नई दिल्ली। एक शोध में यह बात सामने आई है कि भारत में ट्रांस महिलाओं को डिप्रेशन, गंभीर चिंता और आत्महत्या करने जैसे विचारों से जूझना पड़ता है।
जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया के शोधकर्ताओं ने वैश्विक सहयोगियों के साथ मिलकर भारत में ट्रांस महिलाओं द्वारा सामना की जा रही मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों पर प्रकाश डाला है। शोध में उन्हें मिल रही अस्वीकृति, भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार के अनुभवों की जांच की गई है, तथा इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है।
वेलकम ओपन रिसर्च नामक पत्रिका में प्रकाशित एक शोध दिखाता है कि किस तरह से जीवन में नकारात्मकता की शुरुआत होती है। परिवारों में ट्रांस वुमन को अक्सर नकार दिया जाता है, जिससे उनका आत्म-सम्मान कम होता है।
स्कूलों में उत्पीड़न के कारण कई लोग पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं और उन्हें शिक्षा या स्थिर रोजगार नहीं मिल पाता। कई ट्रांस महिलाओं के पास सीमित विकल्प होते हैं और वे अक्सर जीवित रहने के लिए भीख मांगने या सेक्स वर्क का सहारा लेती हैं।
स्वास्थ्य सेवा भेदभाव भी एक प्रमुख मुद्दे के रूप में उभरा है। अस्पताल के कर्मचारियों द्वारा दुर्व्यवहार की कहानियां और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की समझ की कमी से कई ट्रांस महिलाओं को चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाती।
नतीजतन उनकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जरूरतें अक्सर पूरी नहीं हो पाती हैं। ये अनुभव मानसिक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं, जिससे ट्रांस महिलाओं में डिप्रेशन और एंग्जायटी के अलावा आत्महत्या जैसे विचार आते है।
जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया की प्रोग्राम लीड-मानसिक स्वास्थ्य, डॉ. संध्या कनक यतिराजुला ने कहा, ''शोध से सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ट्रांस महिलाओं पर केंद्रित मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान की कमी है। जबकि वैश्विक अध्ययन अक्सर एचआईवी से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ट्रांसजेंडर समुदायों की मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को काफी हद तक अनदेखा किया जाता है। यह शोध उनके जीवन पर इसके प्रभाव को दूर करने के लिए हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।''
ऐसे लोगों के लिए सामाजिक समर्थन आशा की किरण है। स्वीकृति, शिक्षा और रोजगार के अवसर एक शक्तिशाली उपकरण हैं जो उनकी सामाजिक स्थिति और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकते हैं। हालांकि भारत में ऐसे अवसर दुर्लभ हैं जहां अनुमानित 4.8 मिलियन ट्रांसजेंडर लोग रहते हैं।
अध्ययन ने लिंग-सत्यापन नीतियों की आवश्यकता पर जोर दिया जो समावेशिता और समानता को बढ़ावा देती हैं। शोधकर्ताओं ने ऐसे सुरक्षित स्थान बनाने के महत्व पर जोर दिया जहां ट्रांस महिलाओं को महत्व दिया जाए और उनका सम्मान किया जाए।
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