उत्तर प्रदेश: मऊ, वाराणसी, अंबेडकर नगर, और मेरठ जिलों को मिलकर लगभग ढाई लाख से भी अधिक पावरलूम से जुड़े हुए बुनकरों की चुनौतियां बीतते समय के साथ बढ़ती जा रही है. इनकी स्थिति अब यह है कि बढ़ती कमरतोड़ महंगाई के साथ उन्हें अपने उत्पादों का उचित दाम तक नहीं मिल पा रहा है. नतीजन वह अपना पुश्तैनी कार्य छोड़कर अन्य राज्यों या विदेशों में पलायन करने को मजबूर हैं.
द मूकनायक की टीम पहुंची अंबेडकर नगर जिले के टांडा नगर क्षेत्र में जो एक बुनकर बाहुल्य क्षेत्र है। यहां की लगभग 70 प्रतिशत आबादी पावरलूम से जुड़ी हुई है। अगर आसपास के जिलों की बात की जाए तो अयोध्या इसमें सबसे बड़ा नाम है जो यहां से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
एक समय था जब टांडा के कपड़ों में टेरीकॉट बहुत प्रचलित था लेकिन धीरे-धीरे और भी बहुत से कपड़ों की किस्में यहां बनाई जाने लगी। जिसमें गमछा, स्टोल, स्कूलों के यूनिफॉर्म, और अरबी रुमाल शामिल है।
मौजूदा समय में पावरलूम का कारोबार खत्म होने की राह चल पड़ा है। गरीब मजदूर बुनकर भूखे मरने की कगार पर पहुंच चुके हैं। जीविका चलाने के लिए मजबूरन लोग अपना पुश्तैनी काम छोड़कर पलायन कर रहे हैं।
'महंगाई के साथ माल का रेट नहीं बढ़ता'
स्थानीय बुनकर जियाउद्दीन द मूकनायक से कहते हैं कि "जहां मजबूर लोग होते हैं वहां मजबूरी खरीदी जाती है, माल नहीं। वहां मूल्य बढ़ता नहीं बल्कि घटता है। गरीब बुनकरों का शोषण किया जाता है। और ये हमेशा से होता रहा है। उत्पाद को हमेशा से सस्ता करके खरीदा जाता रहा है, और हमें भी अपनी लागत से कम पर बेचना पड़ता है ताकि हमारा जीवन यापन चल सके।"
बिजली का मुद्दा और फ्लैट रेट में वृद्धि
बुनकर नेता रईस अंसारी के अनुसार कारोबार में बिजली की समस्या बहुत बड़ी है। उन्होंने बताया कि, 2006 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने फ्लैट रेट योजना के तहत विद्युत बिल 65 से 70 रुपए तक प्रति पावरलूम कर दिया था जिसे मौजूदा सरकार ने 400 रुपए प्रति पावरलूम कर दिया है। जो यहां के बुनकरों पर वज्रपात की तरह टूट पड़ा।
कुछ स्थानीय बुनकरों ने बताया कि 7 से 8 महीने से मंदी की मार झेल रहा पावरलूम का कारोबार लगभग ठप्प पड़ा हुआ है. बहुत से पवार लूम बंद होने की कगार पर हैं. ऐसे में 400 रुपए प्रति पावरलूम हम कहा से देंगे। जितना हम कमा पाते हैं उसमें हम अपनी ज़रूरतों को पूरा करे या बिजली का बिल दे। हमारा काम हो या ना हो मशीन चले या न चले लेकिन बिजली का बिल देना ही देना है और बिजली चेकिंग के नाम पर आए दिन कनेक्शन काट दिए जाते हैं जिससे भय का माहौल भी बना रहता है।
हब बनाए सरकार
बुनकर शहूर अहमद कहते है कि सरकार किसानों की भांति उनका भी माल खरीदे ताकि हम उसे सही रेट पर बेच सके और हम बुनकरों का शोषण होने से बच सके। 70 प्रतिशत से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, चंद लोग पूंजीपति हैं और उन्हीं के हाथों में पूरा कंट्रोल है।
उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि सरकार एक ऐसा हब बनाए या डिपो बनाए जहां जाकर हम अपना उत्पादित माल सही से बेच सकें। सरकार अगर GST के द्वारा हमसे tax ले रही है तो उसे भी चाहिए कि हमारा माल खरीदे जिससे हमारी परेशानी दूर हो सके और पावरलूम का यह कारोबार खत्म होने से बच सके।"