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लखनऊ: वकील परमानंद गुप्ता को आजीवन कारावास – दलित महिला की पहचान का सहारा लेकर दर्ज कराए 29 फर्जी मुकदमे

उत्तर प्रदेश: लखनऊ की एक विशेष अदालत ने अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है और उन पर 5.10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। अदालत ने गुप्ता को दलित महिला की पहचान का दुरुपयोग कर अपने विरोधियों के खिलाफ दर्जनों फर्जी मुकदमे दर्ज कराने का दोषी पाया।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को फैसला सुनाते हुए विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम) विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने गुप्ता को षड्यंत्र और कानून के दुरुपयोग का दोषी ठहराया। अदालत ने पाया कि गुप्ता ने पूजा रावत, एक दलित महिला, के नाम से कई फर्जी मुकदमे दर्ज कराए, ताकि अपने प्रतिद्वंद्वी अरविंद यादव और उनके परिवार को निशाना बना सके।

विशेष लोक अभियोजक अरविंद मिश्रा ने बताया कि गुप्ता ने कम से कम 18 मुकदमे अपने नाम से और 11 मुकदमे रावत के नाम से दर्ज कराए। इनमें से अधिकतर यादव और उनके परिवार पर दर्ज किए गए थे। इन झूठे मामलों में बलात्कार और छेड़खानी जैसे गंभीर आरोप भी शामिल थे।

यह पूरा मामला तब सामने आया जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान शिकायतों पर सवाल उठाए गए। इसके बाद संबंधित थानों से रिपोर्ट मांगी गईं। अंततः हाईकोर्ट ने 5 मार्च 2025 को इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए।

जांच में सामने आया कि गुप्ता ने यादव परिवार को फंसाने के लिए रावत की दलित पहचान का इस्तेमाल किया। लेकिन जांच में यह स्पष्ट हुआ कि कथित घटनाओं के समय रावत मौके पर मौजूद ही नहीं थीं और जिस घर को वह किराए पर लेने का दावा कर रही थीं, वह दरअसल यादव परिवार द्वारा निर्माणाधीन था।

बाद में 4 अगस्त 2025 को रावत ने स्वयं अदालत में आवेदन देकर बताया कि उन्हें गुप्ता और उसकी पत्नी संगीता, जो एक ब्यूटी पार्लर चलाती हैं, ने फंसाया था। रावत उस पार्लर में सहायक के रूप में काम करती थीं। उन्होंने अदालत में स्वीकार किया कि उन्हें दबाव डालकर मजिस्ट्रेट के सामने झूठे यौन शोषण के बयान देने को मजबूर किया गया। इसके बाद अदालत ने उन्हें शर्तीय माफी (conditional pardon) प्रदान की।

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि गुप्ता ने जानते-बूझते गंभीर आरोपों का षड्यंत्र रचा, जिनमें आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती थी। इसलिए उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

सजा सुनाते हुए अदालत ने गुप्ता को आजीवन कारावास दिया और आदेश दिया कि फैसले की प्रति उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को भेजी जाए, ताकि “ऐसा अपराधी वकील परमानंद गुप्ता अदालत परिसर में न प्रवेश करे और न ही वकालत कर सके, जिससे न्यायपालिका की गरिमा बनी रहे।”

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