उदयपुर/जोधपुर: आरपीएस अधिकारी और उदयपुर में डीवाईएसपी रहे जितेंद्र कुमार आंचलिया के विरुद्ध ₹1.83 करोड़ के रिश्वत और जबरन वसूली के आरोपों वाले हाई-प्रोफाइल एनआरआई मामले में राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर ने आरोपी अधिकारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने से इनकार कर दिया।
इसी मामले से जुड़ी एक अन्य याचिका का भी निपटारा करते हुए कोर्ट ने एनआरआई याचिकाकर्ता की सीबीआई जांच की मांग को भी यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जांच को दूसरी एजेंसी को सौंपने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं है। गौरतलब है कि एसीबी ने मामले में दो विरोधाभासी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमे पहले रिपोर्ट में अनुसंधान अधिकारी ने आरोपियों को दोषी मान जेल भेजा जबकि सपलीमेंट्री जांच रिपोर्ट 2024 में आंचलिया सहित तीन आरोपियों को निर्दोष बताया गया।
यह मामला 2022 से सुर्खियों में है, जिसमें कुवैत में रहने वाले एनआरआई और सॉफ्टवेयर डेवलपर नीरज पूर्बिया ने डीवाईएसपी जितेंद्र आंचलिया और उनके सहयोगियों पर संपत्ति विवाद के सिलसिले में ₹1.83 करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगाया था। पूर्बिया ने आरोप लगाया कि आरोपियों ने उनकी भाभी लवलीना के साथ मिलकर उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज किए और धमकी देकर यह रकम वसूली।
इस मामले में एंटी-करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने 10 फरवरी, 2023 को जितेंद्र आंचलिया, सब-इंस्पेक्टर रोशनलाल, रमेश राठौड़ और मनोज को गिरफ्तार किया था। आरोप है कि उन्होंने एनआरआई नीरज पूर्बिया को इतना डराया कि वह अपनी ही जमीन को ₹1.83 करोड़ में दोबारा खरीदने को मजबूर हो गए। इस मामले में जब सब-इंस्पेक्टर रोशनलाल ने ₹2 लाख की मांग की, तो नीरज पूर्बिया ने जयपुर स्थित एसीबी मुख्यालय जाकर शिकायत दर्ज कराई। शिकायत पर कार्रवाई करते हुए एसीबी ने उदयपुर और राजसमंद में पांच स्थानों पर छापेमारी की और आंचलिया समेत चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एसीबी द्वारा की गई जांच निष्पक्ष और पारदर्शी रही है, और जांच को सीबीआई को सौंपने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं है। इस फैसले के साथ ही मामला अब ट्रायल कोर्ट में आगे बढ़ेगा, जहां आरोपियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी।
नीरज पूर्बिया जो 1993 से कुवैत में रह रहे हैं, ने याचिका में दावा किया कि उन्होंने 2007 में भारत में संपत्ति खरीदने के लिए अपने भाई नीलेश पूर्बिया को पैसे भेजे थे। हालांकि, 2019 में उनके भाई की अचानक मौत के बाद, पूर्बिया और उनकी भाभी लवलीना के बीच संपत्ति को लेकर विवाद हो गया। पूर्बिया ने आरोप लगाया कि लवलीना ने पुलिस के साथ मिलकर फरवरी 2022 में उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज करवाए और उन्हें गिरफ्तार करवाया।
पूर्बिया ने यह भी आरोप लगाया कि डीवाईएसपी जितेंद्र आंचलिया और उनके सहयोगियों ने उन्हें जेल भेजने और पासपोर्ट जब्त करने की धमकी देकर ₹1.83 करोड़ की रकम वसूली।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उन्हें डरा-धमकाकर एक समझौते पर हस्ताक्षर करवाया गया और एफआईआर वापस लेने तथा संपत्ति पर कब्जा पाने के लिए यह रकम चुकानी पड़ी।
