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जीबी पंत अस्पताल में बिना छुट्टी 36 घंटे नॉन स्टॉप ड्यूटी: डॉक्टर पत्नी की गुहार- "हमारी जिंदगी बर्बाद मत करो!

नई दिल्ली- क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आपका हंसता-खेलता जीवनसाथी अचानक टूट जाए, सिर्फ इसलिए क्योंकि काम का बोझ उसे मानसिक और शारीरिक रूप से चूर कर रहा है? जी हां, दिल्ली के प्रतिष्ठित जीबी पंत अस्पताल में यही हो रहा है। यहां के रेजिडेंट डॉक्टरों को बिना साप्ताहिक छुट्टी, बिना आराम के 36 घंटे लगातार ड्यूटी करनी पड़ रही है। नतीजा? बर्नआउट, डिप्रेशन और अब इस्तीफे। लेकिन एक पत्नी ने हार नहीं मानी। डॉ. रीशु सिन्हा ने अपने पति डॉ. अमित कुमार की जिंदगी बचाने के लिए जंग छेड़ दी है। "हमारी जिंदगी बर्बाद मत करो!" - यह उनकी पुकार है, जो न सिर्फ एक परिवार की कहानी है, बल्कि पूरे मेडिकल सिस्टम की पोल खोल रही है।

डीएम कार्डियोलॉजी के रेजिडेंट डॉक्टर डॉ. अमित कुमार ने 23 अक्टूबर को अपना इस्तीफा सौंप दिया। वजह? लगातार चार महीनों से बिना रविवार की छुट्टी, बिना सोशल लाइफ के, सिर्फ ड्यूटी। रीशु ने अपने हालिया पोस्ट में लिखा, " मेरे लिए यह लड़ाई इतनी आसान नहीं थी। MBBS कंप्लीट करके मैं तो NEET PG की तैयारी कर रही थी। मेरे पति डॉ अमित भी DM कार्डियो का अपना सपना पूरा करने जीबी पंत आए। लेकिन जब सरकार ने 1992 में ही रेजीडेंसी नियम बना दिया, तो 36 घंटे की ड्यूटी कैसे? मैंने अपने हंसते-खेलते पति को जीबी पंत भेजा था। उनकी ऐसी हालत किसने कर दी? जो डॉक्टर 36 घंटे ड्यूटी करके शारीरिक मानसिक रूप से टूट जाए, वह मरीजों का इलाज कैसे करेगा?"

डॉ. रीशु ने जीबी पंत अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर को पत्र लिखकर गुजारिश की कि डॉ. अमित का इस्तीफा तुरंत स्वीकार न किया जाए। बल्कि एक महीने का 'कूलिंग पीरियड' दिया जाए, जिसमें काउंसलिंग हो और 1992 के नियमों के मुताबिक इंसानी ड्यूटी घंटे (हफ्ते में 48 घंटे, एक स्ट्रेच में 12 घंटे से ज्यादा नहीं) लागू हों। रीशु ने अपनी चिट्ठी में लिखा, "मेरा पति नींद की कमी, शोषण और अपमान से जूझ रहा है। 36 घंटे की लगातार ड्यूटी ने उसे मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ दिया।"

यह मामला सिर्फ एक डॉक्टर का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की लापरवाही का है। डॉ. रीशु ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, "1992 से ही नियम है कि डॉक्टरों को दिन में आठ घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए। लेकिन यहां तो 36 घंटे की ड्यूटी आम बात है। कोई वीकली ऑफ नहीं, कोई रेस्ट पीरियड नहीं। नेशनल टास्क फोर्स रिपोर्ट 2024 ने भी मेडिकल स्टूडेंट्स की मेंटल हेल्थ पर चिंता जताई है। अस्पताल को जिम्मेदारी लेनी चाहिए।" उन्होंने ड्यूटी घंटों के नियमों और 1992 के रेजिडेंसी डायरेक्टिव्स के अमल पर दो आरटीआई भी दाखिल कीं । लेकिन 48 घंटे के जवाब क्लॉज के बावजूद कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। वे पूछती हैं- "कानून का राज कहां है?।"

इस चिट्ठी ने दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) को एक्शन के लिए प्रेरित किया है। डीएमए प्रेसिडेंट डॉ. गिरीश त्यागी ने इसे तुरंत दिल्ली सरकार के डायरेक्टर ऑफ हेल्थ सर्विसेज को भेज दिया। डीएमए ने कहा, "यह अमानवीय कामकाजी हालात रेजिडेंट डॉक्टरों की मेंटल हेल्थ और गरिमा को खतरे में डाल रहे हैं। दिल्ली के सभी टीचिंग हॉस्पिटल्स में ड्यूटी नॉर्म्स का सख्त ऑडिट होना चाहिए।" डॉ. त्यागी ने जोर देकर कहा, "इंसानी ड्यूटी घंटे सिर्फ डॉक्टरों की भलाई के लिए नहीं, बल्कि मरीजों की सेफ्टी के लिए भी जरूरी हैं। थका हुआ डॉक्टर मेडिकल रिस्क है।"

जीबी पंत अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. आबिद गेलानी का कहना है कि उन्हें इस इस्तीफे की जानकारी ही नहीं। उन्होंने कहा वे मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं।"

अस्पताल में टॉक्सिक वर्क कल्चर, ह्यूमिलिएशन और एक्सप्लॉइटेशन की शिकायतें पुरानी हैं। हर साल 25 डॉक्टर सुसाइड कर रहे हैं, 225 सीटें खाली छोड़ रहे हैं। कुछ लोग यह तर्क देते हैं, "किसी का इस्तीफा हो जाए तो क्या कर सकते हैं?।" लेकिन डॉ. रीशु का जवाब कड़ा है: "तो सुसाइड हो जाए तो क्या? क्या हम दोनों को रोक नहीं सकते?"

यह केस पूरे देश में चल रही बहस का हिस्सा है। अगस्त 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट (यूडीएफ) की पिटीशन पर यूनियन गवर्नमेंट को नोटिस जारी किया। यूडीएफ प्रेसिडेंट डॉ. लक्ष्य मित्तल की PIL में कहा गया कि 30 साल पुराने सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्टिव्स के बावजूद मेडिकल इंस्टीट्यूशंस काम के घंटों का उल्लंघन कर रहे हैं। 1992 के रेजिडेंसी गाइडलाइंस और 2024 की रिपोर्ट दोनों ही कैप्ड वर्किंग आवर्स, मैंडेटरी रेस्ट और काउंसलिंग की सिफारिश करती हैं। डीएमए के एक मेंबर ने कहा, "यह डॉक्टरों की वेलफेयर का सवाल है, लेकिन असल में पेशेंट सेफ्टी का भी मुद्दा है।"

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