भोपाल। "मेरा बेटा कुछ बच्चों के साथ मंदिर में खेल रहा था। तभी राठौर परिवार वालों ने उसे रोक लिया। बोले — 'तुम लोग नीची जाति के हो, अपनी मर्यादा में रहो, मंदिर में मत आओ।' मेरे मासूम बेटे ने क्या बिगाड़ा था? उसे बेइज्जत किया और अर्चना राठौर ने उसे मारा भी।
बेटा जब घर आया तो उसकी नाक से खून बह रहा था। वो रोता रहा, कहता रहा — 'माँ, उन्होंने मुझे मारा, मंदिर के अंदर नहीं जाने दिया, जबकि बाकी बच्चे अंदर खेल रहे थे।'
जब मैं मंदिर पहुंची तो मैंने पूछा — 'मेरे बच्चे को क्यों मारा?' इस पर अर्चना राठौर ने मुझे भी जाति सूचक गालियाँ दीं। मैंने विरोध किया तो मेरे साथ भी मारपीट कर दी।
पीड़ित बच्चे की माँ ने 'द मूकनायक' से बात करते हुए रोते हुए बोली — हमारे बच्चों को सिर्फ उनकी जाति की वजह से मंदिर से बाहर किया जा रहा है। क्या हम इंसान नहीं हैं?"
राजधानी भोपाल के छोला मंदिर थाना क्षेत्र में जातीय भेदभाव की एक शर्मनाक घटना सामने आई है। यहाँ दुर्गा मंदिर के चबूतरे पर खेलने गए एक बंशकार (दलित) समाज के बच्चे को जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए बुरी तरह पीटा गया। बच्चे की मां ने जब इसका विरोध किया, तो हमलावरों ने उन्हें भी कथित गालियां दीं और मारपीट की। यह मामला 25 अप्रैल का है, लेकिन पुलिस ने पीड़ित की फरियाद को गंभीरता से नहीं लिया और टालमटोल करती रही।
पीड़ित पक्ष का आरोप है कि घटना के समय बच्चे की नाक से खून बह रहा था, लेकिन छोला थाना पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करने की बजाय उन्हें यह कहकर लौटा दिया कि "आप अभी जाइए, कल देखेंगे।"
क्या है पूरा मामला?
जानकारी के अनुसार छोला मंदिर क्षेत्र में स्थित मां दुर्गा मंदिर के चबूतरे पर गुरुवार को राठौर समाज और बंशकार समाज के बच्चे खेल रहे थे। इसी दौरान पास में ही रहने वाले राजू राठौर और अर्चना राठौर वहां पहुंचे और उन्होंने बंशकार समाज के बच्चे को मंदिर के चबूतरे पर चढ़े होने को लेकर टोका। उन्होंने जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए उसके साथ मारपीट शुरू कर दी। इतने पर भी बात नहीं रुकी—बच्चे की मां मौके पर पहुंचीं और जब उन्होंने विरोध किया तो उनके साथ भी जातिसूचक गालियां दी गईं और मारपीट की गई।
इस हमले में बच्चे की नाक से खून बहने लगा और मां को भी गंभीर चोटें आईं। लेकिन पुलिस ने तत्काल कोई एफआईआर दर्ज नहीं की और पीड़ितों को यह कहकर वापस भेज दिया गया कि "अभी नहीं, कल आइए।"
सामाजिक संगठनों के दखल के बाद पुलिस हरकत में आई
जब पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठने लगे तो 29 अप्रैल को बांस शिल्पकार युवा शक्ति संगठन और धानुक समाज के प्रतिनिधियों ने इस मामले में हस्तक्षेप किया। प्रदेश अध्यक्ष मुकेश बंसल और टीकमगढ़ जिले के जिला अध्यक्ष मातादीन पटवारी समेत कई समाजजन छोला थाना पहुंचे। उन्होंने थाना प्रभारी से सख्त लहजे में बात की और FIR दर्ज करने की मांग की।
बड़ी मशक्कत के बाद पुलिस ने पीड़ित पक्ष का आवेदन लिया और केस दर्ज किया। इसके बाद प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस उपायुक्त ऋचा जैन को पूरी घटना से अवगत कराया, जिस पर उन्होंने संज्ञान लेते हुए त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए।
