नई दिल्ली- असम के धुबरी और ग्वालपारा जिलों में हजारों गरीब मुसलमानों के घरों को बुलडोज़र से गिराए जाने और उन्हें जबरन बेदखल किए जाने के मामले ने एक गंभीर विवाद खड़ा कर दिया है। जमीअत उलमा-ए-हिंद के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के बाद आरोप लगाया है कि राज्य सरकार द्वारा मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। प्रतिनिधिमंडल के अनुसार बेदखल किए गए लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है, उन पर गोलियां चलाई गई हैं और सहायता संगठनों को भी उन तक पहुंचने से रोका जा रहा है।
जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना मोहम्मद हकीमुद्दीन कासमी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने 15 और 16 जुलाई को इन प्रभावित इलाकों का दौरा किया और एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि धुबरी और ग्वालपारा जिलों में हजारों गरीब मुसलमानों के घरों पर बुलडोज़र चला कर उन्हें जबरन बेदखल कर दिया गया है। अब प्रभावित लोग जिन तंबुओं में शरण लिए हुए हैं, उन्हें भी तोड़ा जा रहा है। उन लोगों तक खाने-पीने की चीजों और अन्य आपूर्ति पर रोक लगा दी गई है। यह परिस्थितियां न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन हैं बल्कि मानवता के खिलाफ खुली बर्बरता भी दर्शाते हैं। " यह सब राज्य के मुख्यमंत्री के आदेश पर हो रहा है, जो भारत के इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना है, जिसका उदाहरण अत्याचारी अंग्रेज़ी शासन के दौर में भी नहीं मिलता।" जमीअत उलमा असम की तरफ से जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी को भेजी गई रिपोर्ट में इन बातों का खुलासा किया गया है।
मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने बताया कि असम में जो कुछ हो रहा है, अगर हम उसे खुद पर लागू करें, तो जीवन असहनीय लगता है। ऐसा लगता है कि असम सरकार इन लोगों को इंसान मानती ही नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य प्रशासन ने प्रताड़ना और अत्याचार की हद पार कर दी है। गत रात 17 जुलाई को गवालपारा के पाइकान वन क्षेत्र में स्थित आशोडोबी गांव में पुलिस फायरिंग में एक 17 वर्षीय शरणार्थी युवक शहीद हो गया और तीन अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। यह घटना तब हुई जब 12 जुलाई को जबरन बेदखल किए गए हजारों लोगों ने सड़क खोलने और खाने-पानी की आपूर्ति की शांतिपूर्वक मांग की। प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्र की अत्याचारपूर्वक घेराबंदी कर दी है। सहायता संगठनों को प्रवेश की अनुमति नहीं है, हैंडपंप उखाड़ दिए गए हैं, शौचालय की सुविधा न के बराबर है और महिलाएं और बच्चे पीने के पानी के लिए परेशान हैं। जमीअत उलमा-ए-असम द्वारा कुछ स्थानों पर भोजन और तिरपाल वितरित किए गए हैं, लेकिन सरकारी घेराबंदी के कारण उन तक पहुंचना मुश्किल है।
ना पानी ना खाना, जीवन का कोई नामो-निशान नहीं
जमीअत प्रतिनिधिमंडल ने धुबरी ज़िले के चराकतरा, संतोषपुर, चरवा बकरा का भी दौरा किया, जहां 20,000 से अधिक मुसलमानों को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यहां 5,700 मतदाता और 3,500 परिवार प्रभावित हुए हैं। उन्हें ब्रह्मपुत्र के बीचों-बीच स्थित एक ऐसे स्थान पर स्थानांतरित होने के लिए कहा जा रहा है, जहां कोई आबादी नहीं है और जमीन रेतीली है। वहां न पानी है, न आश्रय की व्यवस्था, न ही जीवन का कोई नामो-निशान। यह सब अडानी के सोलर प्रोजेक्ट के नाम पर हो रहा है। दूसरी ओर मीडिया का एक वर्ग इन भारतीय नागरिकों को बार-बार 'विदेशी बांग्लादेशी' कहकर जनता की सहानुभूति खत्म करने की कोशिश कर रहा है, जो गंभीर चिंता का विषय है।
जमीअत उलमा ने केंद्र सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हुए सभी बेदखल लोगों को तुरंत भोजन, पानी, चिकित्सा सहायता और आश्रय की व्यवस्था करने का आग्रह किया है। इसके अलावा सहायता संगठन प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंच सकें इसके लिए रास्ते खोलने , पुलिस फायरिंग में संलिप्त अधिकारियों के विरुद्ध कड़ी कानूनी कार्रवाई, पीड़ितों को तत्काल मुआवजा देने और वैकल्पिक भूमि उपलब्ध करवाने की मांग की गयी है। जमीअत उलमा-ए-हिंद ने घोषणा की है कि वह कानूनी, मानवीय और सार्वजनिक स्तर पर इन उत्पीड़ित लोगों को हर संभव सहयोग प्रदान करेगी और देश की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए हर मंच पर अपनी आवाज उठाएगी।