नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के चर्चित 2003 हॉनर किलिंग मामले में 11 दोषियों की सजा को बरकरार रखते हुए भारतीय समाज में गहरे पैठ जमाए जातिवाद को इस जघन्य अपराध की जड़ बताया। यह मामला, जिसमें एक वन्नियार समुदाय की युवती कन्नगी और दलित समुदाय के मुरुगेसन की अंतरजातीय विवाह के कारण हत्या कर दी गई थी, तमिलनाडु का पहला दर्ज हॉनर किलिंग मामला माना जाता है।
28 अप्रैल 2025 को हुई सुनवाई में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने इसे "जातिगत पदानुक्रम की क्रूर सच्चाई" करार देते हुए कहा, "इस तरह के अपराध, जिन्हें विडंबनापूर्ण रूप से हॉनर किलिंग कहा जाता है, को कठोर सजा की आवश्यकता है।
मामले का विवरण
यह दिल दहला देने वाला अपराध 7-8 जुलाई 2003 को तमिलनाडु के कुड्डालोर जिले के पुडुकोरापेट्टई गांव में हुआ। कन्नगी (वन्नियार समुदाय) और मुरुगेसन (दलित समुदाय), दोनों 20 साल के थे और एक-दूसरे से प्रेम करते थे। मुरुगेसन ने चिदंबरम से केमिकल इंजीनियरिंग में बी.ई. पूरी की थी और बेंगलुरु में नौकरी कर रहे थे, जबकि कन्नगी बी.कॉम की पढ़ाई कर रही थी। कन्नगी के परिवार की असहमति को जानते हुए, दोनों ने 5 मई 2003 को कुड्डालोर में रजिस्ट्रार ऑफ मैरिज के समक्ष गुप्त रूप से विवाह कर लिया।
जुलाई 2003 में, जब दोनों गांव से चुपके से चले गए, कन्नगी के भाई मरुतुपांडियन ने मुरुगेसन के पिता समिकन्नु को धमकी दी कि वह मुरुगेसन को वापस लाए। मरुतुपांडियन ने झूठा दावा किया कि मुरुगेसन ने उससे उधार लिया पैसा नहीं लौटाया। 7 जुलाई को मुरुगेसन को गांव लाया गया, जहां उसे नंगा कर एक खंभे से बांधा गया और कन्नगी का ठिकाना बताने के लिए बेरहमी से पीटा गया। गांव के कई लोगों की मौजूदगी में यह क्रूरता हुई, लेकिन किसी ने रोकने की कोशिश नहीं की।
मुरुगेसन ने अंततः कन्नगी का ठिकाना बता दिया, जो मूंगिलथुराइपट्टू गांव में थी। कन्नगी को गांव लाया गया, और 8 जुलाई की सुबह दोनों को एक काजू के बगीचे में ले जाकर कीटनाशक नुवाक्रोन (मोनोक्रोटोफोस) जबरन पिलाया गया। कन्नगी के पिता दुरैसामी ने यह जहर मरुतुपांडियन को दिया, जिसने पहले अपनी बहन और फिर मुरुगेसन को जहर पिलाया। मुरुगेसन की सौतेली मां चिन्नापिल्लई , जो इस भयावह घटना की चश्मदीद थी, ने कोर्ट में इसकी पुष्टि की। दोनों की कुछ ही मिनटों में मौत हो गई, और उनके शवों को अलग-अलग स्थानों पर जला दिया गया।
विरुधाचलम पुलिस स्टेशन के दो अधिकारियों, सब-इंस्पेक्टर के.पी. तमिलमरन और इंस्पेक्टर एम. सेलमुथु, पर आरोप था कि उन्होंने इस अपराध की जानकारी होने के बावजूद तत्काल FIR दर्ज नहीं की। चिन्नापिल्लई ने 8 जुलाई को शिकायत दर्ज करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें जातिगत अपमान के साथ पुलिस स्टेशन से भगा दिया गया। कोर्ट ने कहा, "यह विश्वास करना मुश्किल है कि गांव में इतना जघन्य दोहरा हत्याकांड हो और पुलिस स्टेशन के प्रभारी को इसकी जानकारी न हो।"
FIR नौ दिन बाद, 17 जुलाई 2003 को, मीडिया और राजनीतिक दबाव के बाद दर्ज की गई। शुरुआती जांच में सेलमुथु ने मुरुगेसन के परिवार के चार दलित सदस्यों, जिसमें उनके पिता समिकन्नु शामिल थे, को झूठे तौर पर आरोपी बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस जांच को "प्रेरित और पूरी तरह बेईमान" करार दिया, जिसमें "अपराधियों को बचाने और निर्दोषों को फंसाने" की कोशिश की गई।
मामले को 2004 में मद्रास हाई कोर्ट के निर्देश पर CBI को सौंपा गया, जिसने 2005 में 15 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। ट्रायल कोर्ट ने 2021 में 13 आरोपियों को दोषी ठहराया, जिसमें 11 को हत्या के लिए उम्रकैद और 2 को SC/ST एक्ट के तहत सजा दी। मरुतुपांडियन को मौत की सजा दी गई थी, जिसे हाई कोर्ट ने 2022 में उम्रकैद में बदल दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और जातिवाद पर टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए 11 दोषियों की सजा को सही ठहराया। एक की सजा को दो साल की सश्रम कारावास तक सीमित किया गया, जबकि एक अन्य आरोपी की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा गया, क्योंकि वह "झूठे सबूत गढ़ने और दलितों को फंसाने का मुख्य सूत्रधार" था। कोर्ट ने कहा, "इस अपराध की जड़ में भारत का गहराई से जड़ा हुआ जातिगत पदानुक्रम है, और इस सबसे अनैतिक कृत्य को हॉनर किलिंग का नाम दिया जाता है!"
कोर्ट ने गवाहों के "हॉस्टाइल" होने और देरी की रणनीति पर भी टिप्पणी की, जिसमें कहा गया, "लंबी और अनुचित देरी… अभियोजन की घोर अक्षमता और बचाव पक्ष की देरी की रणनीति को दर्शाती है।" चिन्नापिल्लई की गवाही को विश्वसनीय मानते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि "निकट संबंधी जो स्वाभाविक गवाह हैं, उन्हें केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वे इच्छुक गवाह हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने समिकन्नु और चिन्नापिल्लई को संयुक्त रूप से 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया, जो तमिलनाडु सरकार द्वारा दिया जाएगा। यह राशि निचली अदालतों द्वारा दिए गए मुआवजे के अतिरिक्त होगी। कोर्ट ने कहा, "ऐसे दुष्ट और घृणित अपराध को कठोर सजा और पीड़ित मुआवजे की आवश्यकता है।" जमानत पर बाहर सभी दोषियों को दो सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया।