लखनऊ- तमिलनाडु की मशहूर ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता और दलित-विरोधी आंदोलन की प्रमुख हस्ती ग्रेस बानू को लखनऊ पुलिस ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 35(3) के तहत समन जारी किया है। उन्हें तालकटोरा थाना पहुंचकर व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का आदेश दिया गया है। यह समन मामला संख्या 12/2025 से जुड़ा है, जिसमें ग्रेस बानू सहित कई लोगों पर हमला, लूटपाट और धमकी देने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
23 अप्रैल 2025 को जारी इस समन में तालकटोरा थाने के उपनिरीक्षक दिनेश सिंह ने ग्रेस बानू को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वह इस नोटिस के मिलने के सात दिनों के भीतर थाना पहुंचकर अपना बयान दर्ज कराएं। पत्र में कहा गया है कि अगर वह हाजिर नहीं होती हैं, तो उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जा सकता है।
पुलिस द्वारा समन भेजे जाने के बाद ट्रांसजेंडर समूह और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। इनका कहना है कि यह FIR झूठी और बदले की भावना से करवाई गयी है।शिकायतकर्ता देविका ने दलित ट्रांस एक्टिविस्ट याशिका के खिलाफ जातिसूचक गालियों का प्रयोग किया था, जिसके बाद याशिका ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। इसी बात से द्वेष रखते हुए देविका जो उत्तर प्रदेश ट्रांस वेलफेयर बोर्ड की सदस्य है, ने यूपी पुलिस के साथ मिलकर यह झूठी शिकायत की है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 8 जनवरी 2025 को तालकटोरा थाने में दर्ज एफआईआर पर आधारित है, जिसमें शिकायतकर्ता देविका देवेंद्र एस मंगलामुखी ने आरोप लगाया था कि आशीष कुमार (उर्फ याशिका), ग्रेस बानू, जेन कोशिक, रित्विक दास और अन्य लोगों ने 22 दिसंबर 2024 को उन पर जानलेवा हमला किया, उनका पर्स छीन लिया और उन्हें रेप व तेजाब फेंकने की धमकी दी। इसके अलावा, आरोप लगाया गया है कि आरोपियों ने सोशल मीडिया पर शिकायतकर्ता को बदनाम करने का अभियान चलाया।
ग्रेस बानू का पक्ष
इस समन के जवाब में ग्रेस बानू ने एक विस्तृत पत्र भेजकर स्पष्ट किया है कि वह कभी लखनऊ नहीं गईं। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का दौरा नहीं किया। घटना के दिन चेन्नई में थीं। उनके पास सबूत हैं कि 22 दिसंबर 2024 को वह तमिलनाडु के चेन्नई में थीं और उस दिन उनकी गतिविधियों के साक्ष्य मौजूद हैं। ग्रेस बानू ने कहा कि उन्होंने देविका देवेंद्र से कभी बातचीत नहीं की और न ही उन्हें फोन किया।
ऑनलाइन पेशी की मांग – चूंकि वह तमिलनाडु में रहती हैं और लखनऊ आने में उन्हें वित्तीय व शारीरिक कठिनाई होगी, इसलिए उन्होंने पुलिस से अनुरोध किया है कि उनकी जिरह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जाए।
इस मामले में ग्रेस बानू के समर्थन में देशभर के कई मानवाधिकार संगठनों और ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ताओं ने आवाज उठाई है। उनका कहना है कि ग्रेस बानू एक प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो पिछले 15 वर्षों से दलित और ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। उन पर झूठे आरोप लगाकर उनके संघर्ष को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। यह मामला एक बार फिर देश में ट्रांसजेंडर और दलित कार्यकर्ताओं के खिलाफ होने वाली कानूनी उत्पीड़न की ओर इशारा करता है। ग्रेस बानू के समर्थकों ने मांग की है कि पुलिस एक निष्पक्ष जांच करे और उन्हें न्याय मिले।
दलित अधिकार कार्यकर्ता शालिन मारिया लॉरेंस ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में यूपी पुलिस पर तीखा हमला बोलते हुए लिखा कि, "शासक दल के कुछ लोगों के इशारे पर यूपी पुलिस ने दलित ट्रांस एक्टिविस्ट ग्रेस बानू पर झूठा लूट का मामला दर्ज किया है, जो ट्रांस व्यक्तियों के लिए हॉरिजॉन्टल आरक्षण के विरोधी हैं। मैं सचमुच आक्रोश में हूं कि ग्रेस बानू जो कभी यूपी आई ही नहीं, उन पर इस तरह का झूठा मामला बनाया जा सकता है। @Uppolice क्या आपको लगता है कि दलितों पर झूठे केस बनाना आसान है? नगीना सांसद और भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद से मदद मांगते हुए शालिन ने लिखा, " कृपया इस भयानक जातिवादी साजिश के खिलाफ ग्रेस की मदद करें।"
इस मामले में "Yes, We Exist" नामक ट्रांसजेंडर अधिकार समूह ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में इस मामले को एक नए कोण से उजागर करते हुए लिखा - यूपी पुलिस ने दलित व ट्रांस अधिकार कार्यकर्ता ग्रेस बानू को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग द्वारा यूपी ट्रांस वेलफेयर बोर्ड सदस्य देविका एस मंगलमुखी की जातिवादी टिप्पणियों पर कार्रवाई के नोटिस के बाद, पुलिस द्वारा दर्ज एक विवादित लूट केस के आधार पर लखनऊ तलब किया है।
"देविका मंगलमुखी ट्रांस व्यक्तियों के लिए हॉरिजॉन्टल आरक्षण की मांग का विरोध करती हैं, जिस मांग को ग्रेस बानू और समस्त LGBTQ+ समुदाय लंबे समय से उठाता आया है। देविका ने दलित ट्रांस एक्टिविस्ट याशिका के खिलाफ जातिसूचक गालियों का प्रयोग किया था, जिसके बाद याशिका ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी।"
यह बयान मामले को एक नए सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में रखता है, जहाँ आरोप-प्रत्यारोप के पीछे ट्रांस आरक्षण को लेकर चल रही बहस और जातिगत तनाव की भूमिका नजर आती है।