छोला मंदिर थाना पुलिस के अनुसार, मां दुर्गा मंदिर के चबूतरे पर बच्चों के खेलने को लेकर विवाद हुआ था। प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है और मामले की जांच की जा रही है। पुलिस का कहना है कि आरोपी पक्ष के बयान भी लिए जा रहे हैं और जांच के आधार पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आजादी के 75 साल बाद भी दलित समुदाय को धार्मिक स्थलों पर समान अधिकार क्यों नहीं मिल पा रहे हैं। मंदिर जैसे सार्वजनिक स्थलों पर भी यदि बच्चों को जाति के आधार पर अपमानित कर भगाया जाएगा, तो संविधान में समानता का अधिकार केवल किताबों तक ही सीमित रह जाएगा।
बांस शिल्पकार युवा शक्ति संगठन और धानुक समाज के प्रदेश अध्यक्ष मुकेश बंसल ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, "यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी राजधानी जैसे शहरों में जातिगत भेदभाव के ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करने में अनावश्यक देरी की, जो यह दर्शाता है कि व्यवस्था में आज भी जातिवादी सोच गहरी जमी हुई है।
उन्होंने आगे कहा, जब राजधानी में दलित समुदाय के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है, तो ग्रामीण इलाकों की स्थिति का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। पुलिस विभाग में बैठे अधिकारी दलितों के उत्पीड़न के मामलों में संवेदनशीलता क्यों नहीं दिखाते, यह एक गंभीर सवाल है। आखिर क्यों सामाजिक संगठनों को केवल एक प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए भी पुलिस के सामने संघर्ष करना पड़ता है?"
पुलिस उपायुक्त ने कहा, ' देरी से FIR दर्ज होने की शिकायत मिलेगी तो जांच करेंगे।'
द मूकनायक से बातचीत में पुलिस उपायुक्त ऋचा जैन ने बताया, "एफआईआर में देरी करने की कोई शिकायत पीड़ित पक्ष से मुझे नहीं मिली है। जब वह मेरे पास आए थे, तो मैंने तत्काल थाना प्रभारी को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। घटना के अगले ही दिन मामला दर्ज कर लिया गया था।"
उन्होंने आगे कहा, "यदि पीड़ित पक्ष को एफआईआर में देरी को लेकर कोई आपत्ति है, तो वे मुझे लिखित में शिकायत दें, हम जांच कराएंगे। सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। अगर यह पाया गया कि वे थाने गए थे और एफआईआर नहीं की गई, तो संबंधित जिम्मेदारों पर निश्चित तौर पर कार्रवाई की जाएगी।"
सजा का प्रावधान (SC-ST एक्ट)
जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर दलित समुदाय के किसी सदस्य के साथ मारपीट करना, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दंडनीय अपराध है।
अधिनियम की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s)
यदि कोई व्यक्ति किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को सार्वजनिक स्थान पर अपमानित करता है या उसे डराता-धमकाता है, तो उसे 6 महीने से 5 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
क्या कहता है संविधान?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है और इसे कानून द्वारा अपराध घोषित करता है। इस अनुच्छेद के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति के कारण सार्वजनिक स्थानों से वंचित नहीं किया जा सकता।
सामाजिक संगठनों की मांग
बांस शिल्पकार युवा शक्ति संगठन और धानुक समाज के प्रतिनिधियों ने मांग की है कि आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए। पीड़ित बच्चे और उसकी मां को उचित मुआवजा प्रदान किया जाए। साथ ही, मंदिर में दलित समुदाय के प्रवेश और पूजा करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए। प्रतिनिधियों ने यह भी मांग की है कि थाना स्तर पर जातीय उत्पीड़न के मामलों को गंभीरता से लेने के स्पष्ट निर्देश जारी किए जाएं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।