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मध्य प्रदेश में बढ़ती गर्मी का संकट! MANIT भोपाल की रिसर्च से खुलासा, 44 साल में 50% बढ़ीं हीट वेव के दिन

भोपाल। गर्मी का कहर अब केवल असहनीय तापमान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह जनस्वास्थ्य और शहरी नियोजन के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है। मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MANIT), भोपाल के शोधकर्ताओं ने एक विस्तृत शोध के जरिए बताया है कि मध्य प्रदेश में पिछले चार दशकों में गर्मी की स्थिति कितनी भयावह हो चुकी है।

यह शोध एमटेक छात्र हिमांशु झारिया द्वारा तैयार थीसिस पर आधारित है, जिसे संस्थान में कार्यरत डॉ. विकास पूनिया के निर्देशन में प्रस्तुत किया गया। इसमें प्रदेश के सात बड़े शहरों – भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, उज्जैन और सतना – के वर्ष 1980 से 2024 तक के तापमान, गर्मी और हीट वेव के आंकड़ों का गहन अध्ययन किया गया है।

50% तक बढ़ गए हीट वेव के दिन

रिसर्च में सामने आया कि 1980 से 1990 के बीच 120 दिन हीट वेव (लू) के रहे थे। लेकिन 2013 से 2024 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 180 दिन हो गया, यानी लगभग 50% की बढ़ोतरी। वहीं, इसी अवधि में "नो डिस्कम्फर्ट डेज़" यानी ऐसे दिन जब गर्मी से कोई असुविधा महसूस नहीं होती, की संख्या 83 से घटकर 48 रह गई। इसका सीधा संबंध वातावरण में बढ़ती गर्मी और बदलते शहरी परिदृश्य से है।

भोपाल और इंदौर सबसे प्रभावित

द मूकनायक से बातचीत में डॉ. पूनिया ने बताया, तेजी से होते शहरीकरण, हरियाली की कमी, और सीमेंट-कंक्रीट के विस्तार के कारण अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट उत्पन्न हो रहा है। खासतौर पर भोपाल और इंदौर में यह असर अधिक देखा गया है। जब शहरों में हरियाली कम हो जाती है, तो तापमान ज्यादा बढ़ता है। कंक्रीट की संरचनाएं दिन में गर्मी को अवशोषित करती हैं और रात में उसे छोड़ती हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में तापमान अधिक बना रहता है।

हीट वेव के मामले में मध्य प्रदेश सबसे आगे

मार्च से अप्रैल 2025 के बीच, मध्यप्रदेश में 25 दिन हीट वेव दर्ज की गई, जो कि राजस्थान के बराबर है। यह आंकड़ा पूरे देश में सबसे अधिक है। इसका मतलब है कि आने वाले समय में मध्य प्रदेश सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में एक बन सकता है।

हीट वेव के दुष्प्रभाव

अत्यधिक पसीने से शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी, कमजोरी और चक्करहीट एग्जॉस्टेशनगंभीर डिहाइड्रेशन, ठंडी और चिपचिपी त्वचा, उल्टी, सिरदर्द और मांसपेशियों में ऐंठनलू लगना (हीट स्ट्रोक)जानलेवा स्थिति, शरीर का तापमान 40°C से अधिक, भ्रम, बेहोशी, दौरे और कोमा, मांसपेशियों में ऐंठन, पसीने से नमक की कमी, पैरों और पेट में दर्द, थकान और सुस्ती आदि समस्या आ सकती है.

2050 तक और गंभीर होगी स्थिति

डॉ. पूनिया ने चेतावनी दी कि 2050 तक हीट वेव की गंभीरता और अवधि में और भी बढ़ोतरी होगी। उन्होंने बताया कि 2024 में देशभर में हीट स्ट्रोक के 40,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़ा आने वाले वर्षों में और बढ़ सकता है, यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए।

नीति निर्माण की जरूरत

यह रिसर्च सिर्फ चेतावनी नहीं है, बल्कि नीति-निर्माताओं के लिए मार्गदर्शन भी है। इस अध्ययन के आधार पर विशेषज्ञों ने कुछ अहम सुझाव दिए हैं:

  • शहरों में ग्रीन कवर को बढ़ाया जाए

  • एडवांस्ड एआई आधारित मौसम पूर्वानुमान मॉडल विकसित किए जाएं

  • शहरवार हीट एक्शन प्लान तैयार किया जाए

  • स्कूलों, अस्पतालों और सार्वजनिक स्थलों पर कूलिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाए

हीट वेव का सबसे पहला और आम दुष्प्रभाव निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) है। जब शरीर अत्यधिक पसीना छोड़ता है, तो उसके साथ पानी और जरूरी खनिज जैसे इलेक्ट्रोलाइट्स की भी कमी हो जाती है। इससे व्यक्ति को कमजोरी, थकान और चक्कर आने जैसी समस्याएं होने लगती हैं।

इसके बाद आता है हीट एग्जॉस्टेशन, जो डिहाइड्रेशन का एक गंभीर रूप है। इसमें त्वचा ठंडी और चिपचिपी महसूस होती है, साथ ही व्यक्ति को मतली, उल्टी, सिरदर्द, मांसपेशियों में ऐंठन और अत्यधिक थकान की शिकायत हो सकती है। यह अवस्था इलाज न होने पर और गंभीर हो सकती है।

हीट वेव का सबसे खतरनाक असर लू लगना (हीट स्ट्रोक) है, जो कई बार जानलेवा भी साबित होता है। इसमें शरीर का तापमान 104 डिग्री फारेनहाइट (40 डिग्री सेल्सियस) या उससे अधिक हो जाता है। व्यक्ति को भ्रम होने लगता है, बेहोशी, दौरे और यहां तक कि कोमा की स्थिति बन सकती है। यह एक मेडिकल इमरजेंसी होती है और तुरंत इलाज जरूरी होता है।

इसके अलावा, अत्यधिक पसीने के कारण शरीर से नमक और पानी की कमी हो जाती है, जिससे मांसपेशियों में ऐंठन की समस्या सामने आती है, खासतौर पर पैरों, बाजुओं और पेट में। साथ ही, लंबे समय तक गर्मी के संपर्क में रहने से व्यक्ति में थकान और सुस्ती की भावना बढ़ जाती है, जिससे उसकी दैनिक कार्यक्षमता पर असर पड़ता है।

ये सभी दुष्प्रभाव मिलकर गर्मी को एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट में बदल देते हैं, जिससे बचाव के लिए समय रहते चेतावनी और ठोस कदम जरूरी हैं।

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