पूरे घटनाक्रम का हस्तलिखित समझौतों, वीडियो फुटेज और रिमिटेंस रसीदों के माध्यम से दस्तावेजीकृत किया गया था। पूर्बिया को आरोपियों द्वारा लगातार धमकाया और परेशान किया गया, जिसमें मामले को सुलझाने के लिए अतिरिक्त रकम की मांग भी शामिल थी।
पूर्बिया ने कहा कि डीवाईएसपी आंचलिया और उनके सहयोगियों द्वारा किए गए कृत्य, जिसमें धमकी, जबरन वसूली और गलत तरीके से हिरासत में लेना शामिल है, उसके मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का गंभीर उल्लंघन करते हैं।
याचिकाकर्ता ने इस बात पर जोर दिया कि एंटी-करप्शन ब्यूरो (एसीबी) द्वारा एफआईआर दर्ज करने और चार्जशीट पेश करने के बावजूद, राज्य प्राधिकारियों, जिसमें एसीबी अधिकारी और विभागीय कार्मिक विभाग (डीओपी) शामिल हैं, ने आरोपियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने में विफल रहे हैं, जिससे उन्हें खुली छूट मिली हुई है।
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि जितेंद्र आंचलिया का निलंबन गलत तरीके से रोक दिया गया था, और आरोपी को गंभीर आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के बावजूद फिर से सेवा में बहाल कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि यह राज्य मशीनरी द्वारा आरोपी को उसके कृत्यों के परिणामों से बचाने का प्रयास है, जिससे न्याय में बाधा उत्पन्न हो रही है।
इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि जबरन वसूली और भ्रष्टाचार के मामले की जांच पक्षपातपूर्ण अधिकारियों की भागीदारी से दूषित हो गई है।
आरोपी के जबरन वसूली और भ्रष्टाचार के कई मामलों में शामिल होने के स्पष्ट सबूतों के बावजूद, जांच को उन अधिकारियों को सौंपा गया है जिनका आरोपी से ज्ञात संबंध है, जिसमें डीवाईएसपी कैलाश सिंह संदू भी शामिल हैं, जिन्होंने 2016 में आंचलिया को क्लीन चिट दी थी।
याचिकाकर्ता का मानना है कि दोबारा जांच चल रही कार्यवाही को विफल करने और आरोपी को कानूनी परिणामों से बचाने का एक प्रयास मात्र है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, याचिकाकर्ता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि वह राज्य मशीनरी में व्याप्त व्यवस्थित भ्रष्टाचार पर ध्यान दे और मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या किसी अन्य स्वतंत्र एजेंसी को हस्तांतरित करे ताकि एक निष्पक्ष और निरपेक्ष जांच सुनिश्चित की जा सके।
राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस फरजंद अली ने पूर्बिया की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि जांच को सीबीआई को सौंपने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि मामले की कई स्तरों पर जांच हो चुकी है और जांच में किसी तरह का पक्षपात या प्रक्रियात्मक गड़बड़ी का कोई सबूत नहीं मिला है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की चिंताओं को स्वीकार किया, लेकिन यह भी कहा कि एसीबी ने एक विस्तृत और पूरी तरह से जांच की है। कोर्ट ने कहा कि जांच में किसी तरह की बदनीयती या प्रक्रियात्मक कमी का कोई सबूत नहीं मिला है, जो न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करे।
आरोपी DySP के विरुद्ध दर्ज FIR व चार्जशीट खारिज करने से इंकार
कोर्ट ने डीवाईएसपी जितेंद्र आंचलिया द्वारा दायर याचिका का भी निस्तारण किया, जिसमें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और आईपीसी की धारा 384 और 120बी के तहत दर्ज एफआईआर नंबर 507/2022 को खारिज करने की मांग की गई थी।
