भोपाल। इंदौर में एक किसान द्वारा जनसुनवाई के दौरान एसिड पीकर जान देने की घटना ने पूरे प्रशासन को झकझोर कर रख दिया है। किसान करण सिंह लंबे समय से अपनी ज़मीन के सीमांकन और कब्जे की गुहार प्रशासन से लगा रहा था। बार-बार आवेदन करने और मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज कराने के बावजूद भी उसकी सुनवाई नहीं हुई। आखिरकार, प्रशासन से निराश होकर उसने जनसुनवाई के दौरान तहसील परिसर में ही कथित रूप से तेजाब पी लिया। कुछ दिन इलाज चलने के बाद उसकी मौत हो गई।
क्या है पूरा मामला?
इस मामले में जब जांच हुई तो अफसरों की गंभीर लापरवाही सामने आई। जांच में यह बात साफ हो गई कि किसान करण सिंह ने दो बार सीमांकन और दो बार भूमि पर कब्जे के लिए आवेदन दिए थे। सीमांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी, लेकिन उसकी रिपोर्ट के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। किसान को उसका कब्जा नहीं दिलाया गया। इससे भी बड़ी बात यह सामने आई कि किसान के आवेदन से संबंधित मूल फाइल ही कार्यालय से गायब कर दी गई थी। यह न सिर्फ एक तकनीकी चूक है, बल्कि जानबूझकर की गई प्रशासनिक लापरवाही मानी जा रही है।
अपर कलेक्टर राजेंद्र रघुवंशी द्वारा की गई जांच में यह स्पष्ट हो गया कि तहसीलदार जगदीश रंधावा, राजस्व निरीक्षक नरेश विवलकर, पटवारी अल्केश गुप्ता और क्लर्क रीना कुशवाह ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया और किसान की समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। इनकी लापरवाही के चलते किसान को बार-बार चक्कर काटने पड़े और अंततः उसे जान देना पड़ी। अपर कलेक्टर की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि यदि तहसीलदार चाहते, तो सीमांकन रिपोर्ट के आधार पर किसान को कब्जा दिलाया जा सकता था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
4 अधिकारी-कर्मचारी निलंबित
इस रिपोर्ट के आधार पर प्रभारी कलेक्टर गौरव बैनल ने तत्काल कार्रवाई करते हुए इन चारों अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित करने की अनुशंसा संभागायुक्त दीपक सिंह को भेजी, जिसे स्वीकार कर सभी के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश दे दिए गए हैं। बताया जा रहा है कि राजस्व निरीक्षक नरेश विवलकर को पहले ही सस्पेंड किया जा चुका है, लेकिन अब तहसीलदार, पटवारी और क्लर्क पर भी कार्रवाई की गई है।
जांच में यह भी उजागर हुआ कि पिछले 16 महीनों में इस प्रकरण से जुड़े जिन भी अधिकारियों और कर्मचारियों की पदस्थापना रही, उन्होंने भी लापरवाही बरती। इससे यह साबित होता है कि किसान की समस्या को लगातार नजरअंदाज किया गया और उसे कभी गंभीरता से नहीं लिया गया।
प्रदेशभर के किसानों में रोष
किसान की मौत के बाद पूरे प्रदेश में रोष का माहौल है। किसान संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले को प्रशासनिक हत्या बताया है। उनका कहना है कि जब सीमांकन हो चुका था, तो उस रिपोर्ट के आधार पर कब्जा क्यों नहीं दिलाया गया? फाइल का गायब होना इस बात का प्रमाण है कि कहीं न कहीं यह मामला जानबूझकर लटकाया गया।
भारतीय किसान संघ के प्रांत संगठन मंत्री राहुल धूत ने 'द मूकनायक' से बातचीत में कहा कि यह घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और पीड़ादायक है। उनका कहना है कि किसान की मौत के लिए पूरी तरह से प्रशासन जिम्मेदार है, जिसने समय पर ज़मीन का सीमांकन नहीं किया। उन्होंने कहा, "यदि प्रशासन ने संवेदनशीलता के साथ किसान की शिकायत को समय रहते सुना होता और ज़मीन का सीमांकन कर दिया होता, तो यह त्रासदी टाली जा सकती थी। यह सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक उपेक्षा का नतीजा है, जो आज किसानों को आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर कर रही है।" राहुल धूत ने सवाल उठाया कि क्या आम जनता की आवाज़ अब भी प्रशासनिक गलियारों में महत्व रखती है या पूरी तरह अनसुनी कर दी जाती है?
राहुल धूत ने आगे कहा कि एक किसान, जो देश की अर्थव्यवस्था की नींव है, उसकी बात को अनदेखा किया जाना न सिर्फ संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि यह मानवता पर भी एक गहरा आघात है। उन्होंने सरकार से मांग की कि जिन अधिकारियों-कर्मचारियों की लापरवाही से यह हादसा हुआ है, उन्हें निलंबन तक सीमित न रखा जाए, बल्कि उन्हें शासकीय सेवा से बर्खास्त किया जाए। साथ ही, पीड़ित किसान परिवार को सम्मानजनक मुआवजा दिया जाए ताकि उनके पुनर्वास और जीविका में मदद मिल सके।