MP सरकार के कारण उलझा प्रमोशन में आरक्षण? हाई कोर्ट ने जताया असंतोष, सरकार से मांगा स्पष्ट जवाब

12:31 PM Oct 29, 2025 | Ankit Pachauri

भोपाल। मध्यप्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर लंबे समय से चल रहा विवाद एक बार फिर अदालत की चौखट पर पहुंच गया है। मंगलवार को मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ के समक्ष इस मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। राज्य सरकार ने कोर्ट के निर्देश पर सीलबंद लिफाफे में क्वांटिफायबल डाटा प्रस्तुत किया, लेकिन अदालत ने इस डेटा और सरकार के जवाब पर असंतोष जाहिर किया। अब सवाल यही उठ रहा है कि मध्यप्रदेश सरकार के कारण ही क्या नई नीति कानून उलझ गई है।

सुनवाई के दौरान जब अदालत ने एक विभाग के आंकड़े देखे, तो न्यायाधीशों ने हैरानी जताई। कोर्ट ने कहा कि प्रथमदृष्टया सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़े संतोषजनक नहीं हैं। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य सरकार अपनी पदोन्नति नीति, एडीकेसी और रिप्रेजेंटेशन पर दोबारा काम करे और स्पष्ट रूप से जवाब पेश करे। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर 2025 को निर्धारित की है।

सरकार ने पेश किया सीलबंद डेटा

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पिछली सुनवाई में हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह नई पदोन्नति नीति के तहत तैयार किया गया क्वांटिफायबल डेटा एकत्र करे और उसे सीलबंद लिफाफे में पेश करे। राज्य सरकार की ओर से पेश किए गए जवाब में कहा गया था कि:

- वर्ष 2016 के बाद के प्रमोशन में नई पदोन्नति नीति 2025 लागू होगी।

- वर्ष 2016 से पहले के प्रमोशन 2002 के नियमों के तहत ही मान्य रहेंगे।

हालांकि, अदालत ने इन नियमों की संगति और लागू करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं।

क्या है पूरा विवाद?

यह पूरा मामला भोपाल निवासी डॉ. स्वाति तिवारी और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिकाओं से जुड़ा है। इन याचिकाओं में मध्यप्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम, 2025 को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि, वर्ष 2002 के नियमों को पहले ही हाई कोर्ट ने आर.बी. राय केस में असंवैधानिक घोषित करते हुए समाप्त कर दिया था।

इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हुए हैं।

इसके बावजूद, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार ने लगभग उन्हीं पुराने नियमों को मामूली शब्द परिवर्तनों के साथ फिर से लागू कर दिया, जिससे आरक्षण में पदोन्नति का विवाद और गहरा गया है।

आरक्षित वर्ग संगठनों ने की हस्तक्षेप याचिकाएं

इस पूरे मामले में अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजाक्स) और अन्य आरक्षित वर्ग संगठनों ने भी हस्तक्षेप याचिकाएं दाखिल की हैं। उनका कहना है कि आरक्षण में प्रमोशन संविधान के अनुच्छेद 16(4A) के तहत दिया गया संवैधानिक अधिकार है, और इसे समाप्त करना या सीमित करना सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांत के खिलाफ होगा।

वहीं, सामान्य वर्ग के कर्मचारियों की ओर से यह दलील दी जा रही है कि प्रमोशन में अत्यधिक आरक्षण से योग्यता और समान अवसर का सिद्धांत प्रभावित हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है बड़ा मामला

राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका सुप्रीम कोर्ट में अभी लंबित है, और शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि इस विषय में वर्तमान स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जाए। फिर भी, सरकार द्वारा 2025 के नए प्रमोशन नियम लागू करना न्यायिक निर्देशों की भावना के विपरीत माना जा रहा है।

क्या कहता है संविधान?

आरक्षण में प्रमोशन को लेकर विवाद सिर्फ मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं है। संविधान का अनुच्छेद 16(4A) सरकार को यह अधिकार देता है कि वह अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्गों को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान कर सकती है। लेकिन, इसके लिए सरकार को यह साबित करना होता है कि इन वर्गों का प्रतिनिधित्व सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, और यह निर्धारण क्वांटिफायबल डेटा के आधार पर ही होना चाहिए।यही वह बिंदु है, जिस पर मध्यप्रदेश सरकार का डेटा अदालत की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया है।

कोर्ट ने साफ कहा है कि सरकार को अब ठोस और पारदर्शी डेटा पेश करना होगा, ताकि यह साबित किया जा सके कि पदोन्नति में आरक्षण का औचित्य क्या है। यदि सरकार स्पष्ट और वैज्ञानिक रूप से प्रमाण नहीं दे पाती, तो प्रमोशन में आरक्षण नीति फिर से खतरे में पड़ सकती है।

अजाक्स संघ के प्रवक्ता विजय शंकर श्रवण ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, “मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद प्रशासनिक अधिकारी हाईकोर्ट में राज्य का पक्ष मजबूती से नहीं रख पा रहे हैं। इससे यह प्रतीत होता है कि या तो यह प्रशासकीय लापरवाही है या फिर इच्छाशक्ति की कमी। हम मांग करते हैं कि सरकार तत्काल इस मामले में सक्रिय हस्तक्षेप करे और अदालत में ठोस तर्कों के साथ राज्य का पक्ष रखे, ताकि प्रमोशन में आरक्षण लागू हो सके।”

कांग्रेस ने सरकार को घेरा

राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य और कांग्रेस नेता प्रदीप अहिरवार ने गोरकेला समिति द्वारा तैयार किए गए प्रमोशन नियमों के ड्राफ्ट को लेकर मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन पर गंभीर सवाल खड़े कर चुके हैं। द मूकनायक से बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया कि, “मैंने पहले ही कहा था, नए फॉर्मूले पर विवाद हो सकता है, लेकिन मुख्य सचिव गोरकेला जो विधिसम्मत ड्राफ्ट था उसे लागू नहीं होने देना चाहते थे। उन्होंने कहा, यदि गोरकेला ड्राफ्ट सरकार लागू करती तो मामला कोर्ट में नहीं उलझता।

उन्होंने यह भी याद दिलाया कि वर्ष 2017 में तैयार किया गया प्रमोशन से संबंधित ड्राफ्ट आज तक लागू नहीं हो सका है, जबकि उस पर किसी भी तरह की वैधता को लेकर आपत्ति नहीं थी।