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MP: बीना में फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला उजागर, 600 रुपये में एडिट कर बनाए दो फर्जी सर्टिफिकेट!

भोपाल। मध्यप्रदेश के बीना शहर में फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने का बड़ा मामला सामने आया है। एक कंप्यूटर सेंटर पर दो बच्चों के लिए एडिटिंग कर फर्जी जाति प्रमाण पत्र तैयार किए गए। इस गड़बड़ी का खुलासा तब हुआ, जब सिलवानी की एक महिला ने अपने बच्चों का दाखिला शासकीय छात्रावास में कराने के लिए ये प्रमाण पत्र जमा किए। जांच के दौरान अधिकारियों को शक हुआ और जब दस्तावेजों की पड़ताल की गई, तो प्रमाण पत्रों को फर्जी पाया गया।

महिला को 600 रुपये में दिए तत्काल जाति प्रमाण पत्र

यह मामला सिलवानी निवासी गीता खंगार से जुड़ा है, जो अपने बेटे शुभम और बेटी सौम्या का नाम शासकीय छात्रावास में दर्ज कराना चाहती थीं। इसके लिए जाति प्रमाण पत्र की आवश्यकता थी। गीता अपने परिचित के साथ बीना पहुंची, जहां एक निजी कंप्यूटर सेंटर पर उन्हें प्रमाण पत्र बनवाने की सलाह दी गई।

कंप्यूटर सेंटर संचालक ने बताया कि सामान्य प्रक्रिया से जाति प्रमाण पत्र बनने में लगभग 40 दिन लगेंगे, लेकिन यदि वह तत्काल प्रमाण पत्र चाहती हैं, तो उन्हें 600 रुपये खर्च करने होंगे। महिला ने बच्चों के दस्तावेज दिए और फीस का भुगतान कर दिया। इसके बाद कंप्यूटर सेंटर संचालक ने स्कैनिंग और एडिटिंग के जरिए फर्जी जाति प्रमाण पत्र तैयार कर दिए और उनमें बीना तहसीलदार का नाम भी प्रिंट कर दिया गया।

छात्रावास में संदेह के बाद हुआ खुलासा

जब गीता ने ये प्रमाण पत्र छात्रावास में जमा किए, तो दस्तावेजों की जांच कर रहे अधिकारियों को प्रमाण पत्र की प्रामाणिकता पर संदेह हुआ। संबंधित अधिकारी तुरंत सतर्क हुए और तहसील कार्यालय से प्रमाण पत्रों की पुष्टि कराई। जांच में स्पष्ट हो गया कि ये प्रमाण पत्र न तो वैध प्रक्रिया से बने थे, न ही इन्हें बीना तहसील कार्यालय से जारी किया गया था।

तहसीलदार ने बताया गंभीर अपराध

बीना के तहसीलदार अंबर पंथी ने इस पूरे मामले को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा है। उन्होंने बताया कि किसी भी सरकारी दस्तावेज की नकल तैयार करना और उस पर अधिकृत अधिकारी का नाम या पदनाम अंकित करना, स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी और जालसाजी की श्रेणी में आता है।

तहसीलदार अंबर पंथी ने कहा – "इस तरह के फर्जी प्रमाण पत्र बनाना न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक व्यवस्था और पात्रता आधारित लाभों के साथ भी धोखा है। दोषी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाएगी और कड़ी कार्रवाई की जाएगी।"

पुलिस कर रही जांच की तैयारी

तहसील से प्राप्त जानकारी के आधार पर पुलिस को सूचना दी गई है। अब इस मामले में संबंधित कंप्यूटर सेंटर संचालक की पहचान की जा रही है। पुलिस जल्द ही एफआईआर दर्ज कर उससे पूछताछ करेगी। संभावना जताई जा रही है कि इससे जुड़ा एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आ सकता है, जिसमें कई और फर्जी प्रमाण पत्र बनाए गए हों।

यह मामले भी सामने आए

केस - 1. जबलपुर नगर निगम चुनाव 2020 में वार्ड 24 से ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) महिला के लिए आरक्षित सीट पर भाजपा की कविता रैकवार ने नामांकन दाखिल किया और चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राखी सराफ को हराया था। लेकिन चुनाव जीतने के कुछ समय बाद ही उनके जाति प्रमाण पत्र को लेकर विवाद खड़ा हो गया। कांग्रेस प्रत्याशी सहित कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि कविता रैकवार ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र का उपयोग कर चुनाव लड़ा और जीतीं। इसको लेकर संबंधित विभागों में शिकायत दर्ज कराई गई, जिसके बाद मामला राज्य स्तरीय छानबीन समिति को जांच के लिए भेजा गया।

केस 2. मध्य प्रदेश सरकार की नगरीय प्रशासन राज्य मंत्री प्रतिमा बागरी के जाति प्रमाण पत्र की वैधता को लेकर विवाद बना हुआ है। विगत दिनों पहले अनुसूचित जाति कांग्रेस ने राज्य स्तरीय जाति प्रमाण पत्र छानबीन समिति के समक्ष मंत्री प्रतिमा बागरी के प्रमाण पत्र की जांच कराने की औपचारिक मांग की थी। कांग्रेस का आरोप है कि प्रतिमा बागरी को जो अनुसूचित जाति वर्ग का प्रमाण पत्र जारी किया गया है, वह अवैध और गलत तरीके से प्राप्त किया गया है। उनका कहना है कि प्रतिमा बागरी वास्तव में अनुसूचित जाति से नहीं, बल्कि ठाकुर/राजपूत समाज (सामान्य वर्ग) से आती हैं। कांग्रेस इस आधार पर उन्हें मंत्री पद से हटाने की मांग भी कर रही है। पार्टी ने पहले ही इस मामले में छानबीन समिति को शिकायत दी थी, जो फिलहाल विचाराधीन है।

केस- 3. यह मामला भी पूर्व में सामने आया था, जब इंदौर के लक्ष्मीपुरी कॉलोनी निवासी 60 वर्षीय सत्यनारायण को फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर पुलिस में नौकरी हासिल करने का दोषी पाया गया। सत्यनारायण का जन्म 7 जून 1964 को हुआ था और वर्ष 1983 में मात्र 19 वर्ष की उम्र में उसे आरक्षक के पद पर नियुक्ति मिल गई थी। लेकिन 23 वर्षों बाद, 6 मई 2006 को छोटी ग्वालटोली थाना प्रभारी को पुलिस अधीक्षक कार्यालय से शिकायत प्राप्त हुई, जिसमें कहा गया कि सत्यनारायण ने अनुसूचित जाति कोरी समाज का फर्जी प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर नौकरी हासिल की है। शिकायत के साथ एक जांच प्रतिवेदन भी संलग्न था, जिसमें शिकायतकर्ता वर्षा साधु, ऋषि कुमार अग्निहोत्री और ईश्वर वैष्णव के बयान शामिल थे। इन बयानों में स्पष्ट कहा गया कि सत्यनारायण वास्तव में वैष्णव ब्राह्मण समाज से ताल्लुक रखता है—उसके पिता रामचरण वैष्णव, बड़ा भाई श्यामलाल वैष्णव और छोटा भाई ईश्वर वैष्णव सभी ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। इसके बावजूद आरोपी ने कोरी समाज का फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाया और आरक्षण का लाभ लेकर नौकरी प्राप्त कर ली। अदालत ने तथ्यों और सबूतों के आधार पर सत्यनारायण को दोषी करार दिया।

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