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह आरोप तय करने या आरोपियों को रिहा करने से पहले पूरी जांच सामग्री की जांच करे जिसमें प्रारंभिक चार्जशीट और पूरक रिपोर्ट शामिल है।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि आंचलिया के खिलाफ लगाए गए आरोपों की पुष्टि करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है और याचिकाकर्ता के बयानों में विरोधाभास है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि संपत्ति विवाद को सुलह के जरिए सुलझा लिया गया था और उस समय याचिकाकर्ता से जुड़ा कोई आधिकारिक काम आंचलिया के सामने लंबित नहीं था।
कोर्ट ने आरपीएस अधिकारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने से इनकार कर दिया, इसे ट्रायल कोर्ट पर छोड़ दिया कि वह मामले की तथ्यात्मक जांच के आधार पर फैसला करे। याचिकाकर्ताओं को यह अधिकार दिया गया कि वे ट्रायल कोर्ट में सभी कानूनी और तथ्यात्मक तर्क रख सकते हैं।
एसीबी-डीजी का वायरल ऑडियो नहीं लिया रिकॉर्ड में, हाई कोर्ट आर्डर को चैलेंज करेंगे: पूर्बिया
द मूकनायक से बातचीत में नीरज पूर्बिया ने जांच प्रक्रिया पर असंतोष जताया और कहा कि दोनों रिपोर्ट एंटी-करप्शन ब्यूरो (एसीबी) द्वारा की गई थीं। उन्होंने बताया कि पहली जांच में सभी आरोपियों को दोषी पाया गया था, लेकिन दूसरी जांच राजनीतिक दबाव में की गई।
पूर्बिया ने कहा, "मैंने एसीबी के डायरेक्टर जनरल रवि प्रकाश मेहरड़ा के साथ हुई अपनी बातचीत की कॉल रिकॉर्डिंग सबूत के तौर पर पेश किया, जिसमें अधिकारी साफ तौर पर कह रहे थे कि उन पर भारी दबाव है और दोबारा जांच के निर्देश ऊपर से आए हैं, जो मुख्यमंत्री की भी इसमें भूमिका की ओर इशारा करता है। कॉल पर डीजीपी ने साफ कहा कि कोई भी नौकरशाह अधिकारी मदद नहीं कर सकता और मुझे सीधे सीएम से संपर्क करना होगा। मैंने इसे सबूत के तौर पर पेश किया, लेकिन इसे न सुना गया और न ही रिकॉर्ड पर लिया गया।" इसके विपरीत कोर्ट ने डीजी मेहरड़ा को ही वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई में शामिल किया और इनसे पूछा कि क्या वे दूसरी जांच से संतुष्ट हैं? जिसपर डीजी ने हामी भरी। "
पूर्बिया ने कहा वायरल ऑडियो ठोस सबूत है जिसे कोर्ट ने नहीं सुना। इसमें डीजी साफ़ कह रहे हैं- मेरे लेवल पे अभी कुछ नहीं है ...highest लेवल पे चेंज हुई है...आई हेड नो ऑप्शन, मैं चेंज नहीं करना चाहता था... फाइल चेंज करना शायद प्री डि साइडड था...चाहेआप किसी से मिल लो किसी से मिल लो , जब तक सीएम से नहीं मिलोगे ना.... क्योंकि येतो वन्ही सेआया है convey convey उनके through ही हुआ है...."
पूर्बिया ने आगे कहा, "कोर्ट के निर्देश के बिना पुलिस द्वारा दोबारा जांच करवाना गलत है। हम इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।" पूर्बिया ने जोर देकर कहा कि आरोपी डीवाईएसपी, जो राजस्थान पुलिस सेवा (आरपीएस) अधिकारी है, राज्य पुलिस को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। उन्होंने आरोप लगाया कि दूसरी जांच साफ तौर पर आरोपी को बचाने के लिए की गई थी, जबकि पहली जांच में उसके खिलाफ काफी दस्तावेजी सबूत मौजूद थे।
उनका मानना है कि दोबारा जांच को आरोपी को बचाने के लिए मनमाने ढंग से किया गया। इससे जांच प्रक्रिया की निष्पक्षता और मामले में राजनीतिक व नौकरशाही दबाव की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।