताजमुल

ताजमुल अहमदाबाद सिविल अस्पताल में वेंटिलेटर पर है। डॉक्टरों के मुताबिक, GBS शरीर की नसों पर हमला करता है और धीरे-धीरे मांसपेशियों को निष्क्रिय कर देता है। ताजमुल को न तो खाना-पीना संभव है और न ही बिना मशीन के सांस लेना।

12 दिन इलाज के बाद भी नहीं बची 19 वर्षीय युवती

18 जुलाई को सांस लेने और खाने-पीने में तकलीफ के बाद युवती को मंदसौर के पमनानी अस्पताल में भर्ती कराया गया। हालत में सुधार न होने पर अनुयोग अस्पताल, फिर इंदौर के अरविंदो अस्पताल भेजा गया। 8 दिन आईसीयू में रहने के बाद 30 जुलाई को उसकी मौत हो गई। परिवार का कहना है कि डॉक्टरों ने GBS की आशंका जताई थी।

क्या है गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS)?

डॉक्टर्स के मुताबिक, यह एक ऑटोइम्यून कंडीशन है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम अपनी ही नसों पर हमला करता है।शुरुआत में पैरों में झुनझुनी या सुन्नपन होता है, फिर कमजोरी ऊपर की ओर बढ़ती है और गले तक पहुंचने पर यह जानलेवा हो सकती है। मरीज को उठने-बैठने और चलने में दिक्कत होती है, गंभीर स्थिति में सांस लेने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। बीमारी प्रायः 2-3 हफ्ते के इलाज से नियंत्रित हो जाती है, लेकिन कुछ मामलों में कमजोरी लंबे समय तक बनी रहती है। डॉक्टर्स मानते हैं, GBS के अधिकतर मामले बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण के बाद सामने आते हैं, और गंदगी इसकी एक प्रमुख वजह हो सकती है।

गांव में डर का माहौल

एक मौत और तीन मरीजों के वेंटिलेटर पर होने से मुल्तानपुरा में भय का माहौल है। लोग घरों से बच्चों को बाहर खेलने नहीं भेज रहे। स्वास्थ्य विभाग की टीम लगातार सर्वे, जागरूकता और मरीजों की निगरानी कर रही है। गाँव के लोगों का कहना है कि प्रशासन यदि पहले ध्यान देता तो यह स्थिति पैदा नहीं होती।

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